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Corona Effect: न शादियां हुईं और न दूल्हा घोड़ी चढ़ा, बेरोजगार अश्वपालक सब्जी बेचकर गुजर करने को मजबूर - covid-19 in dungarpur

कोरोना काल में शादियों की रौनक और रंगत दोनों फीकी पड़ गई है. ऐसे में शादियों में घोड़े उपलब्ध करवाने वालों के सामने संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में ये मजदूरी करके अपना और अपना परिवार का पेट भरे या घोड़ों को खिलाएं.

डूंगरपुर न्यूज, corona effect of marriage business
डूंगरपुर अश्वपालकों के सामने आर्थिक संकट

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Published : Oct 27, 2020, 1:46 PM IST

डूंगरपुर. देश में कोरोना के कारण इस साल शादी व्यवसाय की कमर ही टूट गई है. इस बार इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. इस बार न बैंड बजा और न ही दूल्हे घोड़ी चढ़ पाए. ऐसे में शादियों में घोड़े उपलब्ध करवाने वाले अश्वपालकों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है.

डूंगरपुर अश्वपालकों के सामने आर्थिक संकट

देशभर में मार्च माह से कोरोना का इफेक्ट शुरू हो गया था. हजारों लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए तो कई लोगों की रोजी-रोटी छीन गई. आठ महीने बाद भी ऐसे परिवारों की जिंदगी अब तक पटरी पर नहीं लौटी है और अब जैसे-तैसे कर ये लोग अपने परिवार का भरण-पोषण करने को मजबूर है. एक ऐसा हो परिवार है जिले के थाणा गांव का जो इन दिनों रोजी-रोटी को मोहताज है. थाणा गांव में 3 भाई जो शादी में घोड़े उपलब्ध करा कर परिवार के 36 लोगों का पालन पोषण करते थे. अब इनके लिए दो जून की रोटी जुटाना भारी मुश्किल हो रहा है.

एक घोड़े का एक दिन का खर्चा 300-400 रुपए

जब से कोरोना आया है, तब से ही शादियां नहीं होने से इस परिवार की कमर पूरी तरीके से टूट चुकी है. घोड़ा पालक दशरथ ढोली ने बताया उन्होंने अपने तीनों घोड़ों का नामकरण भी किया हुआ है, जिसमें एक तूफान, दूसरा बादल और तीसरा पवन है, जिन्हें एक परिवार की तरह ही वे रखते हैं. वे बताते हैं कि एक घोड़े का दिन का खर्चा 300 से 400 रुपए होता है. ऐसे में शादियां नहीं होने से घोड़े का खर्च और परिवार का खर्च निकलना काफी मुश्किल हो गया है. ऐसे हालातों में घोड़ा बेचना चाहते हैं पर घोड़े का कोई खरीदार नहीं मिल रहा है.

सब्जी बेचता अश्वपालक

सब्जी बेचने को मजबूर

अब वे सब्जी बेचने को मजबूर हो चुके हैं. सब्जी बेचकर दिन का 100-200 रुपये कमाते हैं, जिसमें घोड़े और परिवार का खर्च निकालना काफी मुश्किल हो गया. दशरथ में बताया मजबूरी में कई बार सिर्फ पानी पीकर सोने को मजबूर हैं.

हर शादी में 20 से 25 हजार कमा लेते, अब 8 महीने से बेरोजगार

कोरोनाकाल से पहले शादियों में घोड़ा उपलब्ध करा कर महीने का 25 से 30 हजार कमा लेता था. वहीं अब पिछले 8 महीने से उस परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है.

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वहीं दशरथ ढोली कहते हैं कि उन्हें घोड़ों को खिलाना बहुत मुश्किल हो रहा है. अपना पेट पालना मुश्किल है लेकिन दशरथ कहते हैें कि ये घोड़ें परिवार की तरह हैं. कहीं से भी ब्याज लेकर मजदूरी करके वे अपने घोड़ों को खिलाएंगे.

अश्वपालक मजदूरी करके पाल रहे अपना और घोड़ों का पेट

रोजगार छीना तो अब सरकार से उम्मीद

ये सिर्फ एक अश्व पालक की एक बानगी मात्र है, ऐसे सैकड़ों परिवार है. जिनकी रोजी-रोटी इस कोरोना काल में छीन गई और अब वे जुगाड़ से अपनी जिंदगी की गाड़ी को चला रहे. कोरोना की वजह से हर किसी को कुछ ना कुछ परेशानी झेलनी पड़ रही है.

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कुछ तो इतने मजबूर हैं कि उन्हें अब अपना भविष्य तक धुंधला नजर आने लगा है लेकिन अब वे लोग सरकार की ओर देख रहे है कि सरकार उन्हें मदद करें. फिर शादी-ब्याह शुरू हो सके. शादियों में फिर दूल्हा घोड़ी चढ़े और उन्हें आमदनी मिल सके. अब देखना होगा ऐसे परिवारों को कब तक राहत मिलती है और उनकी जिंदगी पटरी पर लौटती है.

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