जयपुर. भाजपा आलाकमान ने भले ही प्रदेश भाजपा का चेहरा बदल दिया हो, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का दबदबा कायम है. इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष के पदभार ग्रहण समारोह में और भाजपा कार्यालय में लगे होर्डिंग्स और बैनर में वसुंधरा राजे के फोटो को तवज्जो दो गई है. तमाम होर्डिंगों और बैनरों में वसुंधरा राजे की फोटो नजर आ रही है. जबकि जिन्होंने तीन साल पहले वसुंधरा राजे की फोटो को पोस्टर से हटाया था वो सतीश पूनिया आज होर्डिंग से गायब हो गये हैं.
वसुंधरा राजे का दबदबा
भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष सीपी जोशी के पदभार ग्रहण कार्यक्रम के दौरान उनके स्वागत के लिए भाजपा मुख्यालय और कार्यालय बाहर बड़े बड़े होर्डिंग्स और बैनर लगाए गए हैं, पार्टी की ओर से लगाये गए बैनर और होर्डिंग्स में केवल प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सीपी जोशी और वसुंधरा राजे की फ़ोटो लगी है. तमाम होर्डिंग और बैनर में वसुंधरा राजे की फ़ोटो को लेकर भाजपा गलियारों में भी खासी चर्चा है. हालांकि वसुंधरा राजे पदभार ग्रहण समारोह में वर्चुअल ही शामिल होंगी, लेकिन उनके समर्थक कई विधायक पदभार ग्रहण समारोह में शामिल हुए. माना जा रहा है कि प्रदेश में 9 महीने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वसुंधरा राजे को प्रमुखता दी जा रही है.
पूनिया ने अध्यक्ष बनने के बाद हटा दिए थे वसुंधरा राजे की तस्वीर
बता दें कि प्रदेश में करीब तीन साल पहले डॉ सतीश पूनिया के अध्यक्ष बनने के साथ पार्टी मुख्यालय पर लगे होर्डिंग्स से वसुंधरा राजे की तस्वीर को हटा दिया गया था. इसके बाद से लगातार पूनिया और वसुंधरा राजे के बीच की अदावत भी समय समय पर दिखी थी. यहां तक वसुंधरा राजे के जन्म दिन के अवसर पर हुए कार्यक्रम में जिस तरह उसी दिन युवा मोर्चे के प्रदर्शन का एलान किया उसके बाद ये अदावत ओर ज्यादा खुल कर सामने आ गई थी. जन आक्रोश यात्रा में वसुंधरा राजे की दूरी केंद्रीय नेतृत्व को भी साफ दिखी. यही वजह रही कि इस साल जनवरी में जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा राजस्थान दौरे पर आए. उसके बाद निर्देश जारी कर वसुंधरा राजे की फोटो को बीजेपी मुख्यालय में लगे होर्डिग्स में शामिल किया गया. तभी ये साफ हो गया था कि वसुंधरा राजे एक बार फिर चुनाव से पहले सक्रिय हो गई हैं. पार्टी मुख्यालय पर पोस्टरों में हुए बदलाव को भाजपा की राजनीति में बदलाव के रूप में देखा गया.