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अलविदा 2020: कोरोना की गिरफ्त में जकड़ी रही शिक्षा...शिक्षाविद और अभिभावकों के नजरिये से कैसा रहा साल

वर्ष 2020 का साल छात्रों और शिक्षकों का खासतौर से याद रहेगा. इतनी लंबी छुट्टियां बच्चों को कभी नहीं मिल है. कोरोना काल में लाखों विद्यार्थियों का जीवन एकाएक बदल सा गया. इस दौर में ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था ने अहम भागीदारी निभाई. लेकिन शिक्षा से जुड़े कई अहम प्रोजेक्ट में देरी भी हुई. शिक्षाविद और अभिभावक इस दौर को किस नजरिए से देखते हैं. देखिये यह खास रिपोर्ट...

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कोरोना काल में कैसा रहा शिक्षा का हाल

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Published : Dec 25, 2020, 8:15 PM IST

जयपुर. महामारी कोविड-19 की गिरफ्त में जकड़ा साल 2020 अब विदाई ले रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण ने हमारे जीवन के जिन पहलुओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, उनमें शिक्षा का क्षेत्र भी है. कोरोना काल में स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान बंद हैं. परीक्षाएं नहीं होने से लाखों विद्यार्थियों को प्रमोट किया गया है. तो कई विद्यार्थियों ने कोरोना के खतरे के साए में परीक्षा दी है.

कोरोना की गिरफ्त में जकड़ी रही शिक्षा, घरों में कैद रहे बच्चे

कोरोना से प्रभावित साल 2020 के इस दौर में उच्च शिक्षा से जुड़े कई प्रोजेक्ट लंबित या स्थगित हुए हैं. वहीं, बाहर निकलने की पाबंदी के चलते विद्यार्थियों का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है. इस दौर को लेकर ई टीवी भारत ने जब शिक्षाविदों, अभिभावकों और कोचिंग संस्थान संचालकों से बात की तो कई रोचक पहलू भी निकालकर सामने आए.

घर में कैद रहे बच्चे, ऑनलाइन शिक्षा प्रॉपर नहीं

एक तरफ अभिभावक इस दौर के बुरे अनुभव गिनाते हुए बताते हैं कि इस दौर में स्कूल कॉलेज बंद होने से बच्चों को घर में कैद होकर रहना पड़ा है. बाहर आने जाने पर पाबंदी के चलते बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है. हालांकि, ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था ने इस दौर में मजबूती के साथ अपनी जगह बनाई. लेकिन अभिभावकों का मानना है कि यह व्यवस्था अभी क्लास रूम की पूरी तरह भरपाई करने में सफल नहीं हो पाई है. इस दौर में अभिभावकों और निजी स्कूल संचालकों के बीच फीस के मुद्दे पर ठन भी गई. जिसका निपटारा अभी भी हो नहीं पाया है.

कोरोना काल में शिक्षण संस्थान बंद रहे, स्कूल कॉलेज रहे सूने

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बच्चों में पारिवारिक मूल्यों की समझ हुई पैदा

कई अभिभावक ऐसे हैं जो कोरोना काल को पूरी तरह नकारात्मक नजरिए से नहीं देखते हैं. ऐसे अभिभावकों का कहना है कि हालांकि, स्कूल-कॉलेज बंद रहने से पढ़ाई पर असर पड़ा है. लेकिन इसका सकारात्मक पहलू यह है कि इस दौर ने बच्चों को परिवार और पारिवारिक मूल्यों का महत्व बताया है. अभिभावकों का कहना है कि आमतौर पर पढ़ाई और प्रतिस्पर्धा के चलते बच्चे अपने परिवार और पारिवारिक मूल्यों से एक तरह से कटते जा रहे हैं. लेकिन इस दौर में जब ज्यादा समय घर पर अपनों के बीच रहने का मौका मिला तो बच्चों में परिवार और पारिवारिक मूल्यों को लेकर एक नई समझ विकसित हुई है. अभिभावकों का मानना है कि इससे आने वाले समय में बच्चों को अपने व्यक्तित्व का विकास करने में मदद मिलेगी.

