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Karni Sena Founder : खून से इतिहास लिखने वाले कालवी कहते थे- जो जात का नहीं, वो राष्ट्र का कैसे होगा - Jaipur Latest News

श्री राजपूत करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी का मंगलवार को जयपुर में निधन हो गया. खून से इतिहास लिखने की हमेशा बात करने वाले कालवी कहते थे कि जो जात का नहीं, वो राष्ट्र का कैसे होगा. आइए जानते हैं कालवी के सफर के बारे में...

करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी का सफर
करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी का सफर

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Published : Mar 14, 2023, 4:25 PM IST

जयपुर.लोकेंद्र सिंह कालवी, राजस्थान का वो चर्चित नाम जिसे न केवल देश के राजनीतिज्ञ पहचानते हैं, बल्कि फिल्मी पर्दे के लोग भी उन्हें बखूबी जानते हैं. खिलाड़ी से राजनीति और राजनीति से समाज के अधिकारों की बात करने वाले श्री राजपूत करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी का लंबी बीमारी के बाद सोमवार देर रात जयपुर के अस्पताल में निधन हो गया. कालवी सामाजिक न्याय मंच के अगुवा के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने राजपूत समाज को अन्य जातियों से जोड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

राजपूत समाज के लिए सबसे पहले आरक्षण की आवाज उठाने वाले कालवी का सफर एक खिलाड़ी से शुरू हुआ था. शायद नियति ने उन्हें समाज की सेवा के लिए ही चुना था. राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बीच कालवी को आज समाज के उस स्तम्भ के तोर पर पहचाना जाता है, जिसने हमेशा ही समाज के लिए खून बहाने की बात की. कालवी कहा करते थे, 'जो जात (जाति/समाज) का नहीं हुआ, वो राष्ट्र का भी नहीं होगा.'

कौन हैं लोकेंद्र सिंह कालवी ? :राजस्थान के नागौर जिले के कालवी गांव में पैदा हुए लोकेन्द्र सिंह कालवी के पिता का नाम कल्याण सिंह कालवी था. वे पीएम चंद्रशेखर सरकार में भारत सरकार में केंद्रीय मंत्री थे. राजनीति भले ही लोकेंद्र सिंह कालवी को विरासत में मिली, लेकिन वो समाज में एस बड़ा नाम बनकर उभरे. कालवी की मेयो कॉलेज अजमेर से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखने वाले लोकेंद्र सिंह एक अच्छे वक्ता भी थे. नेशनल डिबेट में मजबूती से बात रखने के माहिर कालवी बास्केटबॉल के अच्छे खिलाड़ी भी रहे.

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राजनीतिक सफर :लोकेंद्र सिंह कालवी को वैसे तो राजनीति विरासत में मिली थी, लेकिन राजनीति में वे कभी सफल नहीं हुए. 1993 में भी कालवी ने नागौर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी. उसके बाद 1998 के लोक सभा चुनावों में लोकेंद्र सिंह कालवी ने बाड़मेर-जैसलमेर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उस वक्त भी उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा. इसके बाद लोकेंद्र सिंह कालवी राजपूत समाज के लिए आरक्षण की लड़ाई को शुरू की. कालवी ने साल 2003 में लोगों के साथ मिलकर सामाजिक न्याय मंच का गठन किया था.

सामाजिक न्याय मंच के बैनर पर वर्ष विधानसभा चुनाव 2003 में 65 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन चुनाव में सिर्फ एक उम्मीदवार देवी सिंह भाटी को ही जीत मिली. सामाजिक मंच आगे बढ़ता उससे पहले आपसी कलह के कारण सामाजिक न्याय मंच से कालवी का जल्द ही मोहभंग हो गया. उसके बाद उन्होंने 2006 में श्री राजपूत करणी सेना का गठन किया. युवाओं को साथ जोड़ कर बनाई गई करणी सेना के समाज के आरक्षण के साथ इतिहास से जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने के मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहे.

जोधा-अकबर से पद्मावत तक विरोध :राजस्थान में राजपूत समाज के आरक्षण को लेकर लोकेन्द्र सिंह कालवी समाज के युवाओं को एकजुट कर ही रहे थे कि इसी बीच 2008 में जोधा अकबर सीरियल और फिल्म ने करणी सेना को एक नया मुद्दा दे दिया. इतिहास से जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने के मुद्दों पर हुआ करणी सेना का विरोध अचनाक सुर्खियों में आ गया. विरोध के बीच नाटक के डायरेक्टर को जयपुर आकर करणी सेना से समझौता करना पड़ा था. इसके बाद फिर 2016 में फिल्म पद्मावत को लेकर भी विरोध दर्ज कराया. हालात यहां तक बने कि शूटिंग के सेट पर न केवल तोड़-फोड़ हुई, बल्कि फिल्म निर्माताओं के साथ मारपीट भी की गई. पद्मावत के विरोध की आग राजस्थान के अलावे अन्य राज्यों में भी पहुंच गई थी, जिसकी वजह से कई राज्यों में फिल्म को रिलीज नहीं किया गया.

आनंदपाल एनकाउंटर के मुद्दे पर दिखाई ताकत :लोकेंद्र सिंह कालवी समाज से जुड़े प्रत्येक आन्दोलन में काफी मुखर रहे. आरक्षण और इतिहास के साथ छेड़छाड़ होने वाली फिल्मों को लेकर किये आंदोलन के बाद वर्ष 2017 का आनंदपाल प्रकरण में करणी सेना ने सरकार को समाज की ताकत भी दिखाई. ऐसा पहली बात था कि अलग-अलग धड़ों में बंटी करणी सेना भी एक मंच पर आ गई थी. 2003 के बाद संभवतः राजपूत समाज की ओर किया गया ये बड़ा आंदोलन था, जिसमे तत्कालीन सरकार को भी बैकफुट पर ला दिया था.

बेटे के पास विरासत :युवाओं के दम पर खड़ी हुई लोकेंद्र सिंह कालवी की करणी सेना ने बहुत जल्द ही लोकप्रियता हासिल कर ली थी. साल 2008 में कांग्रेस ने करणी सेना के संयोजक लोकेंद्र सिंह कालवी को कांग्रेस में शामिल होने के बाद मनमुटाव शुरू हो गया. हालात यहां तक पहुंच गए थे कि नाराज कालवी ने करणी सेना को ही भंग करने का ऐलान कर दिया. उस वक्त करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष अजीत सिंह मामडोली थे, ममडोली को हटा लोकेंद्र सिंह कालवी उसके बाद 2010 में नई श्री राजपूत करणी सेना बनाई और श्यामप्रताप सिंह रुआं को इसका प्रदेशाध्यक्ष बनाया.

इसके बाद में अजीत सिंह मामडोली ने भी अपनी अलग से श्री राजपूत करणी सेना को अपने नाम से रजिस्टर्ड करवा लिया. अब राजस्थान में दो करणी सेना हो गई. कालवी करणी सेना अध्यक्ष श्याम प्रताप रुआं ने भी विवाद के बीच करणी सेना छोड़ दी. उसके बाद 2012 में महीलाप सिंह मकराणा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन 2014 में महीलाप की जगह सुखदेव सिंह गोगामेड़ी प्रदेश अध्यक्ष बनाया. कालवी और गोगामेड़ी के बीच जल्द ही वैचारिक मतभेद उभर गए और 2016 में फिर से महीलाप सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. हालांकि, लोकेंद्र सिंह कालवी ने आखिरी समय में यानी 3 महीने पहले ही महीपाल सिंह को हटा कर अपने बेटे प्रताप सिंह कालवी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था.

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