हनुमानगढ़. सूर्य उपासना का महापर्व छठ के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया. छठ घाटों पर व्रतियां भगवान भास्कर को अर्घ्य देने पहुंची. इस दौरान महिला और पुरुष सभी ने सूर्य पूजा करते हुए परिवार के लिए खुशियां मांगी. इस महापर्व की उपासना में समय के साथ अब बड़ा बदलाव भी देखने को मिल रहा है.
आमतौर पर छठ की पूजा के मौके पर पहले बेटों के लिए पूजा की जाती थी. लेकिन, समय के बदलाव के बीच अब बेटियों के लिए भी छठ मइया से उनकी खुशियां मांगी जाने लगी हैं. छठी मइया से कोई बेटी की चाहत की मन्नत मांग रहा है तो कोई बेटी की नोकरी की. लेकिन, हर मन्नत में अपने बच्चों के साथ ही परिवार की खुशियां लोग मांगते नजर आए. बेटियों के लिए भी सूप गछा (मन्नत कबूलती) जा रहा है. मतलब,अब बेटियों की भी मान पर लोग छठी मइया से सूप की मान्यता रखने लगे हैं.
छठ के नियम काफी कठोर होते हैं. इन नियमों में कोई बदलाव नहीं होता. जिस घर में जो प्रसाद चढ़ता रहा है,वही चढ़ता है. जिस घर में जैसे सूप चढ़ता था, वैसे ही चढ़ता है. छठ पूजन करने आई बिहार निवासी मालविका व ज्योतिक लाल ने बताया कि पहले सिर्फ लड़को के लिए ये पूजा होती थी, लेकिन समय के साथ समाज मे जागरूकता आई है. अब जिन परिवारों में बेटियां जन्म नहीं ले रही हैं, वहां लोग बेटी की चाहत के साथ छठी मइया से मन्नते मांगने लगे हैं. अब लोग इस तरह की मन्नतें भी करने लगे हैं कि बेटी हो तो छठ करेंगे या बेटी की नौकरी हो तो इतने साल छठ करेंगे.
छठ का सूप है काफी खास
छठ का प्रसाद बांस के सूप में चढ़ता है. बांस को वंश का प्रतीक भी माना जाता है. बहुत सारे परिवारों में बेटे के जन्म के साथ ही सूप चढ़ जाता है. जब तक तीसरी पीढ़ी नहीं आ जाती, उस पुरुष के नाम पर छठ का सूप चढ़ता रहता है. कई परिवारों में तो हर जीवित पुरुष के नाम पर छठ का सूप चढ़ता है. अब इसी तरह बेटियों के लिए भी हो रहा है.
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छठ पूजा में प्रयुक्त सामग्री