हनुमानगढ़. आवासन मंडल अधिकारियों की लापरवाही और पुलिस की उदासीनता के कारण हाउसिंग कॉलोनी के सैंकड़ों खाली मकान असामाजिक तत्वों की अपराध गाह बन चुके हैं. इसके बावजूद भी विभाग के पदाधिकारियों को नींद नहीं खुल रही है. इसके कारण यहां नशेड़ी दिन-दहाड़े नशाबाजी करते हैं. सूने पड़े मकानों में स्मैक जैसे नशे में प्रयुक्त होने वाले सफेद पेपर, इंजेक्शन शराब की बोतलें मिल रही हैं.
इतना ही नहीं,करोड़ों की लागत से बने और खाली पड़े सैंकड़ो मकानों से असामाजिक तत्व इन घरों की फिटिंग, नल और खिड़की तक उखाड़कर ले गए हैं. यहां रह रहे लोगों का कहना है कि उन्होंने जब यहां मकान लिए थे तो अधिकारियों ने उन्हें सभी सुविधाओं के आश्वासन दिया था. साथ ही इन खाली पड़े मकानों की समस्या के निस्तारण की बात भी कही थी, लेकिन 6 साल बीत जाने के बावजूद किसी समस्या का हल नही हुआ है. असमाजिक तत्वों और नशेड़ियों की वजह से 5 मिनट के लिए भी घर और बच्चों को अकेला नही छोड़ सकते है. दिन ढलते ही बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं हैं. इतनी बड़ी कॉलोनी में ना तो कोई पुलिस चौकी है और ना ही नियमित पुलिस की रात्रि गश्त होती है. यहां के रहवासी कई बार हाउसिंग बोर्ड और प्रशासन से इसकी शिकायत कर चुके हैं. लेकिन 6 साल बीत जाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई है.
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हालांकि आवासन मंडल अधिकारियों द्वारा इन मकानों की सुरक्षा के लिए गार्ड रखा गया है. लेकिन, गार्ड होने के बावजूद सूने पड़े मकानों से समान तो चोरी हो ही रहा है. साथ ही ये मकान मकानों नशेड़ियों की शरणस्थली भी बने हुए है. खुद गार्ड और गार्ड के रिश्तेदार इन मकानों में मुफ्त में तो रह ही रहे हैं. साथ ही मकानों पर अवैध कब्जा करने वाले कटिया (अवैध कुंडी) डालकर बिजली जला रहे हैं. जब हमने यहां रह रहे गार्ड से बात की तो पहले उन्होंने कहा कि ये मकान उनको अलॉट है. लेकिन, बाद में अवैध रूप से खुद अपने रिश्तेदारों के रहने की बात स्वीकार की.
करोड़ों की लागत से बने सैंकड़ों मकान वर्षों से खाली पड़े होने के कारण जर्जर हो चुके हैं. यहाँ से लोहे के गेट और फिटिंग्स का समान चोरी होने से सरकारी कोष को लाखों का नुकसान भी हो रहा है. बड़ी बात ये भी है कि पुरानी बसी कॉलोनी के 126 पुराने मकान दरों में बढ़ोतरी की वजह से विभाग से बिके नहीं. वहीं, विभाग ने बिना सोचे समझे और जल्दबाजी में अन्य योजना के तहत हाउसिंग बोर्ड के 409 स्वतंत्र आवास की नई कॉलोनी डीटीओ कार्यालय संगरिया बाईपास पर बना दी. वो योजना भी सिरे नहीं चढ़ी. आवंटी लॉटरी निकलने के बाद भी पीछे हट गए. वर्तमान में हालात ये है कि करोड़ों की लागत से बने कुल स्वतंत्र 553 आवास नहीं बिकने की वजह से खाली पड़े हैं. जब हमने इस बाबत आवासन मंडल के अधिकारियों से बात की तो उनका कहना था कि इन मकानों को बेचने के लिए ई-सबमिशन नाम से योजना चलाई गई है, जिसके तहत इन मकानों को 25 प्रतिशत छूट दी जाएगी.
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हालांकि, अधिकारियों की मानें तो वो प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह इन मकानों को बेचा जाए और आमजन की समस्या दूर की ही जाए. साथ ही सरकारी घाटे से भी उबरा जाए. लेकिन, इस योजना में भी आमजन कोई खास रुचि नहीं दिखा रहे हैं. शायद वजह ये है कि ये मकान 70 प्रतिशत तक जर्जर हो चुके हैं. सड़कों का निर्माण तक नहीं हुआ है और अगर पहले इनके खाली पड़े होने की वजह की बात करें तो जब मकान लेने के इच्छुक लोगों ने फॉर्म भरे थे, तब इन मकानों की कीमत काफी कम थी. लेकिन, विभागीय लापरवाही के चलते इन मकानों को बनाने में 6 से 7 वर्ष लग गए. इस दौरान निर्माण सामग्री की दरें काफी बढ़ गई और विभाग ने इन मकानों की कीमतें भी बढ़ा दी. इसकी वजह से आवंटियों ने इन मकानों को लेने में रुचि नहीं दिखाई और विभागीय लचरता के चलते ये खाली पड़े जर्जर मकान आमजन के लिए जी का जंजाल बन गए.