जयपुर. राजस्थान में चुनावी बिसात बिछाने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस अपने अपने दांव लगा रखी है. एक तरफ भाजपा पहले ही जाहिर कर चुकी है कि वो राजस्थान में किसी एक चेहरे की जगह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली है. वहीं दूसरी ओर अपने ही कुनबे की लड़ाई से जूझ रही कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी योजनाएं मिशन मोदी के आगे चुनौती के रूप में नजर आएगी. ऐसे में अब तक की रणनीति के मुताबिक दोनों राजनीतिक दलों में से किसका वर्चस्व कायम होने की संभावना है और शुरुआती दौर में इस कसरत में कौन भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है. इन विषयों पर ईटीवी भारत ने राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही से विशेष बातचीत की.
इस चर्चा के दौरान विजय विद्रोही ने बताया कि कांग्रेस के आगे सबसे बड़ा संकट पार्टी के अंदर मतभेद और मनभेद का खुलकर सड़कों पर जाहिर होना खुद ब खुद एक बूरा संकेत हैं. ऐसे हालात में बीजेपी के लिए शुरुआत में ही एक बढ़त कायम होती हुई नजर आती है. हालांकि भाजपा की ओर से चुनावी चेहरे के नाम पर प्रधानमंत्री को आगे रखा जाना, इस रणनीति में विशेष फर्क नहीं रखता. देश में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे जाहिर करते हैं कि मोदी की तवज्जो केंद्र की सरकार बनाने के नजरिए से देश की आवाम ज्यादा रखती है. जबकि राज्यों में चुनाव के दौरान जमीनी मुद्दे भी अहमियत रखते हैं. इस लिहाज से केंद्र और राज्य की सरकार के चुनाव के बीच जनता में करीब 10 फ़ीसदी वोटों का फर्क ही सरकार बदलने और कायम रखने की दिशा में अहम होता है.
महंगाई राहत शिविर के कारण कांग्रेस आई मैदान में :ईटीवी भारत के साथ बातचीत के दौरान विजय विद्रोही बताते हैं कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मिजाज पहले की अपेक्षा काफी बदला हुआ नजर आता है. वह एक पीआर एजेंसी की राय के मुताबिक इस बार अपनी रणनीति को तय कर रहे हैं. जाहिर है कि 1998 और 2008 की सरकार के दौरान गहलोत ने राजस्थान में कई योजनाओं और कामों को धरातल पर उतारा था. परंतु ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण गहलोत को चुनावी रण में करारी शिकस्त मिली थी. ऐसे में विपक्षी दल भाजपा के मिजाज के मुताबिक गहलोत इस बार अपनी सरकार के कामकाज को जाहिर करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इसलिए वे एजेंसी की रणनीति के मुताबिक अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं. इसका बेहतर उदाहरण मौजूदा दौर में महंगाई राहत शिविर है. जहां बिजली के बिल में रियायत के साथ-साथ चिरंजीवी योजना, सोशल सिक्योरिटी से जुड़ी बाकी स्कीमों और धरातल पर मॉनिटरिंग के अलावा मुख्यमंत्री के एजेंडे पर अमलीजामा पहनाने पर जोर दिया जा रहा है. लिहाजा गहलोत भी इस काम को अंको में गिनती करते हुए जनता तक ठीक उसी तर्ज में पहुंचा रहे हैं, जैसे कभी मोदी अपनी योजनाओं के लाभार्थियों की संख्या का जिक्र किया करते थे.