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जयपुर में कौमी एकता का प्रतीक है मकर संक्रांति और पतंगबाजी, हांडीपुरा है इसका गवाह

Makar Sankranti in Jaipur, जयपुर में मकर संक्रांति का पर्व कौमी एकता का भी प्रतीक है. यहां पतंग कारोबार से जुड़े ज्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि इस त्यौहार का ताल्लुक हिंदू समुदाय से हैं. दशकों से जयपुर में संक्रांति और पतंगबाजी इन दोनों ही समुदाय को साथ लेकर चलती आ रही है और इसका गवाह है परकोटा क्षेत्र में राजा राम सिंह द्वितीय का बसाया हांडीपुरा इलाका.

Makar Sankranti in Jaipur
Makar Sankranti in Jaipur

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 13, 2024, 5:10 PM IST

जयपुर में कौमी एकता का प्रतीक बना मकर संक्रांति का पर्व

जयपुर. छोटी काशी में मकर संक्रांति का पर्व कौमी एकता का भी प्रतीक है. यहां पतंग कारोबार से जुड़े ज्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि इस त्यौहार का ताल्लुक हिंदू समुदाय से हैं. दशकों से जयपुर में मकर संक्रांति और पतंगबाजी इन दोनों ही समुदाय को साथ लेकर चलती आ रही है. यही वजह है कि आज यह पर्व किसी एक धर्म तक सीमित न होकर कौमी एकता का प्रतीक बन गया है और इसका गवाह है परकोटा क्षेत्र में राजा राम सिंह द्वितीय की ओर से बसाया गया हांडीपुरा इलाका.

आपसी भाईचारे का पर्व मकर संक्रांति :लखनऊ से पतंगबाजी के लिए खास तौर पर लाए गए परिवारों को सवाई राजा राम सिंह द्वितीय ने हांडीपुरा क्षेत्र में बसाया था, जो आज पतंग-मांझे का हब है. आज जयपुर में पतंग के इस कारोबार से सैकड़ों लोग जुड़े हैं. खास बात यह है कि पतंगबाजी और हांडीपुरा ने हमेशा मजहबी तकरार को दूर रखा है. यहां गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिलती है, जिसमें पतंग बनाने से लेकर बेचने वाले सभी कारोबारी मुस्लिम समुदाय से आते हैं. जबकि पतंग खरीदने के लिए हिंदू समुदाय के लोग पहुंचते हैं. यही वजह है कि यहां मकर संक्रांति सिर्फ हिंदुओं का पर्व नहीं, बल्कि इस पर्व को सभी जाति-धर्म के लोग मिलकर मनाते हैं और पतंगबाजी का लुत्फ उठाते हैं.

जयपुर में सजकर तैयार पतंग बाजार

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बाजार में मिल रही 20 से 500 तक की पतंग :मकर संक्रांति पर जयपुर में पतंग महोत्सव का अपना ही क्रेज है. यही क्रेज जयपुर के हांडीपुरा क्षेत्र में भी नजर आ रहा है, जहां पतंग का बाजार सजकर तैयार है. यहां कार्टून कैरेक्टर से लेकर बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री के सितारे और राजनेताओं की तस्वीरों से सजी पतंगे बाजारों में मिल रही हैं. गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल और उत्तर प्रदेश से भी यहां पतंगे मंगवाकर बेची जा रही है. बाजार में 20 रुपए से लेकर 500 रुपए तक की पतंगे मौजूद हैं. वहीं, पतंग की कीमत उसकी क्वालिटी और साइज पर निर्भर करती है.

40 साल से शौकिया बना रहे पतंग :चूंकि इस बार मकर संक्रांति का पर्व दो दिन 14 व 15 जनवरी को मनाया जा रहा है. ऐसे में बाजार में बिक्री भी ज्यादा हो रही है. वहीं, हांडीपुरा में राजनेताओं की पतंगे बनाने के लिए मशहूर अब्दुल गफूर ने इस बार कई नए चहरों की पतंगे तैयार की है. ये पहला मौका है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा और लगातार सुर्खियों में बने हवामहल विधायक बालमुकुंद आचार्य के कट आउट वाली पतंगे तैयार की गई हैं. पतंग बनाने वाले अब्दुल गफूर ने बताया कि वो करीब 40 साल से शौकिया तौर पर ये पतंगे बनाते आ रहे हैं. राजनेताओं के अलावा अभिनेता और खिलाड़ी भी इसमें शामिल हैं. वो सम्मान के रूप में पतंग तैयार करते हैं, लेकिन उन्हें बेचते नहीं है. हां राजनेताओं को उनकी पतंगे गिफ्ट जरूर करते हैं. उन्होंने भैरोंसिंह शेखावत, अशोक गहलोत को भी उनके कट आउट वाली पतंगे तोहफे में भेंट की हैं.

40 साल से शौकिया तौर पर अब्दुल गफूर बना रहे पतंग

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वहीं, जयपुर में बचपन से पतंगबाजी कर रहे हैं नीरज ने बताया कि मकर संक्रांति पर पतंगबाजी का बहुत शौक है. हांडीपुरा पतंग मांझे का हब है. यहां कम दाम में बेहतर चीज मिल जाती हैं और इस बार 14 के बाद 15 जनवरी की भी प्रशासन की ओर से अवकाश घोषित किया जा चुका है. ऐसे में स्कूल, कॉलेज, कोचिंग जाने वाले छात्रों को पतंगबाजी करने का भी भरपूर समय मिलेगा. वहीं मोहसिन शेख ने बताया कि 14-15 दोनों दिन घर की छत पर डीजे साउंड लगाकर पूरे परिजनों और दोस्तों के साथ एंजॉय करने वाले हैं. इसके साथ ही घर पर गजक, रेवड़ी और दाल की पकौड़ी बनाकर पूरे दिन छत पर चढ़े रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि मकर संक्रांति सिर्फ हिंदुओं का नहीं बल्कि सभी जाति-वर्ग का त्यौहार है.

मसलों से तैयार किया मांझा :वहीं, जब पतंग की बात हो रही है तो मांझा और सद्दा की बात भी होनी जरूरी है. बरेली से जयपुर जाकर मांझा बेच रहे तौफिक ने बताया कि 350 चरखी से मांझा बाजार में उपलब्ध है. जबकि बड़ी चरखी 700 तक की बिक रही है. मकर संक्रांति पर हिंदू-मुस्लिम सभी यहां से मांझा खरीद कर लेकर जा रहे हैं. मांझे में भी ढील और खैच का मांझा एक साथ तैयार किया गया है. मांझे को सुहागा, इसबगोल, तज, पत्ती जैसे मसालों से तैयार किया गया है. खास बात यह है कि ये सभी देशी मसाले हैं, जिससे कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. उन्होंने बताया कि कुछ लोग यहां चाइनीस मांझे भी मांग रहे हैं, लेकिन हम इसे नहीं बेचते हैं.

मसलों से तैयार किया मांझा

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बहरहाल, एक दौर था जब राजा राम सिंह अपनी तुक्कल उड़ाया करते थे और जलमहल की पाल पर भी पतंगबाजों के बीच दंगल आयोजित होते थे. आज समय के साथ-साथ पतंग और मांझा बनाने से लेकर पतंगबाजी में बदलाव आया है, लेकिन आज मकर संक्रांति पर पतंगबाजी जयपुर शहर की पहचान बन गया है.

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