कहीं दान-पुण्य का दौर तो कहीं पतंगबाजी का शोर जयपुर. दान-पुण्य और पतंगबाजी का पर्व मकर संक्रांति सोमवार को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया. सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ छोटी काशी जयपुर के गलता तीर्थ में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. वहीं, मंदिरों में आराध्य के दर्शन के बाद दान-पुण्य का दौर शुरू हुआ. मंदिरों में पतंगों की झांकी सजाई गई. शहर वासियों ने छतों पर चढ़कर पतंगबाजी का जमकर लुत्फ उठाया.
रविवार देर रात 2:43 बजे सूर्य ने तुला राशि से मकर राशि में प्रवेश किया. करीब 31 साल बाद मकर संक्रांति का प्रवेश अश्व पर हुआ. इससे व्यापारिक क्षेत्र में प्रगति और आमजन के वैभव में भी वृद्धि होगी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति देवताओं का प्रभात काल माना गया है. इसलिए इस दिन स्नान, दान, अनुष्ठान आदि का महत्व बढ़ जाता है.
ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार मकर संक्रांति पर देवता धरती पर अवतरित होते हैं. तुलसीदास ने भगवान श्री राम के बाल्यकाल का जिक्र करते हुए रामचरितमानस में लिखा है कि 'राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाई' ये श्लोक इसी दिन भगवान राम की ओर से उड़ाई गई पतंग का वर्णन करते हुए लिखा गया था.
इसी दिन भगवान राम और भगवान हनुमान की मित्रता भी हुई थी. वहीं, शहर के मंदिरों में पतंग-डोर की झांकी सजाई गई. आराध्य गोविंददेव जी मंदिर में ठाकुरजी ने राधा-रानी के साथ रियासतकालीन सोने की पतंग उड़ाई. उनकी चांदी की चरखी राधाजी और सखियां ने थामी. ठाकुर जी कि इस विशेष झांकी के दर्शन के लिए श्रद्धालु मंदिर में उमड़े और इस विहंगम झांकी को अपने मोबाइल कैमरा में भी कैद किया. यहीं से लोगों ने दान-पुण्य की भी शुरुआत की.
इसे भी पढ़ें :दड़ा महोत्सव : मकर संक्रांति पर बूंदी में खेला गया 800 साल पुराना दड़ा, जानें परंपरा व खेल की खासियत
मकर संक्रांति पर 14 वस्तुओं का दान (कलपने) का विशेष महत्व है. सुहागिन महिलाओं ने सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी सास-ससुर को कपड़े पहनाने, स्टील-प्लास्टिक का सामना, पूजन सामग्री और सुहाग का सामान गरीबों और सुहागिन महिलाओं को कलपने की परंपरा का निर्वहन किया. कुछ लोगों ने अपनी राशि के अनुसार भी दान पुण्य किया. बता दें कि मकर संक्रांति को मलमास का भी समापन हुआ. इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी. हालांकि पंचागीय सावे 16 जनवरी से शुरू होंगे.