डूंगरपुर.जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर सोम नदी के तट पर स्थित देवसोमनाथ मंदिर वागड़ ही नहीं देश-विदेश में प्रसिद्ध है. मंदिर से कई लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. सोम नदी के तट पर स्थित देवसोमनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि 12वीं सदी में रातों-रात यह मंदिर बन गया था. ये मंदिर गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तरह ही दिखने वाला देश में दूसरा मंदिर है. यहां मिले शिलालेख और इतिहासविद मंदिर को लेकर एक राजपूत शासक की ओर से इसे बनाने की बात कहते हैं. लेकिन बरसों से मंदिर की पूजा करने वाले सेवक समाज के पुजारी मंदिर और शिवलिंग के स्वयंभू होने की बात कहते हैं.
12वीं सदी में बने इस मंदिर में न तो एक ईंट लगी है और न ही सीमेंट. यह तीन मंजिला मंदिर 148 पत्थरों के पिलर पर टिका हुआ है. यह पत्थर एक-दूसरे से इस तरह जुड़े हुए है कि पूरा मंदिर खड़ा हो गया. दूर से यह मंदिर अपनी बेजोड़ बनावट और स्थापत्य कला के कारण हर किसी के लिए आकर्षण का केंद्र है. मंदिर सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है, लेकिन कालांतर में मंदिर का पत्थर अब पिला पड़ गया है. मंदिर के हर एक पिलर के पत्थर पर आकर्षक कलाकृतियां और देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं. मंदिर के सभा मंडप ओर गुम्बद में भी आकर्षक कलाकृतियां हैं, जिसे देख हर कोई अचंभित रह जाए.
डूंगरपुर का ऐसा मंदिर जो रातों-रात खड़ा हुआ गर्भगृह में दो शिवलिंग, दोनों का आकार बढ़ रहा:मंदिर के पुजारी भरत सेवक ने (Devsomnath Temple of lord shiva in Dungarpur) बताया कि देवसोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में 2 शिवलिंग हैं. जिसमें एक मुख्य शिवलिंग रुद्राक्ष आकार का है तो वहीं उसके पास ही दूसरा स्फटिक शिवलिंग है. पुजारी बताते हैं कि दोनों ही शिवलिंग का आकार धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है. वे बताते हैं कि कुछ सालों पूर्व स्फटिक शिवलिंग एक नींबू के आकार का था, जो अब एक नारियल के आकार का हो गया है. वे बताते हैं कि मंदिर की पूजा-अर्चना गांव के पुजारी सेवक समाज की ओर से की जाती है.
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गुजरात के सोमनाथ की तर्ज ओर बना है देवसोमनाथ:मंदिर के जानकार बताते हैं कि (Temple that emerged overnight in Dungarpur) देवसोमनाथ मंदिर गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर ही बना हुआ है. कुछ लोग इस मंदिर को सोमनाथ का छोटा रूप मानते हैं. मंदिर के पुजारी यह भी बताते है कि गुजरात का सोमनाथ मंदिर समझकर मुगलों ने देवसोमनाथ मंदिर पर भी आक्रमण किया था. हालांकि इस बारे में कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिला है.
श्रद्धा के कारण देश-विदेश से आते है शिवभक्त:देवसोमनाथ मंदिर और भगवान शिवजी के प्रति आस्था के कारण यहां दर्शन के लिए देश और विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां भगवान भोले के दरबार में माथा टेकते हैं और मनोकामनाएं मांगते हैं. मान्यता है कि भगवान भोले के दरबार में जो भी मुराद लेकर आते हैं वे उसे पूरी करते हैं. इसलिए यहां मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वहीं हर महीने पूर्णिमा पर यहां मेले का माहौल रहता है. महाशिवरात्रि के दिन भी यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. श्रावण महीने में हर रोज यहां भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है. भोलेनाथ के दर्शन को लेकर यहां विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं.
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पुरातत्व विभाग की अनदेखी से जर्जर हो रहा मंदिर:मंदिर के पुजारी भरत सेवक बताते है कि मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. विभाग की अनदेखी से मंदिर धीरे-धीरे जर्जर होता जा रहा है. भरत ने बताया कि कुछ सालों पूर्व पुरातत्व विभाग ने मंदिर के पत्थरों की केमिकल से सफाई करवाई थी. इसके बाद से मंदिर के पत्थर कमजोर होने लगे हैं. इन पत्थरों को हाथ लगाते ही अब बुरादा निकलने लगा है. उनका कहना है कि समय रहते मंदिर पर ध्यान नहीं दिया गया तो मंदिर के पिलर और अन्य पत्थर जीर्ण-शीर्ण हो जाएंगे. वही मंदिर के आकर्षक गोखड़ो (झरोखे) के कई जगह से पत्थर टूट चुके हैं. ऐसे में उन पत्थरों को बदलने या मम्मत की जरूरत है, जिससे ऐतिहासिक विरासत को बचाया जा सके. वहीं मंदिर में दर्शन के साथ ही पर्यटन के रूप में भी विकसित करने की जरूरत है.