जयपुर.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को बजट पेश कर दिया. बजट के जरिए सीएम गहलोत ने हर वर्ग को साधने की कोशिश की है. बजट में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ता और सहायिका का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की गई लेकिन इस बजट में आशा सहयोगिनी शिशु पालन कार्यकर्ता और ग्राम साथिन को नजरअंदाज कर दिया गया.
ऐसे में अब अखिल राजस्थान महिला एवं बाल विकास संयुक्त कर्मचारी संघ ने सरकार को आंदोलन की चेतावनी दे दी है. गहलोत सरकार ने आज अपने बजट भाषण में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के 1500 मिनी कार्यकर्ता की 1250 और सहायिका के ₹750 मानदेय बढ़ाने की घोषणा की है. लेकिन सीएम गहलोत द्वारा इस बजट में शिशु पालन कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनी और ग्राम साथिन के मानदेय बढ़ाने को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई. जिसके बाद प्रदेशभर के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ में नाराजगी देखी गई है.
बजट पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की नाराजगी अखिल राजस्थान महिला एवं बाल विकास संयुक्त कर्मचारी संघ ने सीएम गहलोत से मांग की है कि वह अपने इस बजट को संशोधित कर बजट पेश करते हुए शिशु पालन कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनी और ग्राम साथिन का मानदेय बढ़ाने की घोषणा करें. और साथ ह चेतावनी दी है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में सरकार को प्रदेश की 70 हजार से अधिक इन कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है.
संयुक्त कर्मचारी संघ के संस्थापक छोटे लाल बुनकर ने बताया कि सरकार से मांग कर गई थी कि वह सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को समान रूप से मानदेय बढ़ाए लेकिन सरकार ने कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ता और सहायिका का मानदेय बढ़ाया जबकि शिशु पालन कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनी और ग्राम साथिन के मानदेय बढ़ाने की कोई घोषणा नहीं की. ऐसे में सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
बुनकर ने बताया कि सरकार की हर योजना को गांव ढाणी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आशा सहयोगिनी, ग्राम साथिन की होती है. यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है. जो राज्य सरकार के अधीन आती हैं जबकि कार्यकर्ता मिनी कार्यकर्ता और सहायिका, केंद्र सरकार के अधीन आती है. शिशु पालन कार्यकर्ता आशा सहयोगिनी और ग्राम साथिन यह राज्य सरकार के अधीन आती हैं लेकिन दुर्भाग्य कि राज्य सरकार ने अपनी द्वारा लगाए गए आंगनबाड़ी महिला कर्मियों की सुध नहीं ली.
बता दें कि प्रदेश में करीब दो लाख महिला आंगनबाड़ी कर्मी है. जिनमें शिशु पालन कार्यकर्ता आशा सहयोगिनी और ग्राम साथिन की संख्या करीब 70 हजार से अधिक है और इन सभी के जिम्मे गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य की और शिशु के टीकाकरण सहित जच्चा-बच्चा की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में अगर यह वर्ग सरकार से नाराज होकर आंदोलन पर उतर जाता है तो सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं पर भी काफी असर पड़ेगा.