राजस्थान विश्वविद्यालय के कई प्रोजेक्ट टाले गए

कोचिंग संस्थान रहे बंद, ऑनलाइन एप से हुई तैयारी

मार्च में कोरोना संक्रमण की दस्तक के साथ ही स्कूल-कॉलेज के साथ ही कोचिंग संस्थान भी बंद हो गए. जो अभी तक भी बंद ही हैं. ऐसे में उन हजारों बच्चों के सामने संकट खड़ा हो गया, जिन्होंने कोचिंग की फीस जमा करवा दी थी. लेकिन लंबे समय तक कोचिंग संस्थान बंद रहने से प्रतियोगी परीक्षाओं की उनकी तैयारी पर असर पड़ा है. कोचिंग संचालकों का भी इसे लेकर अपना नजरिया है. उनका कहना है कि कोचिंग संस्थान बंद होने से उनकी आमदनी बंद हो गई है. हालांकि, कई बड़े कोचिंग संस्थानों ने ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था शुरू करवाई। लेकिन छोटे कोचिंग संचालकों पर इस दौर ने सबसे ज्यादा असर डाला है. फिलहाल कोचिंग संस्थान बंद हैं. ऐसे में कोचिंग संस्थान संचालक मांग कर रहे हैं कि उनके लिए सरकार को अलग से दिशा-निर्देश जारी कर कोचिंग संस्थानों को खोलने की छूट देनी चाहिए. ताकि जो बच्चे फीस जमा करवा चुके हैं, उनका भी नुकसान नहीं हो और कोचिंग संचालकों की बंद पड़ी आमदनी भी फिर से चालू हो सके. उनका यह भी कहना है कि बंद कोचिंग संस्थानों के भवनों का किराया और स्टाफ का वेतन भी अब भारी पड़ने लगा है. इसलिए सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार कर उन्हें राहत देने के लिए कदम बढ़ाने चाहिए.

कोरोना के कारण ऑनलाइन शिक्षा की ओर बढ़ाए तेजी से कदम

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उच्च शिक्षा के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट टले

शिक्षा से जुड़े कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर भी कोरोना काल का असर देखने को मिला है. उच्च शिक्षा के प्रदेश में सबसे बड़े संस्थान के रूप में पहचान रखने वाले राजस्थान विश्वविद्यालय के कई बड़े प्रोजेक्ट को कोरोना संकट के चलते देरी का सामना करना पड़ा है. एंटरप्रिन्योर एंड कॉरियर हब (आईसीएच) राजस्थान विश्वविद्यालय का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. जिसके तहत रिसर्च से निकले विचार को बाजार तक ले जाने की सारी प्रक्रिया पूरी करने में मदद कर युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की योजना है. कोरोना काल में इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को भी देरी का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय का नया भवन लगभग तैयार है. लेकिन कोरोना संकट के चलते अभी यह विधिवत रूप से चालू नहीं हो पाया है. इसके साथ ही मानव संसाधन विभाग से जुड़े कुछ प्रोजेक्ट्स को भी देरी का सामना करना पड़ा है.

नया सीखने की नई उम्मीद दी कोरोना ने

हालांकि, राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजीव जैन इस दौर को पूरी तरह नकारात्मक मानने के पक्ष में नहीं है. उनका कहना है कि हालांकि, कोरोना संकट ने देश और दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया है. लेकिन इस विकट समय ने भी हमें काफी सिखाया है. वे इसमें दो चीजों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि कोरोना काल से पहले हम ऑनलाइन शिक्षण व्यवस्था की तरफ धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे थे, लेकिन इस दौर ने हमें इस व्यवस्था की तरफ तेजी से आगे बढ़ने पर मजबूर किया है. जो भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है. वीसी प्रो. जैन बताते हैं कि कोरोना काल से पहले सेमिनार होते थे. जिनमें स्थानीय स्तर पर विषय विशेषज्ञ किसी विषय पर मंथन करते थे. कोरोना काल में वेबिनार के माध्यम से हमें दुनियाभर के विद्वानों से जुड़ने का मौका मिला. इससे हमारे विचार एक साथ कई जगह पहुंचे और दुनियाभर के विद्वानों के विचार भी हमें जानने का मौका मिला. इससे वैचारिक आदान-प्रदान में सुगमता आई है.

शिक्षण संस्थानों में लाखों विद्यार्थियों को किया गया प्रमोट

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कोरोना काल की गिरफ्त में जकड़ा यह साल बीतने की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में विद्यार्थियों, अभिभावकों, निजी स्कूल-कॉलेज और कोचिंग संचालकों के साथ ही शिक्षाविदों का मानना है कि आने वाले साल में उम्मीदों का नया सूरज निकलेगा और कोरोना काल के कड़वे अनुभवों को भूलने में मददगार बनेगा. जबकि इस दौर की नसीहतें तरक्की के नए रास्तों पर कदम बढ़ाने में मददगार साबित होंगी.

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