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Shaheed Diwas 2023: आजादी से पहले तीन बार राजस्थान आए थे बापू, जानें क्यों हर बार अजमेर-ब्यावर का किया रुख

राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की आज पुण्यतिथि है, जिसे शहीद दिवस के रूप में मनाया (Mahatma Gandhi Punyatithi) जाता है. गांधी जी को उनके व्यक्तित्व, योगदान के लिए बापू, महात्मा गांधी जैसे नामों से संबोधित किया जाता है. वो सदैव सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे. आज हम आपको बापू के अजमेर-ब्यावर से जुड़े खास रिश्ते के बारे में बताएंगे.

Mahatma Gandhi 75th death anniversary today
Mahatma Gandhi 75th death anniversary today

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Published : Jan 30, 2023, 8:13 AM IST

Updated : Jan 30, 2023, 8:32 AM IST

आजादी से पहले तीन बार राजस्थान आए थे बापू

जयपुर. कोई उन्हें बापू कहता है तो कोई राष्ट्रपिता और अपने व्यक्तित्व व योगदान के कारण ही मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा की संज्ञा से अलंकृत किया गया. जिसके बाद उन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाने लगा. आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है और इस दिन को उनकी याद में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. वहीं, बापू ने अहिंसा को परम धर्म बताया और इसी संदेश को उन्होंने देश-दुनिया में फैलाया. आज ही के दिन 30 जनवरी, 1948 की शाम को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को गोली मार दी थी. जिसमें उनकी मौत हो गई, लेकिन प्राण त्यागने के बाद भी उनका संदेश अमर हो गया.

इस संदेश को लेकर तीन बार राजस्थान आए बापू:आजादी से पूर्व बापू तीन बार राजस्थान आए थे और हर बार अजमेर-ब्यावर में प्रवास किए. अजमेर को राजस्थान में स्वाधीनता संग्राम का केंद्र बनाने, यहां आकर विधवा विवाह की प्रशंसा करने और पंडित चंद्रशेखर से हुए उनके शास्त्रार्थ के किस्से आज भी गांधी विचारकों के जहन में है. वहीं, देश के स्वाधीनता आंदोलन को जन आंदोलन बनाने वाले महात्मा गांधी की 75वीं पुण्यतिथि पर गांधी विचारक सवाई सिंह ने ईटीवी भारत ने खास बातचीत में महात्मा गांधी के राजस्थान प्रवास को लेकर कई अहम बातें बताई.

स्वाधीनता की अलख जगाने आए बापू:उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने अपने जीवन दर्शन से लाखों लोगों को अपने साथ जोड़कर सम्पूर्ण भारत में एक बड़ा आन्दोलन तैयार किया था. गांधीजी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारत भ्रमण किया. राजस्थान से उनका खासा लगाव था, लेकिन वो अपने जीवनकाल में केवल तीन बार ही राजस्थान आए थे. 1921, 1922 और 1934 में स्वाधीनता की अलख जगाने के लिए वो राजस्थान आए. खास बात यह है कि गांधी जी तीनों ही बार अजमेर में ठहरे.

गिरफ्तारी की फिराक में थी इंग्लिश सल्तनत:गांधीजी का मानना था कि देशी राजा अंग्रेजी हुकूमत के सहारे ही टिके हैं. ऐसे में उन्होंने अजमेर आकर असहयोग आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए अंग्रेजों से सीधे लड़ाई को चुना. साथ ही 1921 में जब पहली बार बापू अजमेर आए तो इंग्लिश सल्तनत उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी, लेकिन जनशक्ति को देखते हुए उनका साहस नहीं हुआ. इस तरह पूरे राजस्थान में असहयोग आंदोलन की बात पहुंची और जल्द प्रजामंडल यहां स्वाधीनता के लिए सक्रिय हो गए.

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बापू ने मुस्लिम समाज से की ये अपील: इसके बाद 1922 में जमीयत-ए-उलमा के राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया और सभा को संबोधित किया. गांधी जी ने मुस्लिम समाज को भी स्वाधीनता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए उनसे अहिंसा के मार्ग पर चलने की अपील की थी. हालांकि कुछ लोगों ने अहिंसा की बात पर विरोध दर्ज कराया था. गांधी जी ने एक शिक्षक की तरह उन्हें समझाया तब सभी अहिंसक आंदोलन के लिए तैयार हुए. इसी साल 10 मार्च को उन्हें अंग्रेजों ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.

