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Rajasthan Millet Program: जानिए मिलेट्स ईयर के पीछे की सोच, आखिर क्यों है बाजरे पर जोर

यूनाइटेड नेशन्स के आह्वान पर साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया जा रहा है तो वहीं अब राजस्थान में भी मोटे फसलों व खासकर बाजरे के उत्पादन और इसमें पेश आने वाली चुनौतियों के त्वरित निदान (Balraj Singh on Rajasthan Millet Program) की दिशा में काम शुरू कर दिया गया है.

Rajasthan Millet Program
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Published : Jan 31, 2023, 9:39 AM IST

जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह

जयपुर.संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर साल 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाए जाने के बीच राजस्थान में भी कृषि विभाग की ओर से आयोजनों का दौर जारी है. इस बीच जयपुर के दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र पर सोमवार दोपहर एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम को जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने संबोधित किया. वहीं, कार्यक्रम के बाद कुलपति डॉ. बलराज सिंह से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. जिसमें उनसे मोटे अनाज को लेकर जारी कार्यक्रमों के पीछे के मकसद को समझने की कोशिश की गई.

इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार के मंतव्य से लेकर समाज की जरूरत तक पर जोर दिया और बताया कि कैसे बाजरे पर फोकस रखकर लोगों की सेहत के साथ ही आर्थिक रूप से किसान को बेहतर बनाया जा सकता है. सेमिनार में मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने के लिए चुनौतियों और तैयारियों पर कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी.

दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र में प्रदर्शनी को रखे गए बाजरे

मोटे अनाज को लोकप्रिय बनाने पर जोर: राजस्थान एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (रारी) दुर्गापुरा में मिलेट्स ईयर के कार्यक्रम के बीच जोबनेर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बलराज सिंह ने आयोजन का मकसद स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में कई स्पीकर्स देशभर की अलग-अलग संस्थाओं से आए थे तो निजी क्षेत्र से भी एक्सपर्ट्स और डाइटिशियन शामिल हुए थे. डॉ. सिंह ने कहा कि राज्य में साल भर के प्रोग्राम का कैलेंडर बनाया गया है. जिसके जरिए लोगों को मोटे अनाज और विशेष रूप से बाजरे के सेवन से जुड़े स्वास्थ्य लाभ के बारे में बताया गया है.

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गिनाए जा रहे फायदे:उन्होंने ने बताया कि उनकी टीम युवाओं में मोटे अनाज को लेकर जागरूकता की दिशा में काम कर रही है और कॉलेज स्तर पर प्रेजेंटेशन और लेक्चर दिए जा रहे हैं. दुर्गापुरा कृषि अनुसंधान केंद्र पर आयोजित कार्यक्रम में मोटे अनाज की लोकप्रियता के रास्ते में आने वाली चुनौतियों पर बात की गई. इस दौरान राजस्थान के परिपेक्ष्य में भी चर्चा की गई. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती यह है कि खान-पान में मोटे अनाज का प्रचलन नहीं है. युवाओं और आने वाली पीढ़ी को एक तरफ यह समझा जा रहा है कि मोटे अनाज के जरिए लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों को कैसे दूर किया जा सकता है तो दूसरी ओर शरीर में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के फायदे भी गिनाए जा रहे हैं.

कुलपति सिंह ने कहा कि आम तौर पर बाजरे का जायका हल्के खट्टेपन की वजह से लोकप्रिय नहीं हो पाता है. दुर्गापुरा सेंटर पर इसमें वैल्यू एडिशन के जरिए स्वाद के मुताबिक नई किस्म को तैयार की कोशिश की जा रही है. गरीब के खाने वाली सोच को हटाकर युवाओं के नजरिए से मोटे अनाजों में वैल्यू एडिशन करके विकल्प तैयार किए जा रहे हैं. मोटे अनाज की सेल्फ लाइफ बढ़ाकर इसकी पहुंच सभी वर्गों के उपभोक्ताओं तक करने के लिए योजना पर मंथन किया जा रहा है.

बाजरा के किस्म

पोषण के साथ आर्थिक सेहत पर फोकस: मोटे अनाज को लेकर कृषि महकमे से जुड़े सारे विभाग अब मिलेट्स में वैल्यू एडिशन और ब्रांडिंग की फोकस कर रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि युवाओं का रुझान बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए. बाजरे जैसे अनाजों में न सिर्फ आयरन और जिंक की प्रचुर मात्रा है, बल्कि कार्बोहाइड्रेट और फाइबर भी भरपूर हैं. वहीं, रागी और जौ जैसे दूसरे मिलेट्स में फोलिक एसिड और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. जोबनेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. बलराज सिंह ने बताया कि बाजार में जौ की अच्छी किस्मे हैं, लेकिन इस साल बाजारे पर अधिक फोकस है. उनका विभाग किसान को भी आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना चाहता है. इसके लिए किसान की तकलीफ पर भी ध्यान दिया जा रहा है.

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