स्माइल की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष कामिनी शुक्ला से खास बातचीत जयपुर.दुनिया में सफलता के रास्ते में एक ही बाधा होती है, वह है नकारात्मक सोच. यदि सोच सकारात्मक हो और हौसले बुलंद हो तो शारीरिक अक्षमता में भी सफलता की इबादत लिखने से कोई नहीं रोक सकता. कुछ लोग इस बात को सच साबित कर न सिर्फ अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं. ईटीवी भारत की खास पेशकश नारी शक्ति में आज हम बात कर रहे कामिनी शुक्ला की. जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को कमजोरी नहीं बनने दिया और हजारों महिलाओं और बच्चियों के चेहरे पर मुस्कान का माध्यम बनी हुई हैं.
ऐसे तो कामिनी की जिंदगी में हादसों की लंबी फेहरिस्त रही है. बावजूद इसके वो कभी न तो निराश हुईं और न ही हताश होकर हार मानी और निरंतर अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हैं. जिसकी जीती जागती बानगी उनकी संस्था स्माइल है, जो महिलाओं और बच्चियों के लिए काम कर रही है. हालांकि, साल 2008 में एक गंभीर बीमारी के कारण कामिनी के दोनों पैर काम करने बंद कर दिए.
लेकिन वो इन हालातों से भी नहीं हारी और लगातार परिस्थितियों से जद्दोजहद करती रही और आज वो हजारों महिलाओं और बच्चों के लिए एक आशा की किरण बनी हुई हैं. कामिनी शुक्ला बताती हैं कि न्यूरोलॉजिकल परेशानियों के कारण दिन-ब-दिन उनकी शारीरिक दिक्कतें बढ़ती गई. जिसकी वजह से उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई और वो पैरों के बजाय व्हीलचेयर पर आ गई. खैर, आज भी कामिनी अपनी शारीरिक अक्षमता के बाद भी लगातार समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं.
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लक्ष्य पर अडिग:कामिनी शुक्ला बताती हैं कि वो अपने पिता से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन सीखीं और लगातार जरूरतमंदों की मदद करती आ रही हैं. उन्होंने बताया कि पढ़ाई के बाद डूंगरपुर, बांसवाड़ा में महिलाओं और बच्चियों के लिए काम शुरू की. इसी दौरान उनकी जयपुर में शादी हो गई. लेकिन विवाह के बाद भी उनकी सामाजिक कार्यों में रूचि बनी रही और उन्होंने जयपुर में महिला अधिकारिता विभाग के साथ मिलकर काम किया. इसमें उन्हें उनके ससुराल वालों का भरपूर सहयोग मिला. खासकर पति संजय शुक्ला हर पथ उनके साथ खड़े रहे.
स्माइल बनी मुस्कान की वजह व्हीलचेयर पर आई जिंदगी:कामिनी शुक्ला कहती हैं कि सब कुछ अच्छे से चल रहा था. बालिका गृह में बच्चियों की काउंसलिंग, जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई, महिला को आत्मनिर्भर बनाने को स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग की दी जा रही थी. सब कुछ ठीक था. लेकिन साल 2008 के बाद अचानक उनकी तबीयत खराब हुई और उन्हें न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम के बारे में पता चला, जो दिन-ब-दिन बढ़ती चली गई. इसके बाद 2013 में उनकी जिंदगी अचानक से सामान्य से असामान्य हो गई और वो व्हीलचेयर पर आ गई. फिर भी वो हौसला नहीं हारीं और निरंतर अपने मार्ग पर बढ़ते रहीं. कामिनी बताती हैं कि वो वक्त उनके लिए काफी कठिन था. लेकिन उनके पति संजय शुक्ला और उनकी दोनों बेटियां सौम्या और सांची हमेशा ढाल बनकर उनके साथ खड़ी हैं.
191 बच्चियों को घरवालों से मिलाया:कामिनी बताती हैं कि उनके प्रयासों से जब भी किसी महिला या फिर बच्चे की जिंदगी में खुशहाली आती है तो वो उसे देखकर खूब मुस्कुराती हैं. कई बार तो बच्चे उन्हें पत्र भी लिखते हैं, जिसे अमूमन पढ़कर उनकी आंखें भर आती हैं. उन्होंने बताया कि आज हजारों की तादाद में बच्चियों स्वरोजगार से जुड़ गई हैं. इसके अलावा 191 से अधिक बच्चों व महिलाओं की काउंसलिंग कर उन्हें उनके घरवालों तक पहुंचा है.
स्माइल बनी मुस्कान की वजह:कामिनी ने बताया कि साल 2003 में उन्होंने स्माइल की नींव रखी. इस संस्था में समान सोच वाले लोगों को शामिल किया गया. जिसमें अनीता भानावत, डॉ. मंजू रानी जैसे लोग जुड़े थे. इस संस्था के निर्माण के पीछे एक मात्र उद्देश्य जरुरतमंदों की मदद करना था. उनकी संस्था किसी भी तरह की कोई फंडिंग के लिए काम नहीं करती और निःशुल्क बिना किसी सरकारी सहयोग के बच्चों, बच्चियों और महिलाओं के लिए काम करती है.
कामिनी बताती हैं कि बालिका गृह के लिए 2004 और महिला सदन के लिए 2005 से वो काम करते आ रही हैं. संस्था के प्रयास से आज लड़कियों के जीवन में खासा बदलाव आया है. संस्था की ओर से बच्चियों व महिलाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग, काउंसलिंग, अच्छे-बुरे की जानकारी दी जाती है. ताकि वो आगे चलकर आत्मनिर्भर बन सके और आज काफी हद तक संस्था को इस दिशा में कामयाबी भी हासिल हुई है.
कच्ची बस्तियों में पाठशाला:इसके साथ ही संस्था की ओर से कच्ची बस्तियों के बच्चों के लिए स्कूल की भी व्यवस्था की गई है. जहां कमजोर बच्चों को चिन्हित कर निशुल्क कोचिंग दी जाती है. इसके अलावा स्लम एरिया में जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, उनकी भी पढ़ाई की व्यवस्था की गई है. मौजूदा समय में स्माइल की कई इकाई इलाकेवार शुरू हो गई है. जिसमें किशनपुरा, प्रतापनगर , हसनपुरा इलाके में पाठशाला व कोचिंग की सुविधा उपलब्ध है.