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Bijapur Naxal Attack : दंतेवाड़ा-2010 को याद कर सिहर उठा जयपुर के शहीद रामकरण का परिवार

वर्ष 2010 को भुलाया नहीं जा सकता. आज से 10 साल पहले छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा हमला हुआ था. नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों पर हमला कर दिया था, जिसमें देश के 76 जवान शहीद हो गए थे और आज हम इन्हीं शहीदों को याद कर रहै हैं. राजधानी जयपुर के चौमूं उपखंड के डोला का बास निवासी रामकरण मीणा भी इस हमले में शहीद हो गए थे. आइये जानते हैं क्या कहता है राजस्थान के जाबांज का परिवार और कैसे याद करता है उन्हें...

memories of ramkaran meena
दंतेवाड़ा में शहीद हुए थे राजस्थान के वीर सपूत रामकरण

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Published : Apr 5, 2021, 11:18 AM IST

Updated : Apr 5, 2021, 11:41 AM IST

चौमूं (जयपुर). छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है, जिसमें हमारे 22 जवान शहीद हो गए हैं. इस घटना ने 10 साल पहले छत्तीसगढ़ के ही दंतेवाड़ा में नक्सल इतिहास के सबसे बड़े हमले की खौफनाक मंजर की याद ताजा कर दी है. दंतेवाड़ा के नक्सली हमले में राजस्थान के जाबांज रामकरण ने भी अपनी शहादत दी थी, जिस पर पूरे परिवार और क्षेत्र के लोगों को गर्व है.

दंतेवाड़ा में शहीद हुए थे राजस्थान के वीर सपूत रामकरण...

शहीद रामकरण के पिता का नाम कल्याण सहाय मीणा और माता का नाम बरजी देवी है. रामकरण मीणा ने करीब 14 साल तक सीआरपीएफ में अनेक इलाकों में अपनी सेवाएं दी. अपने विवाह के 2 वर्ष पहले सेना में भर्ती हुए थे. 2 वर्ष बाद उनकी शादी विमला देवी से हुई. रामकरण के एक बेटा और दो बेटियां हैं. शहीद रामकरण के दो बड़े भाई हैं.

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क्या कहते हैं परिवार के लोग...

सबसे बड़े भाई हरदेव मीणा रेलवे पुलिस से सेवानिवृत्त हैं तो उनसे छोटे किशन मीणा किसान हैं. 6 अप्रैल 2010 को सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन के जांबाज ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में एक नक्सली मुठभेड़ में अपनी शहादत दे दी. शहीद की शहादत को आज 10 साल पूरे हो गए हैं. 10 साल में गांव में बहुत कुछ बदलाव हुआ है. गांव के लोग भी शहीद की शहादत को याद करते हैं तो वहीं रामकरण मीणा से कुछ जुड़ी हुई यादों के बारे में परिवार के लोग बताते हैं.

रामकरण की यादें फिर हुई ताजा...

हमेशा देश भक्ति की बात करते थे रामकरण...

रामकरण मीणा हमेशा ही देश भक्ति और देश प्रेम की बात करते थे, युवाओं को सेना में और पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते थे. डोला का बास गांव में अस्पताल का नाम भी शहीद रामकरण मीणा के नाम पर ही किया है. इसमें स्थानीय विधायक रामलाल शर्मा ने काफी प्रयास किए थे तो वहीं डोला का बास गांव के मुख्य चौराहे पर शहीद स्मारक बनाया गया. जहां शहीद रामकरण मीणा की प्रतिमा लगाई गई है. गांव के लोग प्रतिमा को नमन करने पहुंचते हैं.

शहीत के नाम पर स्कूल का नामकरण...

पत्नी विमला देवी पर घर की जिम्मेदारी...

शहीद परिवार को केंद्र व राज्य सरकार से दी जाने वाली तमाम योजनाओं का लाभ मिल रहा है. शहीद रामकरण मीणा के जाने के बाद उनकी पत्नी विमला देवी ही घर खर्च चलती हैं. वे बताती हैं कि खेती और पेंशन के जरिए मिलने वाली राशि से वह अपने परिवार को चलाती हैं. शहीद के पुत्र विक्रम ने बताया कि अब वह भी 18 वर्ष के हो चुके हैं और उनको मिलने वाली सरकारी नौकरी भी अंडर प्रोसेस है.

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शहादत पर गर्व...

विक्रम सेलटैक्स विभाग में जाने के लिए तैयारी कर रहा है. भाई विक्रम की दो बहनें भी पढ़ाई कर रही हैं. विक्रम के मामा संतोष मीणा बताते हैं कि उनके बहनोई की कई यादें उनके साथ जुड़ी हैं. विक्रम के मामा संतोष बताते हैं कि उनकी शादी में रामकरण आने वाले ही थे, लेकिन उससे पहले ही वे नक्सली हमले में शहीद हो गए. आज हमें हमारे शहीद बहनोई पर गर्व है कि भारत माता की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

Last Updated : Apr 5, 2021, 11:41 AM IST

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