जयपुर. विश्व विरासत में शुमार जयपुर का परकोटा अपने स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए दुनिया भर में अपना स्थान रखता है. यहां के कलाकारों की कला ने भी विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी है. इन्हीं कलाकारों को जयपुर के राजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1857 में एक छत के नीचे लाने का काम करते हुए कलाकारों के लिए 'मदरसा ए हुनरी' की शुरूआत की. फिर 1862 में ये अजब वस्तुओं के संग्रहालय के रूप में विकसित हो गया. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार पुराने लोगों की मान्यताओं में इसे अजायबघर बोला जाता था. यहां कारीगरों को बुलाकर ब्रास, मेटल, तांबे की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाकर उनकी एग्जीबिशन लगाई जाती थी. पूरे देश में इसकी मान्यता थी. बाद में ये जगह कम पड़ने लगी. 1876 में वेल्स के प्रिंस ने वर्तमान अल्बर्ट हॉल की नींव रखी और इसके निर्माण होने पर संग्रहालय को शिफ्ट किया गया.
उन्होंने बताया कि बाद में अजबघर स्कूल ऑफ आर्ट्स में तब्दील हुआ और 2017 में इसका कंजर्वेशन करते हुए विरासत संग्रहालय का नाम दिया गया. लेकिन वर्तमान में इस संग्रहालय की शोभा सिर्फ एक पुरानी लकड़ी की बग्गी और विक्की भट्ट की ओर से बनाई गई दो विशालकाय कठपुतलियां ही बढ़ा रही हैं. ऐसे में यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को सिर्फ भवन का आर्किटेक्ट देख कर संतोष करना पड़ता है.
आर्कियोलॉजी और म्यूजियम डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. महेंद्र खडगावत ने बताया कि 2017 में राज्य सरकार ने इस भवन को विरासत संग्रहालय के रूप में बदलने का फैसला लिया. विरासत संग्रहालय में कंजर्वेशन का काम हो चुका है. वहां स्टाफ भी नियुक्त है. जल्द ही उसे म्यूजियम के रूप में डवेलप करने का काम किया जाएगा. फिलहाल वहां पहुंचने वाले पर्यटक सिर्फ आर्किटेक्ट ही देख पाते हैं. वर्तमान में कठपुतली और बग्गी के अलावा कोई एडिशनल चीज नहीं रखी गई है.