जयपुर.एक बार साईं के एक भक्त ने साईं बाबा को भोजन के लिए घर पर बुलाया. समय से पहले ही साईं बाबा कुत्ते का रूप धारण करके भक्त के घर पहुंच गए. साईं के भक्त ने अनजाने में चूल्हे में जलती हुई लकड़ी से कुत्ते को मारकर भगा दिया. इसके बाद जब साईं बाबा नहीं आए, तो उनका भक्त घर पर जा पहुंचा. तब बाबा मुस्कुराये और कहा 'मैं तो तुम्हारे घर भोजन के लिए आया था. लेकिन तुमने जलती हुई लकड़ी से मारकर मुझे भगा दिया.' साईं का भक्त अपनी भूल पर पछताने लगा और उनसे माफी मांगी. साईं बाबा ने स्नेह पूर्वक उसकी भूल को क्षमा कर दिया.
भिक्षा को जीवों के साथ बांटकर खाते थे साईं
शिरडी के लोग शुरू में साईं बाबा को पागल समझते थे. लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानने के बाद भक्तों की संख्या बढ़ती गई. साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे. वे टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा किया करते थे. सभी सामग्रियों को वे द्वारिका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे. यहां कुत्ते, बिल्लियां, चिड़िया सभी आकर उस खाने का कुछ अंश खा लेते थे. इतना ही नहीं बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बांट कर खाया करते थे.