जयपुर. राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी राइट टू हेल्थ बिल को लेकर प्रदेश भर के निजी अस्पतालों के चिकित्सक विरोध कर रहे थे. लेकिन सरकार और चिकित्सकों के बीच चल रहा यह गतिरोध अब समाप्त हो चुका है. चिकित्सकों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया है. बिल को लेकर सरकार के स्तर पर मुख्य सचिव और चिकित्सकों की ओर से ज्वाइंट एक्शन कमिटी की बैठक हुई. इसके बाद चिकित्सकों ने यह आंदोलन वापस ले लिया है.
चिकित्सक संगठनों का कहना है कि हमारी ओर से जो बिंदु सरकार के समक्ष पेश किए गए थे, उन्हें शामिल करने पर सहमति बन गई है. अब यह बिल विधानसभा की प्रवर समिति को सौंपा जाएगा. इसके बाद विधानसभा में पेश किया जाएगा. हालांकि चिकित्सक संगठनों का कहना है कि हमारी ओर से जो बिंदु सरकार के समक्ष रखे गए थे, यदि उन्हें शामिल किया जाता है तो चिकित्सक संगठनों की ओर से किसी भी तरह का आंदोलन नहीं किया जाएगा. यदि हमारी ओर से पेश किए गए बिंदु बिल में शामिल नहीं होते हैं, तो एक बार फिर से चिकित्सक सड़कों पर उतर सकते हैं.
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इन मांगों को लेकर बनी सहमति:
- चिकित्सकों ने इमरजेंसी शब्द को परिभाषित करने की बात कही थी. सरकार की ओर से इमरजेंसी शब्द को बिल में परिभाषित किया जाएगा.
- बिल में प्रस्तावित किए गए अधिकार केवल राजस्थान के निवासियों के लिए हों.
- बिना वित्तीय प्रावधानों के निजी अस्पतालों पर मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का भार नहीं डाला जा सकता, जो पहले से ही संकट में हैं.
- सभी निजी स्वास्थ्य संस्थानों में कर्मचारियों और उपलब्ध सुविधाओं व भुगतान के बिना सभी आपात स्थितियों के इलाज की बाध्यता नहीं हो.
- दुर्घटना में पीड़ित लोगों के लिए मुफ्त रेफरल परिवहन सुविधा की व्यवस्था राज्य सरकार की ओर से होनी चाहिए.
- दुर्घटना में पीड़ित लोगों के लिए मुफ्त इलाज के लिए सरकार की ओर से उचित शुल्क पुनर्भुगतान की प्रक्रिया हो.
- जिला स्वास्थ्य समिति में ग्राम प्रधान तथा स्थानीय दूसरे प्रतिनिधि चिकित्सकों के खिलाफ पूर्वाग्रही और पक्षपाती हो सकते हैं. ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित कर सकते हैं. ये प्राधिकरण में शामिल नहीं हों.
- चिकित्सकों और अस्पतालों के खिलाफ शिकायत निवारण प्रणाली केवल एक होनी चाहिए. सभी मरीजों को केवल इसका उपयोग करने के लिए अनिवार्य करना चाहिए. राज्य एवं जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण में चिकित्सक ही सदस्य हों. शिकायतों की जांच के लिए केवल विषय विशेषज्ञों को ही निर्दिष्ट किया जाना चाहिए.
- प्राधिकरणों में प्राइवेट, सरकारी चिकित्सकों तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारी या उनके प्रतिनिधि को शामिल करना चाहिए.
- शिकायत निवारण के दौरान प्राधिकरण की ओर से अधिकृत अधिकारी को भवन या स्थान में प्रवेश करने, तलाशी लेने और जब्त करने के अधिकार नहीं हों.
- द्वेषपूर्ण और झूठी शिकायतों के मामले में उचित संज्ञान और दंड के प्रावधान किए जाने चाहिए.
- राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण या जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ अदालतों के अधिकार क्षेत्र को पूरी तरह से वर्जित करना असंवैधानिक प्रावधान, इसे हटाया जाना चाहिए.
- मुफ्त दुर्घटना आपातकालीन उपचार और अन्य मुफ्त उपचार केवल सरकारी अस्पतालों और नामित अस्पतालों में ही निर्दिष्ट किए जाने चाहिए.
- मरीजों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करना चाहिए.
- चिकित्सकों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के अधिकार सूचीबद्ध तथा आरक्षित हों.