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जयपुर : 1300 साल पुराने दुर्लभ ग्रंथों की लगाई गई प्रदर्शनी, एक इंच कागज पर लिखा भक्तामर स्त्रोत भी मौजूद

राजस्थान की राजधानी जयपुर में श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के आदिनाथ भवन में जैन धर्म के 1200 से 1300 साल पुराने दुर्लभ ग्रंथों की प्रदर्शनी लगाई गई. जिसमें भारी संख्या में लोगो की भीड़ देखने को मिली.

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Published : Sep 8, 2019, 11:23 PM IST

जयपुर न्यूज, jaipur news

जयपुर. राजधानी जयपुर में मानसरोवर के मीरा मार्ग स्थित श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के आदिनाथ भवन में जैन धर्म के 1200 से 1300 साल पुराने दुर्लभ ग्रंथों की प्रदर्शनी लगाई गई. जिसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. प्रदर्शनी में विश्व की दुर्लभतम कृति में शामिल 'काष्ठ फलक' ग्रंथ भी शामिल है, जो सवंत 1899 में काष्ठ पर लिखा गया है.

वहीं इस प्रदर्शनी में एक इंच कागज पर लिखा गया भक्तामर स्त्रोत भी मौजूद है. इसके साथ करीब सात से आठ ग्रंथ ताडपत्रीय है, जो करीब 1300 साल पुराने है. यह ग्रंथ तमिल भाषा के लिखे गए है. प्रदर्शनी में सोने से लिखा गया भक्तामर स्त्रोत शामिल है, जो संस्कृत, सिंधी, रोमन और कन्नड़ चार भाषाओं में लिखा गया है.

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प्रदर्शनी का शुभारंभ रविवार को मुनि विद्यासागर महाराज संघ के सानिध्य में हुआ जो तीन दिन तक चलेगी. इसमें ताड़ पत्र पर लिखे 1300 वर्ष पुराने करीब सात से आठ ग्रंथ मौजूद है जो कन्नड़ भाषा में लिखे गए है. इनमें सिद्धांत सागर दीपक, त्रिलोक सार दीपक, रत्नत्रय विधान, पंचकल्याणक विधान, समव सरण विधान, सिद्ध विधान और भक्तामर स्त्रोत विधान आदि ग्रंथ शामिल है.

दुर्लभ ग्रंथों की लगाई गई प्रदर्शनी

प्रदर्शनी में विश्व के दुर्लभतम ग्रंथों में शामिल काष्ठ पर लिखा गया काष्ठ फलक भी है. जिसे संवत 1899 में पंडित भूधर दास ने लिखा है. इस ग्रंथ में नीति के श्लोक लिखे गए है. इसके अलावा काष्ठ पर करीब 400 साल पहले आचार्य उमा स्वामी द्वारा लिखा गया तत्वार्थ सूत्र भी है. इसके साथ ही 350 साल पुरानी आमंत्रण पत्रिका और करीब 200 साल पुराना पंचपरावर्तन का स्वरूप ग्रंथ भी शामिल है. प्रदर्शनी में काष्ठ पर लिखे गए करीब 10 ग्रन्थ शामिल है.

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यह संकलन बिना के ब्रह्माचारी संदीप सरल ने किया है, वह देशभर में इन ग्रंथों की प्रदर्शनी लगा रहे है. संदीप सरल बताते हैं कि इन ग्रंथों को दक्षिण भारत के मंदिरों से एकत्रित किया गया है. 1200 से 1300 वर्ष प्राचीन इन ग्रंथों को आचार्यों ने आत्म साधना के बल पर लिखा है. नेमी चंद्रिका नामक ग्रंथ में भगवान नेमिनाथ के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है.

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