गया/ जयपुर. मोक्ष की नगरी गया में आठवें दिन का महत्व 16 वेदियों पर है. विष्णुपद स्थित 16 वेदियों पर 8वें दिन पिंडदान करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है. गया में श्राद्ध करने से सात गोत्र और 101 कुल का उद्धार होता है.
पिंडदान करने से पूर्वजों को होती है मोक्ष की प्राप्ति कहा जाता है कि दूसरे स्थानों पर पितर आह्वान करने पर आते हैं, लेकिन गया में अपने पुत्र को आया हुआ देखकर वह स्वयं आ जाते हैं. गया तीर्थ पिंडदान करने का फल हर कोई चाहता है. इस क्रिया को क्रोध और लोभ को त्याग कर करना चाहिए. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं. उनके घर का जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं.
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पवित्र मन से करना चाहिए पिंडदान
पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं.
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शिवलोक की होती है प्राप्ति
पिंडदान के आठवें दिन 16 वेदी नामक तीर्थ पर अवस्थित अगस्त पद, क्रौंच पद, मतंगपद, चंद्रपद, सूर्यपद, कार्तिकपद में श्राद्ध करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है. वहीं शास्त्र ने 16 वेदी के अंतिम कर्मकांड में रोगग्रस्त श्रद्धालुओं को कुछ खाकर दान करने का आदेश दिया है. आठवां दिन पिंडदान करने से पहले नित्यकर्म कर, पूर्वजों को मन में रखकर 16 वेदियों के पास स्थल पर बैठकर पिंडदान आरंभ करना चाहिए. 16 वेदी का स्थल देव स्थल है, जहां 16 देवता स्थान ग्रहण करते हैं. पिंडवेदी स्तंभ पर पिंड साटने की परंपरा नहीं है. यहां सभी पिंडों के भांति पिंड अर्पित कर सकते हैं.
शिवलोक की प्राप्ति का स्रोत है पिंडदान सात गोत्र इस प्रकार है:
- पिता का गोत्र
- माता का गोत्र
- पत्नी का गोत्र
- बहन का गोत्र
- बेटी के पति का गोत्र
- बुआ का गोत्र
- मौसी का गोत्र
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101 कुल इस प्रकार है:
- पिता के 24
- माता के 20
- पत्नी के 16
- बहन के 12
- बेटी के पति के11
- बुआ के 10
- मौसी के 8