डूंगरपुर.डूंगरपुर की मूर्तिकला अपनी बेजोड़ कारीगरी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में भी यह कारीगरी देखने के मिलेगी. डूंगरपुर के सोमपुरा समाज के मूर्तिकार अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर तराशने के साथ मंदिर के स्तम्भों पर मूर्तिकला की कारीगरी का भी हुनर दिखाएंगे. इसके लिए डूंगरपुर के इन मूर्तिकारों को अयोध्या से बुलावा भी आ गया है. ईटीवी भारत ने डूंगरपुर के इन मूर्तिकारों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम के मंदिर को बनाने में वे भी सहयोग देंगे, इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है.
अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण के लिए 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधारशिला रखी. मंदिर निर्माण को लेकर देशभर में खुशियां छाईं रहीं और दिवाली की तरह उत्सव मनाया गया. राजस्थान के आदिवासी अंचल डूंगरपूर के लिए यह खुशियां दुगुनी हो गईं जब डूंगरपुर के सोमपुरा समाज के मूर्तिकार अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के लिए पत्थर तराशने के साथ ही डिजाइन का काम करेंगे। वैसे तो डूंगरपूर के यह मूर्तिकार 1991 से अयोध्या में पत्थर तराशने और डिजाइन का काम कर रहे हैं लेकिन अब जब मंदिर निर्माण के लिए नींव रख दी गई है तो अब आगे का काम किस तरह से होगा इन सभी विषयों पर ईटीवी भारत ने इन मूर्तिकारों से बातचीत की.
1991 से पत्थर तराशने का काम कर रहे, अब खुशियां हुईं दोगुनी
ईटीवी भारत ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण से जुड़े मूर्तिकार मनोज सोमपुरा से बात की तो उन्होंने कहा कि वे 1991 में पहली बार अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर देखने और कारीगरी के लिए गए थे. अब भूमि पूजन के बाद मंदिर निर्माण के लिए वहां के मुख्य मूर्तिकार की ओर से बुलावा आया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बताते हैं कि उन्हें पहले से भरोसा था कि प्रभु श्रीराम उन्हे सेवा का मौका जरूर देंगे.
बताते हैं कि वर्ष 1991 में वे अयोध्या गए थे जहां उन्हें मंदिर के स्तम्भ बनाने के लिए पत्थर तराशने के अलावा मूर्तिकला के काम पर लगाया गया था. इसके बाद 1992 में वे पत्थरों के कारखाने में 100 से 200 कारीगरों के साथ काम कर रहे थे. उसी दौरान लोगों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था. इसके बाद 1996 तक अयोध्या में ही रहकर पत्थरों की कारीगरी का काम किया. फिर वे राजस्थान के पिंडवाड़ा आ गए और यहीं से अयोध्या में मंदिर के पिलरों के लिए कारीगरी करने लगे. 2005 तक तैयार पत्थरों को ट्रक में भरकर अयोध्या भेजा जा चुका है. बताते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए भरतपुर के विशेष पत्थरों को लिया गया है.