जयपुर. राजस्थान में ओबीसी आरक्षण विसंगति को लेकर (OBC Reservation Discrepancy Issue) पूर्व मंत्री व पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी मुखर हैं. उनकी ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर किए गए ट्वीट के बाद यह मामला उस समय उलझ गया, जब मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास इस मामले में सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे. 1 दिन पहले मंत्री प्रताप सिंह और पूर्व मंत्री हरीश चौधरी के बीच बनी विवाद की स्थिति के बाद शुक्रवार को हरीश चौधरी ने प्रेस कांफ्रेंस की. उन्होंने साफ कर दिया कि इस मामले को कैबिनेट में रेफर करने के लिए न तो नौकरशाही जिम्मेदार है, ना ही मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास.
इस मामले के लिए जिम्मेदार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. मेरा सवाल केवल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से है. हरीश चौधरी ने कहा कि मैने कैबिनेट होने के पहले तक यह समझने की कोशिश की. लेकिन इस मामले में डेफर होने का कारण मेरी समझ से परे था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा (Harish Chaudhary Targets CM Gehlot) इस मामले के डेफर होने का कारण कोई नहीं जान सकता. चौधरी ने कहा कि इस कैबिनेट में डेफर करने का निर्णय मुख्यमंत्री ही ले सकते हैं. इसलिए जवाब भी मुख्यमंत्री से ही मिल सकता है.
हरीश चौघरी Exclusive Interview... मंत्री प्रताप सिंह के साथ इस मामले में हुए विवाद को लेकर उन्होंने कहा कि मैं इस मामले में कोई विवाद नहीं चाहता हूं और न ही किसी राजनीतिक विचारधारा, व्यक्ति या वर्ग को हम इसमें जोड़ना चाहते हैं. इस मामले में एडमिनिस्ट्रेटिव अप्रूवल मुख्यमंत्री ने दी, प्रशासनिक तौर पर और नैतिक तौर पर भी यह जिम्मेदारी उनकी बनती है कि वह अगर कैबिनेट में किसी के डाउट हो तो उन्हें क्लियर करें या फिर उनसे जुड़े विभाग इसे क्लियर करें. हरीश चौधरी ने कहा कि जब मुझे समझ में नहीं आया तो मैने मुख्यमंत्री से ट्वीट कर सार्वजनिक तौर पर सवाल कर दिया.
हरीश चौधरी ने कहा कि मैने इस मामले में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से एक बार नहीं बल्कि 10 बार बात की और इस बार मैं आशान्वित नहीं था बल्कि मुझे पूरी तरीके से विश्वास था इसीलिए तो मैं स्तब्ध हुआ. हरीश चौधरी ने कहा कि मैं स्तब्ध क्यों हुआ क्योंकि मेरी आशा के परे कोई बात हुई. चौधरी ने कहा कि 8 नवंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हुई मेरी वार्ता में उन्होंने कोई सवाल भी नहीं उठाया, बल्कि सहमति भी दी. इसीलिए मुझे लगा कि उन्हें जब कोई डाउट नहीं है, तो फिर उनकी सहमति ही है.
लेकिन कैबिनेट से डेफर होने के बाद मैं यह नहीं जान पा रहा कि ऐसा क्यों हुआ? यह मुख्यमंत्री बताएं. हरीश चौधरी ने कहा कि मैने सवाल मुख्यमंत्री से किया है. मैं इधर उधर की बात नहीं कर रहा हूं, मैने सीधा सवाल अशोक गहलोत से किया है. इस मुद्दे को कैबिनेट में डेफर करने का अधिकार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ही है. क्योंकि कैबिनेट को मुख्यमंत्री चेयर करते हैं, डेफर या टी चेयर करती है या फिर बहुमत के अंदर कैबिनेट करती है. ऐसे में मैं सवाल तो मुख्यमंत्री से ही करूंगा क्योंकि बहुमत जैसी इस मामले में कोई बात नजर नही आई.
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अब नई परंपरा बनी मंत्रियों से बात करने की : हरीश चौधरी ने सरकार को अल्टीमेटम देते हुए कहा कि इस मामले में अगर उन्हें सड़कों पर उतरना पड़ा तो वह इसके लिए भी तैयार हैं. उन्होंने कहा कि मैने इस मामले में पार्टी के तौर पर प्रदेश अध्यक्ष से बात की और सरकार के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से. उसके बाद भी इस मामले को डेफर कर दिया गया. ऐसे में नई परम्परा प्रदेश में शुरू हो गई कि मंत्रियों से भी चर्चा करो तो हम इस मामले के हल के लिए इस बात के लिए भी तैयार हैं.
हरीश चौधरी ने कहा कि मैं इस आंदोलन में एमएलए या स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य के नाते नहीं जुड़ा. मैं व्यक्तिगत हरीश चौधरी के नाते जुड़ा हूं. पार्टी के अध्यक्ष से मैने पहले इस बात की सहमति ली. इसके बाद मुखिया के तौर पर अशोक गहलोत की सहमति ली और उनकी सहमति का मतलब यही होता है कि वह इस मामले पर मेरी मांग से सहमत थे. उन्होंने कहा कि डेमोक्रेसी में अपनी मांग के लिए यह व्यवस्था बनाई हुई हैओर लोकतंत्र में सही बात पर विरोध की कोई पाबंदी नहीं है.
उन्होंने कहा कि मैं नेहरू का अनुयायी हूं और मेरा नेता राहुल गांधी हैं. दोनों ने हमें यही संदेश दिया है कि अपनी मांग रखने की व्यवस्था है और राहुल गांधी ने कहा है स्पष्ट रूप से कि अगर आप सही हो तो डरो नहीं और मैं सही हूं. उन्होंने कहा कि हमारी एकमात्र डिमांड है कि जल्दी से जल्दी वापस कैबिनेट बुलाकर इस मामले को (OBC Reservation in Rajasthan) शार्ट आउट किया जाए और यह फैसला कैबिनेट से ही होगा. यह अधिकार कैबिनेट के अलावा किसी के पास नहीं है. प्रक्रिया भी कैबिनेट की बैठक बुलाकर ही होगी. अगर ऐसा नहीं होता है तो वह इस मांग को लेकर सड़क पर भी उतरने को तैयार हैं.