जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने भवानी मंडी की 19 बीघा भूमि विवाद से जुड़े मामले में कब्जाधारी तीन दर्जन लोगों को पाबंद किया है कि वे भूमि का बेचान नहीं (Court orders not to sale disputed land) करेंगे. इसके साथ ही यदि भूमि सरकारी पाई गई और याचिका का फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में हुआ, तो वे अपने खर्च पर निर्माण तोड़ेंगे. इसके अलावा वे निर्माण के आधार पर कोई दावा भी नहीं करेंगे. सीजे पंकज मित्थल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश अविनाश जायसवाल की जनहित याचिका पर दिए.
याचिका में अधिवक्ता डॉ अभिनव शर्मा ने अदालत को बताया कि भवानी मंडी की इस भूमि को प्रभावशाली लोगों के नाम भू-रूपान्तरण कर पट्टे जारी कर दिए गए और उस पर निर्माण की अनुमति भी दे दी. याचिकाकर्ता ने बताया कि वर्ष 2014 में राज्य सरकार और स्थानीय नगर परिषद ने याचिका दायर कर भूमि की 90बी की कार्रवाई पर आपत्ति जताई थी और भूमि को राज्य के नाम दर्ज कर लिया था.
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इसके बाद सरकार ने याचिका को वापस ले लिया और जमीन को निजी बताकर उस पर पट्टे और निर्माण की स्वीकृति जारी कर दी. दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि वर्ष 1932 में इस भूमि को तत्कालीन महाराज राजेन्द्र सिंह ने तेल मिल के लिए सेठ पेस्टोन को दान में दी थी. जिसे बाद में जयपुरिया ब्रदर्स कंपनी ने खरीद लिया और 90बी की कार्रवाई के लिए समर्पित कर उस पर पट्टे जारी कर दिए.
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वहीं निजी पट्टाधारकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि मार्च, 2021 में हाईकोर्ट ने एक अन्य जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिका के फैसले के अध्याधीन निर्माण की स्वीकृति दे रखी है. सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने भूमि के बेचान पर रोक लगाते हुए निर्माण को याचिका के निर्णयाधीन रखा है. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पूर्व में राज्य सरकार इस जमीन को सरकारी बता रही थी. वहीं अब इसे निजी भूमि बता रही है.