जयपुर.ऐसा कहा जाता है कि एक घने जंगल में भगवान गणेश को शिशु रुप में माता पार्वती छोड़कर चली गई. उस जंगल में हिंसक जीव-जन्तु घूमते रहते थे. कई सालों में कभी-कभार उस जंगल से ऋषि मुनि गुजरते थे. उस भयानक जंगल में एक सियार ने उस शिशु यानि भगवान गणेश को देखा और वह उनके करीब जाने लगा. पुराणों के अनुसार तभी उसी समय वहां से ऋषि वेद व्यास के पिता पराशर मुनि गुजरे और उनकी दृष्टि उस अबोध बालक पर पड़ी और उन्होंने देखा की एक सियार भी उस शिशु की ओर बड़ रहा है. पहले तो पराशर मुनि ने सोच कि कहीं यह इंद्र का कोई खेल या माया तो नहीं जो मेरा तप भंग करना चाहता हो.?
महर्षि पराशर तेजी से शिशु की ओर बढ़े महर्षि को देखकर वह सियार अपनी जगह पर ही रुक गया और फिर चुपचाप ही वन में कहीं गुम हो गया. सियार के जाने के बाद महर्षि पराशर ने उस शिशु को काफी ध्यान से देखा. उस शिशु कि चार भुजाएं थीं. रक्त वर्ण और गजवदन था. वही उसने सुंदर वस्त्र भी पहने हुए थे. महर्षि ने उसके छोटे चरणों को देखा तो उस पर ध्वज, अंकुश और कमल की रेखाएं स्पष्ट नजर आ रही थी.
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