जयपुर.राजस्थान भाजपा में बतौर प्रदेशाध्यक्ष नये चेहरे के रूप में चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी पर दाव लगाया गया है. दो बार के सांसद सीपी जोशी सधी छवि और उम्दा सांसद के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. मेवाड़ की पृष्ठभूमि से आने वाले जोशी का विवादों से नाता नहीं रहा. फिलहाल पार्टी में उनकी छवि को निर्गुट नेता के रूप में देखा जाता है. यही वजह रही कि जब-जब राजस्थान में पार्टी प्रेसिडेंट के पद पर नये चेहरे की बात आती, तो चर्चा में आने वाले प्रमुख नामों में से ओम प्रकाश माथुर, गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुनराम मेघवाल के ऊपर सीपी जोशी के नाम को तरजीह दी गई.
हालांकि पूनिया अपनी कुर्सी पर तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और मौजूदा दौर उन्हें एक्सटेंशन के रूप में मिला था. उधर छात्र राजनीति में कभी एनएसयूआई से ताल्लुक रखने वाले जोशी की गिनती मौजूदा दौर में संघ के चहेते नेताओं के रूप में होती है. वहीं युवा मोर्चे में भी उनके काम और संगठन को संचालित करने के तरीके को सराहा गया था. माना जा रहा है कि 47 साल के सीपी जोशी आने वाले चुनाव में पार्टी के लिये यूथ आइकन बनेंगे. जोशी चित्तौड़गढ़ जिले के भादसोदा के रहने वाले हैं और उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं. उन्होंने जिला परिषद में सदस्य के रूप में अपनी भूमिका अदा की. वे 2005 से 2010 तक उप प्रधान भी रहे हैं. अब वे राजस्थान भाजपा में 15वें अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका अदा करेंगे.
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ब्राह्मण चेहरे पर दाव:राजस्थान की राजनीति में भाजपा की ओर से ब्राह्मणों को हाशिये पर रखने के आरोप लंबे समय से लग रहे थे. जाहिर है कि प्रदेश में करीब 8 फीसदी यानी 80 लाख के करीब ब्राह्मण आते हैं. ऐसे में इस तबके को नजरअंदाज किया जाना भाजपा के लिये चुनावी साल के लिहाज से हित में नहीं था. गौरतलब है कि पार्टी से टूटकर अलग दल बनाने वाले घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा भेजकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने ब्राह्मण वोट बैंक की नाराजगी को कम करने की कोशिश की थी.
19 मार्च को जयपुर के विद्याधर नगर में हुई ब्राह्मण महापंचायत में समाज की एकता ने सियासी पंडितों को इशारा दे दिया. इस कार्यक्रम के दौरान सीपी जोशी ने कहा था कि सनातन की रक्षा के साथ समाज हित में काम करना चाहिए. साथ ही उन्होंने समाज के नेताओं को आलोचना से बचने की सीख भी दी थी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर सवर्ण वोट बैंक, चुनाव का नतीजा तय करता है. राजस्थान में 200 विधायकों में से केवल 18 ब्राह्मण समुदाय से हैं. ऐसे में महापंचायत के तत्काल बाद राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी में चेहरे को बदला जाना सियासी संदेश के रूप में देखा जा रहा है.
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माना जा रहा है कि सीपी जोशी के जरिये ना सिर्फ पार्टी ब्राह्मण वोट बैंक को टारगेट करेगी, बल्कि सवर्ण समाज को रिझाने का पूरा प्रयास करेगी. हालांकि इस दौड़ में पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी भी थे, लेकिन पार्टी ने फ्रेश चेहरे पर दांव खेलना उचित समझा. राजस्थान में संगठन के प्रमुख के रूप में सीपी जोशी सातवें ब्राह्मण हैं, उनके पहले हरिशंकर भाभड़ा, भंवरलाल शर्मा, ललित किशोर चतुर्वेदी, रघुवीर सिंह कौशल, महेश चंद्र शर्मा और अरुण चतुर्वेदी जैसे बड़े ब्राह्मण नेताओं ने काम किया है. प्रदेश में बीजेपी की 42 साल की राजनीति में 22 साल के कार्यकाल में बतौर प्रदेशाध्यक्ष ब्राह्मण समाज से आने वाले नेताओं ने पार्टी का नेतृत्व किया है.
गुटबाजी पर लगेगी लगाम: प्रदेशाध्यक्ष पद पर ताजपोशी के साथ ही सीपी जोशी ने अपनी बातों में इरादों को जाहिर कर दिया. उन्होंने कहा कि मैं कार्यकर्ता बनकर काम करुंगा. जोशी ने खुद के चयन को कार्यकर्ता की भूमिका के आधार पर बताया. राजस्थान के संगठन में गुटबाजी को लेकर अपनी बात भी उन्होंने रखी और कहा कि मैं किसी गुट का नहीं हूं. मैं सबको साथ लेकर चलूंगा. जोशी ने कहा कि अध्यक्ष की जिम्मेदारी को भी मैं कार्यकर्ता बनकर सबके मार्गदर्शन और तालमेल के साथ अदा करुंगा, ताकी हम साल 2023 और 2024 के चुनाव में पार्टी को जीत दिला सकें.