राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

जानिए मां दुर्गा के नौ रूपों की कहानी और मां को प्रसन्न करने वाले मंत्र

इस साल शारदीय नवरात्र 29 सितंबर से प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर को संपन्न होंगे. इस नवरात्र पर जानें मां दुर्गा के नौ रूपों के बारे में इस खबर में.

Shardiya Navratri, शारदीय नवरात्र जयपुर शारदीय नवरात्र की खबर, jaipur shardiya navratri news, मां के नौ रूप, nine forms of maa durga

By

Published : Oct 1, 2019, 11:16 AM IST

Updated : Oct 1, 2019, 11:34 AM IST

जयपुर.प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा में मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में मानते हुए इनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र का आयोजन होता है. नवरात्र में मां दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री रूपों का पूजन और विशेष आराधना की जाती है. इस साल शारदीय नवरात्र 29 सितंबर से प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर को संपन्न होंगे.

मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’

29 सितंबर को नवरात्र का पहला दिन था. इस दिन घटस्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. शैल का अर्थ होता है हिमालय और पर्वतराज. हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है. वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है.

वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

मां शैलपुत्री

पढ़ेंः जोधपुर : नवरात्रि के खास मौके पर चामुंडा माता मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

मां दुर्गा का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’

नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ‘देवी ब्रह्मचारिणी’ रूप की पूजा करने का विधान है. मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल है. शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया और महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा.

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां ब्रह्मचारिणी

मां दुर्गा का तीसरा रूप मां ‘चंद्रघंटा’

नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप 'चंद्रघंटा देवी' के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है. इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंदंमा विराजमान है इसीलिये इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये खड्ग आदि विभिन्न अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं. माना जाता है कि देवी के इस रूप की पूजा करने से मन को अलौकिक शांति प्राप्त होती है.

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

मां चंद्रघंटा

पढ़ेंः अलवर के केंद्रीय कारागार में बंदी रख रहे नवरात्रि का व्रत

मां दुर्गा का चौथा रूप ‘कुष्मांडा’

नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप 'मां कूष्मांडा' की पूजा और अर्चना की जाती है. माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने ब्रह्मांड की रचना की थी. इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है। इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार हैं.

सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।

मां कूष्मांडा

मां दुर्गा का पांचवां रूप ‘मां स्कंदमाता’

नवरात्र के पांचवे दिन दुर्गाजी के पांचवें स्वरूप 'मां स्कंदमाता' की पूजा और अर्चना की जाती है. स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है. स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है. यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है।

सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी।।

मां स्कंदमाता

मां दुर्गा का छठा रूप ‘मां कात्यायनी’

नवरात्र के छठे दिन दुर्गाजी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है. ऐसा विश्वास है कि इनकी उपासना करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति हो जाती है. क्योंकि इन्होंने कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया, इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनका रंग स्वर्ण की भांति अन्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं. दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में. बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है. इनका वाहन भी सिंह है, इनकी पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है.

चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।।

मां कात्यायनी

पढ़ेंः अलवर में नवरात्र की धूम, डांडिया और गरबा पर झूमे शहरवासी

मां दुर्गा का सातवां रूप ‘मां कालरात्रि’

नवरात्र के सातवें दिन दुर्गाजी के सातवें स्वरूप ;मां कालरात्रि' की पूजा और अर्चना का विधान है. इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है. बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है. यह सारी आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी है.

एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।

मां कालरात्रि

मां दुर्गा का आठवां रूप ‘मां महागौरी'

नवरात्र के आठवें दिन दुर्गाजी के आठवें स्वरूप 'मां महागौरी ' की पूजा और अर्चना का विधान है. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर अर्थात् सफेद है. इनके वस्त्र भी सफेद रंग के हैं और सभी आभूषण भी श्वेत हैं. इनका वाहन वृषभ अर्थात् बैल है. ऐसा वर्णन मिलता है कि भगवान् शिव को पति के रूप में पाने के लिये इन्होंने हजारों सालों तक कठिन तपस्या की थी जिस कारण इनका रंग काला पड़ गया था लेकिन बाद में भगवान् महादेव ने गंगा के जल से इनका वर्ण फिर से गौर कर दिया.

श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यात्, महादेवप्रमोददाद।।

मां महागौरी

पढ़ेंः नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को इस तरह करें प्रसंन्न

मां दुर्गा का नौवां रूप ‘मां सिद्धिदात्री’
नवरात्र के नौवें दिन दुर्गाजी के नौवें स्वरूप 'मां सिद्धदात्री' की पूजा और अर्चना का विधान है. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं मां सिद्धिदात्री. ये कमल पुष्प पर विराजमान हैं. लेकिन इनका वाहन सिंह भी है. प्राचीन शास्त्रों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व नामक आठ सिद्धियां बताई गई हैं. ये आठों सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से प्राप्त की जा सकती हैं.

सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

मां सिद्धिदात्री
Last Updated : Oct 1, 2019, 11:34 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details