जयपुर. क्रिसमस खुशियों का त्यौहार है और इस दिन गिरजाघरों में विशेष प्रार्थना की जाती है. क्रिसमस का पर्व सिर्फ क्रिश्चयन समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि सामाजिक पर्व का रूप में सभी लोग मनाते हैं. बाजारों में पर्व को लेकर क्रिसमस ट्री के साथ तमाम तरह के गिफ्ट मौजूद हैं. दुकानें और गिरजाघरों में आकर्षक लाइटिंग की गई है. हालांकि इस बार चर्च में प्रेयर भी सोशल डिस्टेंसिंग के साथ करने के लिए गाइड लाइन जारी की गई है.
इस साल पहली बार ऑनलाइन हो रहा क्रिसमस का सेलिब्रेशन कैथोलिक गिरजाघरों में आराधना का समय बदला-
फादर विजयपाल सिंह ने बताया कि यहां चर्च में तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है लेकिन लोग चर्च न आकर अपने-अपने घरों में मोमबत्तीयां जलाकर प्रभु यीशु के जन्म की खुशियां मनाएंगे. चर्च में नाटकों का मंचन भी इस बार नहीं होगा. शहर के सभी जगहों के 20 से ज्यादा चर्चो में प्रभु की चरणी, घरों में क्रिसमस ट्री सजाए जाएंगे. वहीं कैथोलिक चर्चों में पहली बार कोरोना की वजह से नाइट कर्फ्यू होने की वजह से शहर के 7 कैथोलिक चर्चों में आराधना का समय बदला गया है.
क्रिसमस की बधाई और गिफ्ट भी ऑनलाइन-
इस बार सेंटाक्लॉज एक दूसरे को क्रिसमस की बधाई और गिफ्ट भी ऑनलाइन देंगे. वहीं क्रिसमस के एक दिन पहले होने वाली आधी रात को आराधना भी इस बार नहीं होगी. रात में कर्फ्यू की वजह से चर्च में शाम 5.30 बजे विशेष पूजा और आराधना होगी. वहीं 25 दिसंबर को सुबह 8.30 बजे और 10.30 बजे आराधना होगी. साथ ही ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के जरिए गिरिजाघर आने की व्यवस्था लागू की गई है. इसमें एक बार में 100 से कम लोगों को 5 मिनट में आराधना के लिए प्रवेश दिया जाएगा. साथ ही कैथोलिक चर्च में बारी-बारी से कोरोना गाइडलाइंस की पालना के साथ झांकी देख सकेंगे.
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क्रिसमस पर बाहरी सेलिब्रेशन इस बार कम होगा-
क्रिसमस से एक दिन पहले 24 सितंबर की रात ईसाई समाज की ओर से कैरल्स पार्टी का आयोजन किया जाता है जो इस बार कर्फ्यू के चलते रद्द है. इसको लेकर फादर वर्की पैरेकाट का कहना है कि केरोल पार्टी की जगह सादगीपूर्ण लोग आपस में बधाइयां देकर व जलपान लेकर अपने घर की ओर चले जाएंगे. क्योंकि सारी दुनिया दुख में है और ये समय खुशी मनाने का नहीं है. ऐसे में दुख के समय में क्रिसमस होने के बावजूद इस कोरोना काल से बाहर नहीं जा सकते. क्रिसमस पर बाहरी सेलिब्रेशन इस बार कम होगा.
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सर्द हवाओं के बीच ईसाई समाज प्रभु यीशु के जन्मोत्सव को इस बार सादगी के साथ मनाएंगे. साथ ही धूमधाम से सेलिब्रेशन की बजाए इस बार सीमित कार्यक्रम ही होंगे. इस बार प्रभू यीशू से कोरोना महामारी के खात्मे के लिए प्रार्थना की जाएगी.
क्रिसमस का इतिहास कितना पुराना है-
क्रिसमस का इतिहास प्राचीन है. ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति क्राइस्ट से हुई है. दुनिया में पहली बार क्रिसमस का पर्व रोम में 336 ई. में रोम में मनाया गया था. इस दिन को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाने की पंरपरा है.
ईसा मसीह का जन्म ऐसे हुआ था-
पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु यीशु ने यूसुफ मरीयम के यहां जन्म लिया था. ऐसा माना जाता है कि मरीयम को एक सपने में भविष्यवाणी सुनाई दी कि उन्हें प्रभु के पुत्र के रूप में यीशु को जन्म देना है. भविष्यवाणी के मुताबिक मरियम गर्भवती हुईं. गर्भवास्था के दौरान मरियम को बेथलहम की यात्रा करनी पड़ी. रात होने के कारण उन्होंने रूकने का फैसला किया, लेकिन कहीं कोई ठिकाना नहीं नहीं मिला. तब एक वे गुफा जहां पशु पालने वाले गडरिए रहते थे. अगले दिन इसी गुफा में प्रभु यीशु का जन्म हुआ.
सांता क्लॉज का बच्चों को रहता हैं इंतजार-
क्रिसमस के पर्व में बच्चों को सांता क्लॉज का इंतजार रहता है. सांता क्लॉज का असली नाम संता निकोलस था. पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था. ये प्रभु यीशु के परम भक्त थे. सांता बहुत दयालु थे और हर जरूरतमंंद व्यक्ति की मदद किया करते थे. सांता प्रभु यीशू के जन्मदिन पर रात में बच्चों को उपहार देते थे.