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Buddha Baisoda Festival : चाकसू शील डूंगरी पर शीतला माता का बूढ़ा बास्योडा मेला 22 अप्रैल को...पत्थर तक की होती है पूजा, जानें

जयपुर के चाकसू शील डूंगरी पर शीतला माता का बूढ़ा बास्योडा मेला 22 अप्रैल को लगेगा. इसको लेकर (Buddha Baisoda Festival Celebrated at Chaksu) तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जा रहे हैं.

Buddha Baisoda Festival
चाकसू शील डूंगरी पर शीतला माता का बूढ़ा बास्योडा मेला 22 अप्रैल को

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Published : Apr 21, 2022, 8:32 PM IST

चाकसू (जयपुर). राजस्थान में चाकसू शील की डूंगरी में हर वर्ष लगने वाला छोटे मेले के नाम से विख्यात बूढ़ा बास्योडा पर्व शुक्रवार यानी 22 अप्रैल को मनाया जाएगा. इसको लेकर घर-घर कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जा रहे हैं, जिनका बूढ़ा बास्योा पर माता को इसी बासे (ठंडे) भोजन का भोग लगेगा. ऐसी मान्यता है कि माता को ठंडे पकवानों का भोग अर्पण करने से माता प्रसन्न होती हैं. वहीं, अगले दिन सप्तमी को शनिवार होने से बूढ़ा बास्योडा शुक्रवार को ही मनाया जाएगा.

बता दें कि यहां शील डूंगरी में हर वर्ष लगने वाले (Mela in Sheel Dungri Chaksu) बड़े मेले के ठीक एक माह बाद इस मेले में हजारों श्रद्धालु माता के दर्शनों को पहुंचते हैं और सुख-समृद्धि की मंगलकामनाऐं करते हैं. यहां शीतला माता का यह मंदिर जयपुर के दक्षिण में जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर चाकसू कस्बे में स्थित है. यहां स्थित एक छोटी सी पहाड़ी शील डूंगरी में विराजमान मां शीतला माता के मंदिर को लेकर लोगों में अपार धार्मिक आस्था बनी हुई है.

इस पहाड़ी का हर पत्थर शीतला माता के रूप में पूजा जाता है. यहां से लोग पत्थर घर भी ले जाते हैं और उन्हें अपने घर या मंदिर में रखते हैं. उनकी पूजा की जाती है. यहां के पत्थरों की बनावट भी खास है. मंदिर परिसर बनी बारह दरी में अंकित शिलालेख के अनुसार पहाड़ी पर स्थित शीतला माता का यह प्राचीन मंदिर करीब 500 साल पुराना बताया जाता है. मन्दिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 300 सीढ़ियां चढ़कर माता के दर्शन के लिए पहुंचना पड़ता है. इस मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं.

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मान्यता है कि इस मंदिर में ढोक दिलाने से चेचक जैसी बीमारियों से बचाव होता है. इस वजह से यहां भक्तों की आवाजाही पूरे साल रहती है. लोग अपने साथ (History of Buddha Baisoda Festival) ठंडा खाना लेकर आते हैं और माता के भोग लगाते है, फिर उसे ही प्रसाद के रूप में खाते हैं. जिससे माता प्रश्नन होती हैं. हर वर्ष लगने वाला शीतला माता का मेला यहां अपने आप में खास महत्व रखता है. धार्मिक आस्था के साथ सांस्कृतिक परंपराओं के भी दर्शन यहां इस दौरान होते है.

शीतला माता का मेला चैत्र मास में सप्तमी और अष्टमी (बास्योडा) को आयोजित होता है. इस दौरान यहां पांच-सात किलोमीटर का दायरे में माता के भक्त ही भक्त नजर आते हैं. दूर-दूर से ग्रामीण ट्रैक्टर-ट्रॉली, जीप, ऊंट बैलगाड़ी आदि से भी यहां पहुंचते हैं. माता के ढोक लगाते हैं और स्वस्थ्य जीवन की कामना करते हैं. शहरी इलाकों से भी बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए मेले पर आते हैं. मेले के दिन लाइन में लगे भक्त जब माता के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हैं तो यहां अमीर-गरीब का भेद नजर नहीं आता. करीब तीन सौ मीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद माता का मंदिर है. यहां तक सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है.

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