डूंगरपुर.इस साल गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को मनाई जाएगी और अगले तीन दिन बाद ही गणेशोत्सव की धूम शुरू हो जाएगी. इससे पहले ही गणेश मंडल गणेशोत्सव की तैयारियों में जुट गए हैं. गणेशोत्सव पर भगवान गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना कर 10 दिन तक अनुष्ठान होते हैं. गणेश मंडलों और घरों में स्थापित होने वाली अधिकतर प्रतिमाएं पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से बनी होती हैं, जिससे पर्यावरण और जल को होने वाले खतरे को डूंगरपुर शहर ने पहले ही समझ लिया. साथ ही पीओपी की जगह मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा स्थापना की मुहिम शुरू की जो अब धीरे-धीरे रंग लाने लगी है. शहर में करीब दो दर्जन गणेश मंडलों की ओर से गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, जिसमें सभी मूर्तियां मिट्टी की होती हैं. इतना ही नहीं, लोगों की जागरूकता के कारण अब घरों में भी मिट्टी के गणेशजी ही विराजित होने लगे हैं.
शहर में अब इको फ्रेंडली गणेशोत्सव शहर के घाटी गणेश मंडल के युवाओं ने सबसे पहले पीओपी के खतरे को जाना और 10 साल पहले ही मिट्टी के गणेश स्थापना की शुरुआत कर दी. इस दौरान मिट्टी के गणेशजी की प्रतिमाएं बनाने वाले भी कोई नहीं थे, जिस पर मोहल्ले के ही दो युवक मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाने का तरीका सीख कर आए और इसके बाद युवाओं ने मिलकर ही गणेश प्रतिमा बनाई. इसके बाद से घाटी गणेश मंडल की ओर से हर साल मिट्टी के गणेश जी ही स्थापित किए जाने लग गए. इससे प्रेरित होकर शहर के अन्य गणेश मंडल भी आगे आए और इक्का-दुक्का मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं स्थापित होने लगीं.
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पांच साल पहले डूंगरपुर नगर परिषद ने पीओपी की मूर्तियां बैन की...
पीओपी की मूर्तियों को शहर के प्रमुख गेपसागर झील में विसर्जन के कारण हो रहे नुकसान को देखते हुए डूंगरपुर नगर परिषद ने पांच साल पहले ही पीओपी की मूर्तियों पर बैन लगा दिया. हालांकि, शुरुआती साल में कुछ परेशानी आई और मिट्टी की मूर्तियां नहीं मिल पाने के कारण उतनी सफलता नहीं मिली. सभापति केके गुप्ता ने बताया कि मिट्टी के गणेश अभियान में शहर के लोगों का सहयोग मिला और गणेश मंडलों ने मिट्टी के अलावा धातु की गणेश प्रतिमा बनाकर स्थापना शुरू की. इसी का नतीजा है कि अब शहर में इको फ्रेंडली गणेशोत्सव मनाया जाता है.
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यहां 50 साल से मिट्टी के गणेश उत्सव...
आज से 10 साल पहले शहर में सभी गणेश मंडल या लोगों की ओर से पीओपी की गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती थी. लेकिन उस दौर में भी शहर के धनेश्वर मंडल की ओर से मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाकर ही स्थापना की जाती थी. यहां साल 1965 से गणेश उत्सव पर मिट्टी के गणेशजी विराजित कर पूजा होती है.
सोमपुरा समाज बनाने लगा मिट्टी के गणेश जी...
वैसे तो सोमपुरा समाज पत्थरों की कारीगरी के लिए विश्व-विख्यात है, लेकिन शहर में गणेशोत्सव पर मिट्टी के गणेश प्रतिमा की डिमांड बढ़ी तो सोमपुरा समाज आगे आया. सोमपुरा समाज के कलाकारों ने मिट्टी से गणपति प्रतिमा बनाने पर काम शुरू किया. धर्मेंद्र सोमपुरा और कन्हैयालाल सोमपुरा ने बताया कि उनकी ओर से एक फीट से लेकर तीन फीट की मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं बनाई जा रही है, जो पिछले साल से ऊंचाई कम हुई है. उन्होंने बताया कि मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. यह एक लकड़ी के फर्मे पर बनाई जाती है और इसके लिए मिट्टी के गारे के साथ ही रुई, नारियल के कूचे का इस्तेमाल किया जाता है. कई बार मिट्टी में दरारें भी आती हैं और उसे सही सेट करने में परेशानी आती है. प्रतिमा बनने के बाद सुखाई जाती और और फिर उसमें रंग भरा जाता है.
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पीओपी की मूर्तियां सस्ती, लेकिन खतरा ज्यादा...
पीओपी की मूर्तियां बनावट में आकर्षक होने के साथ ही मिट्टी की मूर्तियों से ज्यादा सस्ती होती हैं. वहीं पीओपी की मूर्ति बनाने में ज्यादा समय भी नहीं लगता, लेकिन उससे कई ज्यादा खतरा है. मूर्तिकार और गणेश मंडलों ने बताया कि पीओपी की मूर्तियों से पर्यावरण के साथ सबसे बड़ा खतरा जल को है. पीओपी की मूर्ति जलाशय में विसर्जित की जाती हैं. जो कई साल तक गलती नहीं हैं और जैसी की तैसी रहती हैं, जिससे झील का भराव कम होता है. वहीं पीओपी में होने वाले केमिकल पानी में मिलकर जलीय जीव और पौधों को भी नुकसान होता है.
यहां 50 साल से मिट्टी के गणेश उत्सव गणेशोत्सव और कोरोना का असर...
इस बार त्योहारों पर कोरोना का असर साफ दिखाई दे रहा है. इसी कारण गणेशोत्सव भी कोरोना से बचाव को लेकर सरकारी गाइडलाइन का पालन करते हुए मनाया जाएगा. घाटी गणेश मंडल के अनूप चौबीसा ने बताया कि 22 अगस्त से गणेशोत्सव शुरू होगा. इस बार गणपति उत्सव में ज्यादा भीड़भाड़ की बजाय सादगी से अनुष्ठान के कार्यक्रम होंगे.