ब्यावर में पहला विधवा विवाह:गांधी जी की इन तीन अजमेर यात्राओं में सबसे महत्वपूर्ण 1934 की यात्रा थी. अपनी नौ महीने की हरिजन यात्रा के सिलसिले में गांधीजी 4 जुलाई की रात को अजमेर शहर आए. यहां 5 जुलाई को महिलाओं के सम्मेलन को संबोधित किया और हरिजन कोर्स के लिए महिलाओं से समर्थन की मांग की तो बड़े पैमाने पर महिलाओं ने अपने गहने तक दे दिए. इसके बाद 6 जुलाई को ब्यावर पहुंचे. अजमेर से गांधी जी तड़के मोटर से रवाना होकर ब्यावर पहुंचे. वहीं, उनके ब्यावर पहुंचने के साथ ही एक घटना घटी जो कि ऐतिहासिक बन गई. उस जमाने में विधवा विवाह किसी क्रांति से कम न था.

ये कदम उठाने वाले साहसी व्यक्ति ब्यावर के गोविन्द प्रसाद कौशिक थे. ब्यावर में ये पहला विधवा विवाह था. कौशिक की विधवा पुत्री शारदा का विवाह दिल्ली के गोपालचंद्र शर्मा के साथ हुआ. इसमें भिवानी हरियाणा के बड़े कांग्रेसी नेता नेकीराम शर्मा भी शामिल हुए. गांधी जी विवाह में तो शामिल नहीं हुए थे. लेकिन नेकीराम शर्मा नव दंपती को गांधी जी के पास आशीर्वाद दिलाने के लिए लेकर गए तो गांधी जी अत्यंत प्रसन्न हुए और नवविवाहित जोड़े को अपना आशीर्वाद दिया. लेकिन वधू को जेवर पहने देख कर उन्होंने कहा कि ये बोझ क्यों लादी हो? तब वधू ने उस गहने को उतारकर हरिजन कोष में दिया.

मिशन ग्राउंड पर गांधी की सभा: ब्यावर प्रवास के दौरान मिशन ग्राउंड पर गांधी जी की सभा हुई. इस सभा में स्थानीय जैन साधुओं ने गांधी जी को मानपत्र दिया और जैन परंपरा का त्यागकर हरिजन कल्याण कोष के लिए धन संग्रह किया. यहीं एक 24 साल के युवा पंडित चंद्रशेखर ने अपने साथियों के साथ गांधी जी को काले झंडे दिखाए. ये नौजवान काशी से शिक्षा प्राप्त संस्कृत का विद्वान था. उसके बाद पंडित चंद्रशेखर गांधीजी से मिले और उनको शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी. इसके जवाब में गांधी जी ने हंसते हुए कहा कि तुम घोषणा कर दो कि गांधी बिना शास्त्रार्थ के ही हार गया. ये घटना साधारण-सी लगती है, लेकिन ब्यावर की जमीन पर इतिहास रच गई. पंडित चंद्रशेखर आगे चलकर पुरी के शंकराचार्य बने.

जयपुर स्टेशन पर बापू का स्वागत:सवाई सिंह ने बताया कि उनका हमेशा ही अजमेर का दौरा रहा. उस वक्त जयपुर राजधानी नहीं थी. हालांकि, 1906 में राजकोट जाते वक्त महात्मा गांधी जयपुर रेलवे स्टेशन से गुजरे थे. तब स्टेशन पर ही बड़े पैमाने पर भीड़ इकट्ठी हो गई थी. महात्मा गांधी इससे पहले दक्षिण अफ्रीका में लड़ाई लड़ चुके थे. इस वजह से उनकी ख्याति भारत में बड़े पैमाने पर हो गई थी. जब वो यहां से राजकोट के लिए गुजरे तो महज उन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग स्टेशन आ गए थे.

वहीं, हाल ही में रिलीज हुई गांधी गोडसे एक युद्ध फिल्म को लेकर उन्होंने कहा कि ये एक अव्यवहारिक और शर्मनाक बात है. गोडसे एक हत्यारा था. सवाई सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने समानांतर दो लड़ाई लड़ी, एक स्वाधीनता के लिए और दूसरी समाज में समानता के लिए. उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए हर वर्ग, हर जाति-धर्म के लोगों को जोड़ा. यही वजह है कि जहां एक वर्ग नफरत फैलाने में लगा हुआ है. वहीं गांधी विचारक सद्भाव सम्मेलन कर रहे हैं. गांधीजी के रचनात्मक कार्यों को भी सशक्त बनाने का काम किया जा रहा है.

इधर, एक गांधी विचारक जयपुर में सर्वधर्म प्रार्थना सभा बन रहा है. जिसके लिए सद्भाव की मिट्टी के प्रतीक के रूप में गांधी जी से जुड़े प्रमुख स्थान (जन्म स्थल पोरबंदर, अहमदाबाद में उनका पहला आश्रम, दूसरा आश्रम साबरमती, महाराष्ट्र में सेवाग्राम आश्रम और दिल्ली राजघाट) से मिट्टी लिया जाएगा.

Last Updated : Jan 30, 2023, 8:32 AM IST

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