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थमे पहिएः एक रुपए की कमाई नहीं और टैक्स की अलग आफत, कुछ इस तरह गुजर रही चालक और परिचालकों की जिंदगी - ईटीवी भारत हिन्दी न्यूज

कोरोना वायरस की महामारी के कारण प्रदेश में 22 मार्च से लॉकडाउन के बाद मानों सबकुछ ठहर सा गया. जिंदगी घरों में कैद होकर रह गई जो लोग घरों से दूर थे वे भी सड़कों पर वाहन नहीं होने से पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल गए. अब दो महीने बाद बाजार खुले तो जीवन पटरी पर लौटने की जद्दोजहद कर रहा है, लेकिन अब भी हालत नहीं सुधरे है.

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एक रुपये की कमाई नहीं और टैक्स की अलग आफत

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Published : May 29, 2020, 8:55 PM IST

डूंगरपुर. लॉकडाउन ने निजी ट्रेवल्स, बस और जीप संचालकों की कमर तोड़ दी है. लॉकडाउन के कारण दो महीने से वाहनों के चक्के थमे है. लेकिन इनपर चौतरफा मार पड़ रही है. कमाई का नुकसान झेलने के साथ ही टैक्स, इंश्योरेंस और फाइनेंस की किश्तें चुकाने के जुगाड़ करना पड़ रहा है तो वही बरसों से वाहन चलाकर ही पेट पालने वाले हजारों चालक और खलासी भी इसकी मार झेल रहे है.

एक रुपये की कमाई नहीं और टैक्स की अलग आफत

बता दें, कि कोरोना वायरस की महामारी के कारण प्रदेश में 22 मार्च से लॉकडाउन के बाद मानों सबकुछ ठहर सा गया. जिंदगी घरों में कैद होकर रह गई जो लोग घरों से दूर थे वे भी सड़कों पर वाहन नहीं होने से पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल गए. अब दो महीने बाद बाजार खुले तो जीवन पटरी पर लौटने की जद्दोजहद कर रहा है, लेकिन अब भी हालत नहीं सुधरे है.

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डूंगरपुर जिले की बात करें तो ऑल इंडिया परमिट के 75, स्टेट कैरिज के 260 और करीब 1500 से ज्यादा निजी जीप और टैक्सी है. जो आज तक थमे हुए है. इन वाहनों को सड़कों पर दौड़े करीब दो महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. ऐसे में यात्री भाड़े से होने वाली कमाई ठप हो चुकी है. वागड़ बस एसोसिएशन के अध्यक्ष वल्लभराम पाटीदार बताते है कि लॉकडाउन के दौरान ही मार्च, अप्रैल और मई में जबरदस्त शादियों का सीजन था और इसके लिए उनकी बसें पहले से बुक थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह ऑर्डर निरस्त हो गए.

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ऑल इंडिया परमिट की जो बसें थी वह गर्मियों के सीजन में धार्मिक यात्रा, टूर के कार्यक्रम रहती थी वह भी कैंसिल हो गई है. ऐसे में इन दो महीने में एक रुपए की कमाई नहीं हुई है, जबकि खर्चे बढ़ गए है. ऐसे में उन्हें जो नुकसान हो रहा है उसकी तो भरपाई अब सालभर तक नहीं होने वाली है. पाटीदार बताते है कि अगले 6 महीने तक वाहनों का संचालन भी संभव नहीं है.

कुछ इस गुजर रही चालक और परिचालकों की जिंदगी

टैक्स और फाइनेंस की किश्तें जमा करवाने में कोई छूट नहीं

पाटीदार बताते है कि लॉकडाउन में बिना किसी कमाई के भी टैक्स और फाइनेंस की किश्तें चुकाने में कोई छूट तक नहीं मिली है. ऑल इंडिया कैरिज की बसों का प्रतिमाह करीब 39 से 40 हजार, स्टेट कैरिज की बसों का 10 से 12 हजार रुपये टैक्स प्रतिमाह के हिसाब से सालाना चुकाना होता है. इसमें सरकार की ओर से अब तक कोई रियायत नहीं मिली है, इसके अलावा जो वाहन फाइनेंस पर लेकर यात्रियों की सुविधा के लिए शुरू किए थे उनकी किश्तों का जुगाड़ अलग से करना पड़ रहा हैं. ऐसे में समस्या बहुत ही विकट है.

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