जयपुर. मकर संक्रांति पर दान पुण्य और पवित्र सरोवरों में स्नान का विशेष महत्व है. ऐस ही एक पवित्र स्थल है गलता तीर्थ. सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते हैं तो प्राकृतिक बदलाव होता है. चूंकि ये देवताओं का दिवस भी माना जाता है इसलिए यहां मौजूद कुंड में डुबकी लगाने और दान करने के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है. महिला पुरुष बुजुर्ग सुबह से ही यहां पहुंचकर स्नान कर दान-पुण्य करने में जुटते हैं. लोग मानते हैं कि मकर सक्रांति पर गलता कुंड में स्नान कर दान-पुण्य करने का लाभ कई गुना बढ़ जाता है.
ऋषि गालव ने की 60 हजार साल तक की तपस्या- गलता तीर्थ ब्रह्मा के पौत्र और महर्षी गलु के पुत्र ऋषि गालव की तपस्या स्थली है. शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि ऋषि गालव ने यहां 60 हजार वर्षों तक तपस्या की थी. कहा जाता है यहां गौमुख से निरंतर बहने वाली धारा गंगा की है. इससे जुड़ी एक किंवदंति भी है कि ऋषि गालव प्रतिदिन यहां से गंगा स्नान के लिए जाते थे. उनका तप और आस्था देखकर गंगा मां बहुत प्रसन्न हुई और गालव के आश्रम में स्वयं उपस्थित होकर बहने का आशीर्वाद दिया. कहते हैं तब से गंगा की धारा यहां अनवरत बहती है.
गौमुख कुंड भी खास-इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर में माना जाता है कि कितने ही तीर्थ चले जाओ, लेकिन आखिर में यदि गलता कुंड में स्नान नहीं किया तो उन तीर्थों का फल नहीं मिलता. यही बात मकर सक्रांति पर भी लागू होती है आज भी जनमानस और शहर के पुराने रहवासी सक्रांति पर गलता कुंड पर जाकर स्नान करते हैं और उसके बाद दान पुण्य करते हैं. यहां 3 कुंड मौजूद हैं. इनमें एक जहां गालव ऋषि ने तपस्या की थी. इसके अलावा एक गौमुख कुंड जहां गाय के मुख से पानी आता है, और एक जनाना कुंड महिलाओं के स्नान के लिए बना हुआ है. उन्होंने बताया कि जयपुर में भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा आराधना का उद्भव भी यहीं से हुआ. यहां वर्तमान में जो श्रीपीठ बनी हुई है, वहां भगवान श्री राम की चरणपादुका मौजूद है. जनमानस में गलता तीर्थ के रूप में है.