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Martyr Abhay Pareek: विजय दिवस पर अतीत के पन्नों में शहादत के किस्से ,जयपुर के लेफ्टिनेंट अभय ने सरहद पर दुश्मन से लिया था लोहा

26 जुलाई 'कारगिल विजय दिवस' का मौका साल 1999 में सरहद की दुर्गम चोटियों पर काबिज दुश्मन के नापाक मंसूबों को नेस्तनाबूद करने का दिन है. हर साल इस खास लम्हे को याद किया जाता है (Martyr Abhay Pareek). इस विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने अतीत के पन्नों से शहादत की एक दास्तान को बाहर निकाला है.

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Published : Jul 26, 2022, 1:48 PM IST

Updated : Jul 26, 2022, 2:02 PM IST

Martyr Abhay Pareek
जरा याद करो कुर्बानी

जयपुर. यह किस्सा तब का है ,जब संसद पर हमला हुआ था और भारत पाकिस्तान की सरहद पर अघोषित युद्ध के हालात खड़े हो गए थे. रोजाना सरहद पर दोनों तरफ से गोलीबारी हुआ करती थी और माटी के लाल एक के बाद एक अपनी जिंदगी सरजमीं के नाम करने लगे (Martyr Abhay Pareek). जान-ओ-तन फिदा करके ये लोग खुद को इतिहास में दर्ज कर गए ,ताकि उनकी बहादुरी के किस्से आने वाली पीढ़ियों को अपने देश पर न्योछावर होने की प्रेरणा देती रहें.

'अभय' थे लेफ्टिनेंट पारीक:लेफ्टिनेंट अभय पारीक का नाम उन जांबाजों में शुमार है जिन्होंने भारत के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. उनके भाई लेफ्टिनेंट कर्नल अक्षय पारीक के मुताबिक बचपन से ही दिलेरी के किस्से लेफ्टिनेंट पारीक को मजबूत बनाकर रखे हुए थे. उनका सपना था कि कुछ ऐसा कर गुजरना है कि दुनिया याद रखें. अभय से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल अक्षय कहते हैं कि एक बार सरहद की दूसरी तरफ से पाकिस्तानी सैनिक जमकर गोलीबारी कर रहे थे. इस दौरान मोर्टार से एक के बाद एक रॉकेट दागे जा रहे थे. लेफ्टिनेंट पारीक की टीम का एक सिपाही भयंकर गोलीबारी को देखकर सहम गया ,ऐसे में अपनी जान को दांव पर लगाकर अभय ने अपने साथी सैनिक की जान को बचाया और उन्हें बंकर तक लेकर पहुंचे. इस वाकये के बाद अभय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें एतिहात बरतने का मशविरा भी दिया, पर अभय ने कहा कि मैं ऐसा ही हूं. मैं तब तक चैन से नहीं बैठ सकता जब तक मेरे किसी साथी की जान खतरे में हो.

लेफ्टिनेंट अभय ने सरहद पर दुश्मन से लिया था लोहा

आखिरी दम तक नहीं छोड़ी थी हिम्मत: अभय की शहादत पर पूरे घर को फक्र है. लेफ्टिनेंट अभय पारीक की भाभी डॉ. ज्योति बताती हैं कि जब वे सरहद पर दुश्मन की गोलीबारी का जवाब देते हुए बुरी तरह जख्मी हो गए थे ,तब उन्हें साथी सैनिक कैंप तक लाने की कोशिश करने लगे. करीब 4 किलोमीटर के रास्ते पर उन्हें स्ट्रेचर से लाया जा रहा था. इस दौरान उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथियों से कहा कि वह खुद चलकर मेडिकल कैंप तक जाना चाहते हैं. इसके बाद जब वे कैंप में पहुंचे, तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सलामी देकर कहा कि मैं जल्द लौटकर इसका जवाब दूंगा. पर हालात को कुछ और ही मंजूर था. ज्यादा रक्त स्त्राव होने के कारण लेफ्टिनेंट पारीक की सेहत बिगड़ गई. घरवालों को अब भी याद हैं उनके आखिरी शब्द. उन्होंने कहा था- मुझे आज मां की बहुत याद आ रही है. लेफ्टिनेंट की मां का इंतकाल काफी पहले हो चुका था.

लिपट कर आए थे शहीद

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अभय अब भी जिंदा हैं: शहीद मरते नहीं. वो हमेशा दिलों में रहते हैं लोगों की बातों में उनके किस्सों में जिंदा रहते हैं. अभय भी अपने अपनों के लिए जिंदा हैं. उनके परिवार ने निराले अंदाज में उनकी यादों को संजोए रखा है. नाम के जरिए. भाई लेफ्टिनेंट कर्नल अक्षय पारीक ने अपने छोटे से बेटे के नाम में अभय जोड़ दिया है. बच्चे का नाम देव अभय रखा गया है. कहते हैं- हम शहादत की इस दास्तान को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे तक ले कर जाना चाहते हैं. आपको बता दें कि हरफनमौला अभय एनसीसी कैडेट होने के साथ ही बॉक्सर भी थे. उन्हें तबले में संगत करना बेहद पसंद था. अपने मजाकिया अंदाज और नटखट स्वभाव के कारण अक्सर लोगों के जेहन से उनका ख्याल नहीं उतरता. उनके परिजनों के मुताबिक अभय के बहादुरी के किस्सों की दास्तान उनकी छोटी उम्र से कहीं लंबे हैं.

परिवार ने सहेज कर रखी है यादें:लेफ्टिनेंट अभय के भतीजे देव अभय अपने सुबह की शुरुआत चाचा की तस्वीर पर जय हिंद की सलामी के साथ किया करते हैं. घर की बैठक में मौजूद शोकेस, लेफ्टिनेंट अभय की बहादुरी और उनके कामयाब इंसान होने की गवाही देता है. स्कूल के जमाने से लेकर देश के नाम अपनी सांसें करने तक हर एक पल इस शोकेस में मौजूद है. इस शोकेस में वह तिरंगा भी मौजूद है ,जिसमें आखिरी बार अभय लिपटकर अपने घर पहुंचे थे. भारत सरकार की तरफ से मिला सोने का तमगा भी है, जो उनके बहादुरी के किस्सों को बयां करता है. बैज ऑफ़ ब्रेवरी के नजदीक रखी उनकी वर्दी यह प्रेरणा देती है कि जिस्म पर देश ने एक जिम्मेदारी ओढ़ा दी है और इस लिबास में देश के हर शख्स का भरोसा कायम है.

Last Updated : Jul 26, 2022, 2:02 PM IST

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