जयपुर. राजस्थान की संस्कृति के मुरीद सात समंदर पार यानी विदेशों में भी है. यही वजह है कि भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में से बड़ी संख्या में लोगों की ख्वाहिश रहती है कि वे राजस्थान आए. इस बीच विदेशों में राजस्थान की माटी की महक सोशल मीडिया के जरिए दौसा की धोळी (निरमा) मीणा (Dausa Dholi Meena) बिखेर रही हैं. अपने इंस्टाग्राम अकाउंट के जरिए धोळी मीणा अलग-अलग अंदाज में विदेशी जमीन पर देसी ठाठ को जीवंत कर देती है और उनके इसी अंदाज पर लोग फिदा होकर फॉलो कर रहे हैं. फिलहाल 94.1K फॉलोअर्स के साथ उनकी ताकत को सोशल मीडिया रील्स के माध्यम से लोग देख रहे हैं.
बिकनी गर्ल्स के बीच वीडियो से बनी पहचान- दौसा की धोळी या कहे निरमा को इंस्टाग्राम आइकन के रूप में तब पहचान मिली. जब उन्होंने अपनी एक रील बीच के माहौल के बीच शेयर की. इस रील के बाद दिन दोगुने-रात चोगुने की तर्ज पर उन्हे फॉलो करने वालों की संख्या में इजाफा हो गया.
यूरोप में धूम मचा रही है दौसा की धोळी ईटीवी भारत से बात करते हुए धोळी बताती हैं कि उनकी सांस्कृतिक महक को विदेशों में पहुंचाने के लिए वह पूरा क्रेडिट अपने पति लोकेश मीणा को देती हैं. लोकेश मीणा भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत हैं और फिलहाल धोळी उनके साथ माल्टा में है. धोळी मीणा का कहना है कि उनके पति ने हमेशा देसी खान-पान और पहनावे के लिए उन्हें प्रेरित किया है. इसी वजह से अब रील्स में वह खुद को सहज महसूस करती हैं.
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बच्चों के साथ सीखी अंग्रेजी- धोळी बताती हैं कि शादी के बाद उन्हें सबसे पहले अपने पति के साथ अफ्रीकी देश जाम्बिया जाना पड़ा. इस दौरान ग्रामीण परिवेश होने की वजह से उन्हें खासा परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अंग्रेजी पर पकड़ बनाना शुरू किया. शुरुआत में अपने पति को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हुए देखकर वह भी उसी तरह से बोलने के लिए लालायित रहती थी. ऐसे में अगली पोस्टिंग जब लोकेश को अमेरिका में मिली तो उनका काम आसान हो गया और वह भी अंग्रेजी सीख गई. इस दौरान भाषा सीखने के लिए उन्हें बच्चों का भी पूरा सपोर्ट मिला था. अब वह आराम से सब्जी मंडी से लेकर मॉल तक चली जाती हैं और अपना काम कर लेती है.
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परिजनों ने भी किया रील्स में सपोर्ट- निरमा मीणा या धोळी बताती हैं कि रील्स को देखने के बाद उनके परिजन और दोस्तों ने भी उन्हें प्रेरित किया था. वे लगातार देसी अंदाज को लेकर उन्हें राय मशविरा देते रहते थे. धोळी बताती हैं कि देश चाहे कोई सा भी हो, लेकिन घर में वे लोग आज भी राजस्थानी भाषा या ढूंढाड़ी में ही बात करते हैं. खान-पान को लेकर भी उन्होंने कोई परिवर्तन नहीं किया है.
पीली लुगड़ी में अक्सर बाहर लोग उन्हें देखकर यह जरूर पूछते हैं कि क्या कोई खास मौका है और धोळी का जवाब होता है कि यह पहनावा हमारी संस्कृति है और मैं उसी का पालन कर रही हूं. वे विदेश में रहकर भी अपनी संस्कृति की पूरी तरह से पालना करने की कोशिश करती हैं. चाहे फिर करवा चौथ का व्रत हो या फिर कोई और त्यौहार, हर मौके को देसी अंदाज में खास बना देती हैं.