जयपुर. राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. जिसे देखते हुए अभी से ही दलगत तैयारियां शुरू हो गई हैं. एक ओर भाजपा मौजूदा सरकार को घेरने के लिए जिलेवार जनाक्रोश रैली व महाघेराव कर रही है तो वहीं दूसरी ओर सीएम गहलोत ने महंगाई राहत कैंप के जरिए दोबारा सत्ता में आने की सुनियोजित योजना बनाई है. जिसका आगाज भी हो गया है, लेकिन अब गहलोत सरकार की इस सियासी कैंप की तुलना पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार की भामाशाह कार्ड लाभार्थी शिविर से की जा रही है. राज्य के सियासी जानकारों की मानें तो राजे और गहलोत कभी जनता से संपर्क स्थापित करने के लिए यात्रा किया करते थे, लेकिन अब समय के साथ ही इनका तरीका भी बदला है. अब ये नेता जनता से जुड़ने के लिए शिविर व कैंपों का आयोजन कर रहे हैं, ताकि लोगों तक योजनाओं का लाभ पहुंचा कर उनके वोट को अपने पाले में कर सके.
सियासी जानकारों की मानें तो तुलनात्मक अध्ययन के बाद सामाजिक कल्याण, महिला विकास और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए दोनों ही सरकारों का नजरिया एक सा दिखाई देता है. साथ ही तस्वीर लगे पर्चों के जरिए घर-घर पहुंचने की कोशिश की जा रही है. फिलहाल मुफ्त बिजली, 25 लाख रुपए के हेल्थ इंश्योरेंस और दुर्घटना बीमा के कारण सीएम गहलोत जरूर इस रेस में राजे से अलग नजर आ रहे हैं. साथ ही कैंप में जनता से मिल रहे रिस्पांस से भी गहलोत गदगद हैं. जबकि भाजपा इस कैंप को राहत की जगह आफत बता रही है.
क्या था भामाशाह कार्ड शिविर -प्रदेश की गहलोत सरकार ने 24 अप्रैल से महंगाई राहत कैंप शुरू किया. इस कैंप में रजिस्ट्रेशन कराने पर पात्र लाभार्थियों को 10 जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं है कि लाभार्थियों को शिविर के जरिए राहत देने का काम इसी सरकार में हो रहा है. इससे पहले भी पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार में भी भामाशाह कार्ड योजना के तहत राहत शिविर लगाए गए थे. जिसमें महिला शक्ति को सम्मान के साथ अधिकार देने की बात कही गई थी. यह योजना महिलाओं को समर्पित थी ताकि समाज में महिला और पुरुषों में समानता आ सके. यह महिला सशक्तिकरण व परिवार आधारित योजना थी. इसके अलावा भामाशाह कार्ड योजना को नरेगा, छात्रवृत्ति, बीपीएल योजना, राशन प्रणाली के साथ ही स्वास्थ्य बीमा योजना और प्रधानमंत्री एक्सीडेंट क्लेम योजना से भी जोड़ गया था.
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