जयपुर. भले ही शहरी सरकार ने साधारण सभा में बजट पारित करा शहर के विकास का रास्ता साफ कर दिया हो लेकिन सच्चाई ये है कि बजट की कई घोषणाएं धरातल पर उतर ही नहीं पाती. यही एक बड़ा कारण है कि शहर के लोग अभी भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं.
बीते 5 सालों में हर साल जयपुर नगर निगम के बजट में कई करोड़ राशि बढ़ा दी जाती है लेकिन हालात ये है कि बजट की ये राशि महज कागजों तक सिमट कर रह जाती है. शहर की जरूरतों पर इसे खर्च करना शायद निगम प्रशासन भूल जाता है. बात करें साल 2018-19 की तो बीते साल बजट का महज 25 फीसदी पैसा ही शहर के विकास में लग पाया. इतना ही नहीं डोर टू डोर कचरा संग्रहण से लेकर सड़कों के निर्माण में शहरी सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई और जो अनुमान लगाया था, उससे कम पैसा ही खर्च कर पाए.
पांच साल में बजट का हाल
2015-16 में1257करोड़
2016-17 में 1352करोड़
2017-18 में 1751करोड़
2018-19में 1597 करोड़
2019-20 में 1870 करोड़
इतना ही नहीं शहर में वसूली करने के मामले में भी निगम पीछे ही रहा.... पार्किंग, विवाह स्थल, लीज, सीवरेज कनेक्शन से लेकर विज्ञापनों की साइट और यूडी टैक्स वसूल करने में निगम विफल ही साबित हुआ है. इन मदों से नगर निगम को सर्वाधिक आय होती है लेकिन बीते साल जो लक्ष्य बजट में रखा था उसको निगम पूरा नहीं कर पाई.