जयपुर.कांग्रेस का 85वां राष्ट्रीय अधिवेशन रायपुर में शुरू हो गया है. राजस्थान के लिए भी यह अधिवेशन महत्वपूर्ण होने जा रहा है. हो सकता है कि राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर शीत युद्ध यहां समाप्त हो जाए. संभव है कि इस अधिवेशन में अंतिम निर्णय कर लिया जाए कि गहलोत और पायलट की 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या भूमिका रहेगी. हालांकि यह भी साफ है कि कोई फैसला हो भी जाए तो उसका इंप्लीमेंट अधिवेशन के बाद ही होगा. लेकिन यह कहा जाए कि सचिन पायलट के लिए यह अधिवेशन उनके आने वाले राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. राजस्थान से 414 पीसीसी सदस्य, करीब 125 सहवर्त पीसीसी सदस्य, 55 एआईसीसी सदस्य 30 सहवर्त एआईसीसी सदस्य और वरिष्ठ नेताओं को मिलाकर करीब 650 से ज्यादा नेता इस अधिवेशन में भाग लेने रायपुर पहुंचे हैं.
रास्ता कैसे निकले दोनों दिग्गज अड़े - कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में राजस्थान के कांग्रेस के नेताओं की तो नजर एक ही बात पर है कि क्या इस अधिवेशन से राजस्थान में कोई बदलाव का रास्ता निकल कर आएगा या फिर जैसा चल रहा है वैसा ही आगे भी जारी रहेगा. दरअसल, कांग्रेस आलाकमान के सामने भी राजस्थान को लेकर चिंता की बात यह है कि पायलट मुख्यमंत्री की कुर्सी के अलावा कांग्रेस में कोई पद नहीं चाहते. पायलट न तो राजस्थान कांग्रेस के संगठन और न ही ऑल इंडिया कांग्रेस पार्टी के संगठन में कोई पद चाहते हैं. दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का साफ तर्क है कि जब उनकी योजनाओं को पूरे देश में पसंद किया जा रहा है और कांग्रेस भी अन्य राज्यों के चुनाव में उनके बनाए फॉर्मूले को इंप्लीमेंट कर रही है, तो फिर ऐसा क्या कारण है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बदलाव के लिए सोचा भी जाए. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस आलाकमान के सामने दोहरी चुनौती है कि कैसे इन दोनों नेताओं में सामंजस्य बैठाकर 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान में एकजुटता के साथ उतारे. हालांकि यह साफ है कि इस अधिवेशन से कोई ना कोई रास्ता कांग्रेस आलाकमान जरूर निकालेगा, ताकि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के नेताओं में अनिश्चितता की स्थिति समाप्त की जा सके.