जयपुर. सनातन धर्म में तुलसीसिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है. ठाकुर जी को अर्पित किया गया भोग भी तुलसी के बिना अधूरा माना जाता है. यही नहीं, मांगलिक कार्यों में भी तुलसी पूजन को प्राथमिकता दी गई है. हालांकि, पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ते कदमों के बीच तुलसी पूजन कम होने लगा. इसी के मद्देनजर साधु-संतों ने 25 दिसंबर 2014 को तुलसी पूजन दिवस मनाने की शुरुआत की थी. अब धीरे-धीरे गुरुकुल और स्कूलों में भी 25 दिसंबर को छात्रों को तुलसी का महत्व समझाया जाता है, और तुलसी पूजन दिवस मनाया जाने लगा है.
मातस्तुलसि गोविंद हृदयानंद कारिणी. नारायणस्य पूजार्थ चिनोमि त्वां नमोस्तुते ...पौराणिक ग्रंथों में लिखित इस श्लोक से स्पष्ट है कि भगवान नारायण के पूजन के लिए हमेशा से तुलसी को अग्रणी रखा गया है. यही वजह है कि हर परिवार के आंगन में तुलसी को स्थान भी मिला है और इसका पूजन भी किया जाता है. मान्यता है कि जहां तुलसी होती है वहां साक्षात लक्ष्मी का निवास होता है, लेकिन समय के साथ लोग तुलसी पूजन के महत्व को भूलते जा रहे हैं. इसी महत्व को समझाते हुए 25 दिसंबर को तुलसी दिवस मनाया जाता है.
ज्योतिषाचार्य योगेश पारीक ने बताया कि धर्म ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि तुलसी के दर्शन मात्र से पाप, दुख और दरिद्रता खत्म हो जाती है और शुभ संपत्तियों का आगमन होता है. चूंकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि महीनों में वो मार्गशीर्ष हैं और तुलसी भी भगवान को प्रिय है. ऐसे में इस दौरान तुलसी की उपासना का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. ऐसे में मार्गशीर्ष के इस महीने में तुलसी पूजन दिवस को प्रत्येक व्यक्ति को मनाना चाहिए. साथ ही नई पीढ़ी को इस विषय में बताना भी चाहिए. वहीं, अब तुलसी पूजन दिवस के आयोजन कुछ विद्यालयों में भी होने लगे हैं.