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गुलाबी शहर में डॉक्टर्स का अनूठा फैशन शो, चिकित्सकों ने ही डिजाइन किए लिबास

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Published : Mar 2, 2023, 11:26 PM IST

जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज का प्लेटिनम जुबली समारोह आयोजित किया गया. इसमें डॉ संजय अग्रवाल के ब्रांड 'सूट' का कलेक्शन प्रदर्शित किया. इस दौरान डॉक्टर्स मॉडल बने नजर आए.

Doctor designs designer clothes and walked the ramp in Jaipur
गुलाबी शहर में डॉक्टर्स का अनूठा फैशन शो, चिकित्सकों ने ही डिजाइन किए लिबास

जयपुर. गुलाबी शहर जयपुर में गुरुवार को सवाई मानसिंह अस्पताल के मेडिकल कॉलेज का प्लेटिनम जुबली समारोह आयोजित किया गया. इस दौरान डॉक्टर्स के लिए डॉक्टर के बनाए लिबास फैशन शो के जरिए मॉडल बने डॉक्टर्स ने पेश किए. शो के आयोजकों का दावा है कि स्टाइलिश और कलात्मक परिधानों को पहनकर रेंट पर वॉक करने वाले चिकित्सकों का यह अनूठा शो पहले कभी आयोजित नहीं किया गया. आमतौर पर सफेद एप्रिन में नजर आने वाले डॉक्टर को रैंप पर कैटवॉक करते हुए देखकर लोगों ने भी लुत्फ लिया. इस अनूठे आयोजन की चर्चा भी शहर में रही. रैंप पर कैटवॉक करते हुए उम्रदराज और सीनियर डॉक्टर्स को कैजुअल कपड़े में देखने का अनुभव लोगों के लिए जुदा रहा.

40 से ज्यादा डॉक्टर से बने मॉडल:सवाई मानसिंह अस्पताल के मेडिकल कॉलेज के न्यू एकेडमिक ब्लॉक में 40 से अधिक डॉक्टरों ने रैंप वॉक किया. जिसमें डॉक्टर संजय अग्रवाल के ब्रांड 'सूट' का एक अनूठा कलेक्शन प्रदर्शित किया गया. नाक, कान और गले के सर्जन डॉक्टर अग्रवाल अपने कलात्मकता को इस फैशन शो के जरिए लोगों के बीच पेश करने की कोशिश की. इससे पहले अग्रवाल कई कॉरपोरेट्स में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. उन्होंने अपने जेहन में आए विचार को आखिरकार मूर्त रूप दिया और 40 डॉक्टर्स को खुद का डिजाइन किया गया ड्रेस पहनाकर वॉक करवाया.

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डॉ संजय अग्रवाल ने अपने कलेक्शन के बारे में बात करते हुए कहा कि एक डॉक्टर भी अस्पतालों के बाहर कॉन्फ्रेंस, त्योहारों, शादियों आदि में पहनने के लिए जीवन के लिए सुंदर लेकिन साधे परिधान चाहता है. यहां तक की काम पर भी डॉक्टर कठोर और डराने वाला दिखने के बजाय मैत्रीपूर्ण और मिलनसार दिखना चाहते हैं. आज मरीज भी ठीक होने के लिए खुशनुमा माहौल की तलाश में रहता है. परिधानों को इस बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. उन्होंने कहा कि एसएमएस मेडिकल कॉलेज का प्लेटिनम जुबली समारोह भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष के साथ मेल खाता है. जिसमें हाथ से बुने सूत और हाथ से काते हुए कपड़े, इस आयोजन की प्रासंगिकता को दोगुना कर देते हैं.

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