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स्पेशल स्टोरी: 1.90 लाख उज्ज्वला गैस कनेक्शन बांटे, रिफिल के पैसे नहीं इसलिए चूल्हें पर बनता है खाना

प्रधानमंत्री मोदी की सबसे महत्वाकांक्षी उज्जवला गैस योजना के तहत डूंगरपुर में 1.90 लाख उज्ज्वला गैस कनेक्शन बांटे गए थे. अब इस योजना की क्या है हकीकत देखे इस स्पेशल रिपोर्ट में...

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Published : Sep 24, 2019, 3:09 PM IST

डूंगरपुर.चूल्हा फूंकते समय धुएं से जलती महिलाओं की आंखे और जलते हाथ. इस तस्वीर को बदलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जवला गैस योजना की शुरूआत की. सरकार की योजना पर देश में 8 करोड़ और जनजाति बहुल डूंगरपुर में 1.90 लाख गरीब परिवारों को मुफ्त में गैस कनेक्शन बांटे गए. इस योजना को लेकर महिलाओं को कितना फायदा हुआ और क्या है हकीकत.? इस पर ईटीवी भारत मे महिलाओं से चर्चा की तो कई चौकानें वाले मामले भी सामने आए.

गैस कनेक्शन होने के बावजूद भी चूल्हे पर बन रहे हैं खाने

बता दें कि केंद्र सरकार ने देश के गरीब परिवारों की महिलाओं को राहत देने के लिए 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्जवला गैस योजना की शुरूआत की गई. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में योजना इस की शुरुआत हुई और अब 3 साल हो चुके हैं. दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे हुए तो ईटीवी भारत ने प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी उज्जवला गैस योजना की हकीकत जानने का प्रयास किया.

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जनजाति बहुल डूंगरपुर में उज्ज्वला गैस योजना के तहत इन 3 सालों में 1 लाख 90 हजार गरीब महिलाओं को निःशुल्क गैस कनेक्शन दिए गए. ताकि महिलाएं लकड़ियों का चूल्हा छोड़कर गैस पर खाना बना सके. उनकी आंखें भी चूल्हें के धुएं के कारण न जले. इसकी हकीकत जानने ईटीवी भारत की टीम डूंगरपुर शहर से 5 किलोमीटर दूर मांडवा खापरड़ा गांव पंहुची. यहां झोपड़ी और कच्चे घरों में रहने वाली महिलाओं से बात की. उनके घर में रसोई के हाल काफी दयनीय हैं.

ईटीवी भारत की टीम मांडवा गांव में रहने वाली हुरज कटारा के घर में पंहुची. जहां घर के एक कोने में ही उसका रसोई घर है और दूसरे भाग में मवेशियों के बांधने की जगह. उस समय हुरज घर में खाना बनाने के लिए चूल्हा फूंक रही थी. धुंए के कारण आंखें जल रही थी, तो अपने साड़ी के पल्लू से आंसू पोछ रही थी. एक कोने में उज्ज्वला गैस योजना के तहत मिली गैस टंकी और चूल्हा पड़ा था, लेकिन वह बंद था. जब हुरज से बात की तो उसने बताया कि गैस खत्म हो गई है और दोबारा भरवाने के लिए उसके पास पैसे तक नहीं है. इस कारण गैस चूल्हे का इस्तेमाल नहीं करती है और फिर से लकड़ियों पर खाना बनाने के लिए मजबूर है. उसने आगे बताया कि उसके एक बेटे की मौत पिछले दिनों हो गई थी. घर का खर्च भी जैसे-तैसे मजदूरी कर के चलता है. ऐसे में गैस भरवाने के लिए वह 600 से 700 रुपए का इंतजाम कैसे करेगी.

हुरज की हालत जानने के बाद बाद ईटीवी भारत की टीम मांडवा के ही दूसरे घर पंहुची. यहां उज्जवला गैस योजना के तहत मिले कनेक्शन पर ही महिला ने खाना बनाने की बात कही. लेकिन उसने यह भी बताया कि करीब चार महीने बाद उसने गैस भरवाया है. पैसे नहीं होने के बावजूद कभी-कभी गैस नहीं भरवा पाती है.

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जब ईटीवी की टीम तीसरे घर मणि देवी के यहां पंहुची तो यहां भी एक छोटे से केलूपोश घर के एक कोने में रसोई था. यहां उज्ज्वला गैस कनेक्शन तो था, लेकिन गैस खत्म हो जाने के कारण पिछले 6 महीने से सिलेंडर और चूल्हा एक कोने में पड़ा था. जिस पर धूल भी जम रही थी. मणि से बात की तो उसने बताया कि वह लकड़ियों से चूल्हे पर खाना बनाती है. धुंआ भी लगता है और हाथ भी जलते हैं. लेकिन खाना तो बनाना ही पड़ता है. मणि ने बताया कि मजदूरी कर जितना कमाते हैं उतने में दो वक्त का पेट भरने और छोटे मोटे खर्चे में ही पैसा खत्म हो जाता है. इसके बाद पैसे ही नहीं बचते है तो गैस रिफिल कैसे भरवाएं.

ऐसे ही हाल जिले में कई जगह है जहां उज्ज्वला गैस योजना के तहत महिलाओं को गैस कनेक्शन तो मुफ्त में दे दिये गए. लेकिन अब हर एक-दो माह में गैस रिफिल करने के लिए 600 से 700 रुपए का इंतजाम नहीं होने के कारण गैस और चूल्हा घर के एक कोने में पड़े है और धुल खा रहे हैं. महिलाओं की स्थिति फिर वही हो गई. उन्हें फिर से लकड़ियों के सहारे ही चूल्हें पर खाना बनाना शुरू कर दिया है.

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ऐसे में एक बार फिर महिलाओं की आंखे धुओं से जल रही हैं. जबकि आंकड़ों में जिले की लाखों महिलाओं को गैस कनेक्शन मिल चुका है. मणि देवी और हुरज ने बताया कि सरकार ने जिस तरह मुफ्त में गैस कनेक्शन दिया है. उसी तरह गैस रिफिल भी करवाए या फिर गैस रिफिल के दाम कम हो तो वे भी गैस ले सकेंगी. अभी गैस के दाम 600-700 रुपए हैं, जो उनके बजट से बाहर है.

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