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दिल्ली हाईकोर्ट ने खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में मानी पूर्व राजा राय बहादुर सरदार सिंह की वसीयत - Rajasthan Hindi news

खेतड़ी राजघराने के पूर्व राजा राय बहादुर सरदार सिंह की संपत्तियों के वसीयत के विवाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में फैसला दिया है. साथ ही वसीयत की प्रोबेट ट्रस्ट के पक्ष में जारी करने को कहा है.

Will Dispute over Properties of former King
Will Dispute over Properties of former King

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Published : Jul 11, 2023, 8:10 PM IST

जयपुर. दिल्ली हाईकोर्ट ने खेतड़ी राजघराने के पूर्व राजा राय बहादुर सरदार सिंह के जयपुर के चांदपोल बाजार स्थित खेतड़ी हाउस सहित करीब 2500 करोड़ रुपए की संपत्तियों के वसीयत के विवाद में खेतड़ी ट्रस्ट के पक्ष में फैसला दिया है. इसके साथ ही वसीयत की प्रोबेट ट्रस्ट के पक्ष में जारी करने को कहा है. खंडपीठ ने एकलपीठ के 3 जुलाई, 2012 के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एकलपीठ ने पूर्व राजा की वसीयत पर संदेह पैदा करते हुए ट्रस्ट के पक्ष में प्रोबेट जारी करने से इनकार कर दिया था. जस्टिस नाजमी वजीरी और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने यह आदेश खेतड़ी ट्रस्ट की अपील पर दिए.

राजा राय बहादुर खेतड़ी के 11वें शासक :ट्रस्ट की ओर से कहा गया है कि खंडपीठ ने आदेश में स्पष्ट किया कि एकलपीठ ने मामले में गलत फैसला दिया था, क्योंकि वर्ष 1985 में वसीयत जमा कराने के दौरान एक गवाह ने तीस हजारी कोर्ट के रजिस्ट्रार के समक्ष ही राजा राय बहादुर सिंह की पहचान की थी. मामले के अनुसार राजा राय बहादुर सरदार सिंह खेतड़ी के 11वें शासक थे. उन्होंने विदेश में पढ़ाई की और राज्य सभा सांसद सहित अन्य महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्होंने लाओस में भारत के राजदूत के तौर पर देश का प्रतिनिधित्व भी किया था.

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वसीयत नामे की कानूनी वैधता पर सवाल : सरदार सिंह की वर्ष 1987 में मृत्यु होने के साथ ही उनकी वसीयत का विवाद शुरू हुआ. राजस्थान सरकार ने भी उनकी कोई संतान नहीं होने के चलते उनकी संपत्तियों को लावारिस मानते हुए राजस्थान एस्चीट्स रेगुलेशन एक्ट, 1956 के तहत कब्जा कर लिया. इन संपत्तियों पर कब्जा कर संभाल के लिए रिसीवर भी नियुक्त कर दिए. खेतड़ी ट्रस्ट का दावा है कि सरदार सिंह ने 1985 में वसीयत की थी. इसमें शिक्षा अनुसंधान कार्यों के लिए सारी प्रॉपर्टी को ट्रस्ट के पक्ष में देने के लिए कहा था. हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में ट्रस्ट के खिलाफ फैसला देते हुए वसीयत नामे की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए थे.

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