जयपुर. यह किस्सा तब का है ,जब संसद पर हमला हुआ था और भारत पाकिस्तान की सरहद पर अघोषित युद्ध के हालात खड़े हो गए थे. रोजाना सरहद पर दोनों तरफ से गोलीबारी हुआ करती थी और माटी के लाल एक के बाद एक अपनी जिंदगी सरजमीं के नाम करने लगे (Martyr Abhay Pareek). जान-ओ-तन फिदा करके ये लोग खुद को इतिहास में दर्ज कर गए ,ताकि उनकी बहादुरी के किस्से आने वाली पीढ़ियों को अपने देश पर न्योछावर होने की प्रेरणा देती रहें.
'अभय' थे लेफ्टिनेंट पारीक:लेफ्टिनेंट अभय पारीक का नाम उन जांबाजों में शुमार है जिन्होंने भारत के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. उनके भाई लेफ्टिनेंट कर्नल अक्षय पारीक के मुताबिक बचपन से ही दिलेरी के किस्से लेफ्टिनेंट पारीक को मजबूत बनाकर रखे हुए थे. उनका सपना था कि कुछ ऐसा कर गुजरना है कि दुनिया याद रखें. अभय से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल अक्षय कहते हैं कि एक बार सरहद की दूसरी तरफ से पाकिस्तानी सैनिक जमकर गोलीबारी कर रहे थे. इस दौरान मोर्टार से एक के बाद एक रॉकेट दागे जा रहे थे. लेफ्टिनेंट पारीक की टीम का एक सिपाही भयंकर गोलीबारी को देखकर सहम गया ,ऐसे में अपनी जान को दांव पर लगाकर अभय ने अपने साथी सैनिक की जान को बचाया और उन्हें बंकर तक लेकर पहुंचे. इस वाकये के बाद अभय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें एतिहात बरतने का मशविरा भी दिया, पर अभय ने कहा कि मैं ऐसा ही हूं. मैं तब तक चैन से नहीं बैठ सकता जब तक मेरे किसी साथी की जान खतरे में हो.
आखिरी दम तक नहीं छोड़ी थी हिम्मत: अभय की शहादत पर पूरे घर को फक्र है. लेफ्टिनेंट अभय पारीक की भाभी डॉ. ज्योति बताती हैं कि जब वे सरहद पर दुश्मन की गोलीबारी का जवाब देते हुए बुरी तरह जख्मी हो गए थे ,तब उन्हें साथी सैनिक कैंप तक लाने की कोशिश करने लगे. करीब 4 किलोमीटर के रास्ते पर उन्हें स्ट्रेचर से लाया जा रहा था. इस दौरान उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथियों से कहा कि वह खुद चलकर मेडिकल कैंप तक जाना चाहते हैं. इसके बाद जब वे कैंप में पहुंचे, तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सलामी देकर कहा कि मैं जल्द लौटकर इसका जवाब दूंगा. पर हालात को कुछ और ही मंजूर था. ज्यादा रक्त स्त्राव होने के कारण लेफ्टिनेंट पारीक की सेहत बिगड़ गई. घरवालों को अब भी याद हैं उनके आखिरी शब्द. उन्होंने कहा था- मुझे आज मां की बहुत याद आ रही है. लेफ्टिनेंट की मां का इंतकाल काफी पहले हो चुका था.