जयपुर.ढाक के तीन पात वाली कहावत राजस्थान के गुर्जर समाज पर सटीक बैठ रही है. कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में करौली के पीलूकापुरा में गुर्जरों ने 11 दिन तक रेलवे ट्रैक पर तंबू तानकर पटरियों पर धरना दिया. आर-पार की लड़ाई की बातें कही गई थी, एक ही मांग का हवाला दिया गया था. वह मांग थी आरक्षण लागू करने और बैकलॉग के रूप में 35 हजार नियुक्ति पत्र सरकार रेलवे ट्रैक पर ही लेकर आए.
हुंकार ये भी भरी गई थी कि बैकलॉग की मांग पूरी होने के बाद ही गुर्जर सामज ट्रैक खाली करेगा. इस बीच कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा के दौरान अभ्यार्थी अपने सेंटर तक पहुंचने के लिए परेशान भी होते रहे. महज 70 फीदसी से कुछ ज्यादा अभ्यर्थी ही परीक्षा में बैठ सके. इसके अलावा आम जन की परेशानी और रेलवे रोडवेज को प्रतिदिन करोड़ों का नुकसान होता रहा. गुर्जर समाज को न आमजन की तकलीफ से फर्क पड़ा और न ही राजस्व के नुकसान से. दीपावली पर्व के अवसर पर लोगों को घर पहुंचने की भी चिंता लगी रही थी. फिर भी गुर्जर संघर्ष समिति मांग पर अड़ी रही.
सरकार से मिला 17 सदस्यों का गुर्जर प्रतिनिधि मंडल...
11 नवम्बर को दिवावी से पहले आंदोलन के अगुवा कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की अगुवाई में 17 से अधिक सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल वार्ता के लिए राजी हुआ. जयपुर में बिजली विभाग के गेस्ट हाउस में संघर्ष समिति और मंत्रीमंडल सबकमेटी के साथ 9 घंटे से अधिक लंबी वार्ता चली. इसके बाद गुर्जर संघर्ष समिति के सदस्यों को मुख्यमंत्री निवास पर सीएम अशोक गहलोत से मिलाया गया. मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद संघर्ष समिति 6 बिंदुओं की मांगों पर सहमत हो गई.
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बैकलॉग के बिना कैसे मान गए गुर्जर प्रतिनिधि...
बड़ी बात ये है कि पिता कर्नल बैंसला से विरासत में आंदोलन हासिल कर नए-नए नेता बने विजय बैसला ने साफ कहा था कि जब तक सरकार नियुक्ति पत्र नहीं सौंपेगी तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा. नियुक्ति पत्र तो मिले ही नहीं और जिन 6 बिंदुओं पर गुर्जर राजी हो गए उन पर तो सरकार पहले से सहमत थी. बैकलॉग के तहत 35 हजार नियुक्ति का मामला कानूनन संभव नहीं था, फिर सवाल ये कि जब सब कुछ पहले से तय था तो आंदोलन क्यों किया गया.
गुर्जर नेताओं में फूट...
इस बाच गुर्जर समाज के दूसरे गुट के नेता हिम्मत सिंह लगातार कहते रहे हैं कि इस आंदोलन के पीछे गुर्जर समाज की मांग नहीं, बल्कि कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की राजनीतिक महत्वकांक्षा थी. उन्होंने साफ कहा कि कर्नल बैंसला अपने बेटे विजय बैंसला की राजनीतिक स्थापना करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने प्रदेश के एक हिस्से को आंदोलन में झौंक दिया. हिम्मत सिंह गुर्जर ने जिस तरह के आरोप लगाए हैं उससे लगता है कि कर्नल बैंसला खुद पूरे समाज को एकजुट नहीं कर पाए हैं.
6 बिंदुओं पर सहमति पहले ही बन चुकी थी...
हालांकि, गुर्जर समाज गुटों में बंटे होने की बात नकारता रहा है, लेकिन ये हिम्मत सिंह और विजय बैंसला के बयानों से यही साफ हुआ कि मजह अपने सियासी वर्चस्व के लिए समाज के नाम पर क्या क्या रणनीतियां अपनाई जाती हैं. जिन 6 बिंदुओं पर कर्नल बैंसला से सरकार की सहमति बनी है, उन्हीं बिंदुओं पर गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के साथ भी सरकार की सहमति पहले ही बन चुकी थी. विजय बैंसला ने कहा कि हिम्मत गुर्जर के साथ हुई सहमति कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि उस मीटिंग में कर्नल किरोड़ी बैंसला मौजूद नहीं थे.