भारत में रम गई फ्रांस की एलिजाबेथ जयपुर. भारत में हर साल लाखों पर्यटक यहां की खूबसूरती का दीदार करने आते हैं. इनमें से कई पर्यटक भारत के रंग में रंग जाते हैं. बात जब राजस्थान की हो तो यहां की विरासत और इतिहास सैलानियों के लिए हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहा है. कई सालों पहले फ्रांस की एलिजाबेथ भी भारत आई थीं. राजस्थान में आने के बाद वो ऐसी रम गईं कि अब वह यहां के बच्चों के लिए एलिजाबेथ मैम बन गई हैं. एलिजाबेथ बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा दे रही हैं. जयपुर के एक सामाजिक संस्था परमार्थम् ने इस काम में उनका साथ दिया.
बचपन से भारत आने का था सपना :एलिजाबेथ ने बताया कि फिलहाल वह हांडी पुरा में गरीब बच्चों को अंग्रेजी सिखाती हैं. वह काफी समय से बच्चों के साथ जुड़कर इन्हें शिक्षा देने की सोच रही थीं. जब वह 18 साल की थी, तब उन्होंने तय कर लिया था कि भारत आकर यहां के बच्चों को पढ़ाने की कोशिश करेंगी. भारत ही क्यों, इस सवाल पर एलिजाबेथ ने कहा कि शुरुआत से ही उन्हें भारत के अध्यात्म और यहां की जीवन शैली ने प्रभावित किया है. वह लगातार भारत आने के बारे में सोचती रहती थीं. उनका कहना है कि वे भारत से एक विशेष जुड़ाव रखती हैं. फ्रांस और भारत के बीच मौसम के फर्क को लेकर एलिजाबेथ ने कहा कि उन्हें यहां के मौसम से कोई शिकायत नहीं है.
एलिजाबेथ बच्चों को अंग्रेजी के साथ कुदरत का ज्ञान भी देती हैं पढ़ें. Special: शिक्षक की सजा से संवर रहा विद्यार्थियों का भविष्य, जाने क्या है इस नवाचार का उद्देश्य
एलिजाबेथ ने बताया कि वह यहां जिस सामाजिक संस्था की मदद से आई हैं, उससे जुड़ी कार्यकर्ता कल्पना उन्हें अक्सर यहां की भाषा समझने में मदद करती हैं. उन्होंने कहा कि वो खुद भी इन बच्चों से रोजमर्रा की बातचीत से हिंदी सीखने की कोशिश कर रही हैं. बच्चों से जब भी नए शब्द सीखती हैं तो उन्हें खुद भी कई बार हैरत होती है. उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ हिंदी में बात करते हुए कई बार वो खुद पर गर्व महसूस करती हैं.
अंग्रेजी तालीम के साथ कुदरत का पाठ :फ्रांस के सिलेबस के आधार पर एलिजाबेथ की कोशिश होती है कि भाषा के साथ-साथ बच्चों को प्रकृति की भी सीख दी जाए. भाषा सीख रहे बच्चों के लिए यह विषय जटिल बन सकता है, इस सवाल पर एलिजाबेथ ने कहा कि बच्चों को उन्होंने इस तरह की शिक्षा के लिए तैयार कर लिया है. वह फिलहाल हिंदी भाषा में ज्यादा शब्द तो नहीं बोल पाती हैं, लेकिन कोई हिंदी में संवाद करे तो वह आसानी से समझ जाती हैं.
हांडी पुरा में गरीब बच्चों को अंग्रेजी सिखाती हैं एलिजाबेथ पीएम मोदी पसंद हैं :एलिजाबेथ बताती हैं कि वो हिंदुस्तान में रहकर लंबे समय तक बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं, लेकिन वीजा से जुड़ी बाधाएं हैं. लंबी अवधि का वीजा नहीं होने की वजह से वह मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि हिंदुस्तानी वीजा लेने में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. अब वीजा बढ़ाने के लिए कहां अपील करें, ये भी नहीं समझ आ रहा है. एलिजाबेथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुरीद हैं. उनका कहना है कि पीएम मोदी के बारे में उन्होंने काफी कुछ सुना है और वो उन्हें काफी पसंद हैं.
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परमार्थम् के काम से हुईं प्रभावित :परमार्थम् संस्था के कोऑर्डिनेटर विशाल के मुताबिक साल 2019 में जब एलिजाबेथ भारत आई थीं तो उनकी संस्था के साथ संपर्क हुआ था. एलिजाबेथ को संस्था का काम काफी पसंद आया. इस दौरान उन्होंने संस्था के साथ जुड़कर यहां के बच्चों के लिए काम करने की इच्छा जाहिर की. साल 2022 में एलिजाबेथ ने यह फैसला लिया कि हर साल में 6 महीने के टूरिस्ट वीजा पर आकर यहां के बच्चों को पढ़ाने की कोशिश करेंगी.
एलिजाबेथ के छात्रों में शामिल योगिता बताती हैं कि उन्हें मैम ने फल और सब्जियों के नाम सिखाए हैं. आशीष कहते हैं कि उन्हें फिलहाल शब्दों की रचना का काम सिखाया जा रहा है. एकवचन और बहुवचन भी सिखाए गए हैं. इसी तरह आयुष भी अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि उन्हें अंग्रेजी की वर्तनी में काफी कुछ सीखने को मिला है. एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली कोमल बताती हैं कि वह अंग्रेजी सीख रही हैं. इसके पहले उन्हें इंग्लिश सीखने में काफी परेशानी होती थी. एलिजाबेथ अपनी कक्षा में विद्या की देवी सरस्वती और मातृभूमि की प्रतिमा भारत माता की तस्वीर भी रखती हैं. वह मानती हैं कि इन तस्वीरों की मौजूदगी से बच्चों को प्रेरणा मिलेगी और वे संस्कारवान बनेंगे.