जयपुर. कहते हैं कि 'आपत्ति काले धर्मोनस्ति'...आपत्ति जहां होती है वहां धर्म का नाश होता है. कोरोना के इसी आपत्ति काल ने धर्म-संस्कारों को नुकसान पहुंचाया है. मानव का शरीर अंतिम सीढ़ी पर चढ़ता है तो सारे रिश्ते नाते छोड़ दुनिया को अलविदा कह देता है. कोरोना ने उन्हीं रिश्ते-नातों को छलनी-छलनी कर दिया है. एक तरफ राजस्थान में कोरोना संक्रमितों की मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है और दूसरी तरफ दम तोड़ने वाले लोगों को उनका आखिरी सफर भी रस्म के साथ नसीब नहीं हो रहा है. हालात ये हैं कि अब अंतिम संस्कार की सारी रस्में पंडित और परिजन न करके मेडिकल टीम और मोक्ष धाम के कर्मचारी कर रहे हैं.
हिंदू रीति-रिवाज से नहीं हो रहा अंतिम संस्कार...
भारत धर्म और संस्कृति का देश है. यहां बच्चे का जन्म होने पर कांसे की थाली बजाकर उत्सव मनाया जाता है. ठीक वैसे ही किसी की मृत्यु होने पर शवयात्रा निकाली जाती है. शास्त्रों में शव यात्रा की तुलना भी उत्सव से की गई है. अर्थी को फूल-मालाओं से सजाने और शवयात्रा के साथ कीर्तन करते हुए श्मशान तक जाने की पीछे भी यही भावना है. मृत्यु होने पर नाते-रिश्तेदार और परिजन हरि नाम कीर्तन करते हुए मोक्षधाम तक शवयात्रा में जाते हैं. जहां पंडित द्वारा पूरे हिन्दू धर्म की संस्कृति के हिसाब से अंतिम क्रियाएं कराते हैं, लेकिन अब ये सब रस्में नहीं हो रही हैं. कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर अब सिर्फ मेडिकल टीम के लोग ही मोक्षधाम में दाह संस्कार कर रहे हैं.
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कोरोना संक्रमित की मृत्यु होने पर अस्पताल से सीधे मोध-धाम ले जाने की मजबूरी...