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जन-जन की आस्था का धाम, डूंगरपुर का लीलवासा का गोपालधाम - डूंगरपुर लीलवासा गोपालधाम

डूंगरपुर जिले का कृष्ण मंदिर अपने आप में ही काफी खास है. भगवान कृष्ण से जुड़ी लीलाएं सालों पहले शुरू हुई है. आईए जानते है लीलवासा के गोपालधाम मंदिर की पूरी कहानी...

डूंगरपुर लीलवासा गोपालधाम, Dungarpur Lilvasa Gopaldham

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Published : Aug 24, 2019, 2:36 PM IST

आसपुर (डूंगरपुर).संसार के पालनहार कहे जाने वाले भगवान कृष्ण का शनिवार को जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. कृष्ण से जुड़ी लीलाएं सालों पहले शुरू हुई थी. जो इन गांवो में रच बस गई. इस गांव की पहचान भी कृष्णमई हो गई है. खास बात तो ये है कि कृष्ण की लीलाओं और भक्ति में रचने बसने के कारण इस गांव का नाम भी भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है.

लीलवासा का गोपालधाम मंदिर

शनिवार को जिले भर में धूमधाम के साथ जन्माष्टमी मनाई जाएगी. बता दें कि डूंगरपुर-आसपुर मुख्य मार्ग से एक किमी अंदर बसा लीलवासा गांव गोपाल धाम नाम से विख्यात है. यहां पर स्थित भगवान कृष्ण के मंदिर में भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है.अधिकतर शिव मंदिरों में शिवलिंग स्वयं भू मिलने की खबर हर किसी ने सुनी है. किन्तु लीलवासा के गोपाल कृष्ण की प्रतिमा भी स्वयं भू है. यह बहुत ही आश्र्चय की बात है. वहीं कृष्ण की प्रतिमा भी दूर्लभ है. दस भूजाधारी, अष्टबांके बिहारी, एक ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाएं हुए, ब्रज मंडल, गौ गोवालियां समेत है.

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किवंदती है कि सालों पूर्व पूंजपुर के रावल परिवार से ब्राम्हण को स्वप्न आया की खैड़ा गांव की पहाड़ी में कृष्ण प्रतिमा दबी हुई है. इसे निकाल कर गांव में स्थापना करें. ब्राम्हण ने गांव सहित आस-पास के पांच गांवों के लोगों ने मिलकर स्वयं भू में आए स्थान पर जाकर पहाड़ की खुदाई की, यहां पर प्रतिमा निकली. प्रतिमा भारी होने पर ग्रामीण प्रतिमा को बैलगाडी में रखकर पूंजपुर की और रवाना हुए. किन्तु लीलवासा गांव के चौराहे पर बैलगाडी रूक गई. यहां से आगे हिली हीं नहीं और गाड़ी टूट गई. रात हो जाने पर सभी ने रात्रि विश्राम लीलवासा में हीं किया. रात्रि में उसी ब्राम्हण को स्वप्न आया कि उसे स्वयं इस प्रतिमा को विश्राम स्थल के सामने वाली जगह पर हीं स्थापित करनी है. इस ब्राम्हण ने स्वयं द्वारा भारी प्रतिमा कैसे स्थापित होगी. इस पर भगवान ने कहा कि सुबह स्नान कर उठाकर स्थापित करना. इस प्रकार इसकी स्थापना लीलवासा में हुई.

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12 दिसम्बर 1929 को मंदिर का भूमि पूजन हुआ. साल1932 में मंदिर का पूर्ण निर्माण के बाद प्रतिमा की विधी विधान से स्थापना हुआ. 1984 में चौकी का विस्तार निर्माण कराया गया. और छह अप्रैल 2017 से मंदिर का जिर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ जो अभी कार्य प्रगति पर है. ग्रामीणों ने बताया कि जब भी गांव में विकट स्थिती आने पर ग्रामीणों की ओर से सच्चे मन से मनोकामना करने पर हर मनोकामना पूर्ण हुई. अकाल पडऩे पर, बारिश ना होना,फ्लेग रोग से मुक्ति, निसंतान को संतान प्राप्त होना आदी मुख्य है. मंदिर में प्रत्येक माह की एकादशी पर महिलाएं पूजा-अर्चना व भजन किर्तन करती है. जन्माष्ठमी पर भक्त पदयात्रा कर दर्शन लाभ लेते है. जन्माष्ठमी पर गणेश युवा मंडल के तत्वाधान में विविध आयोजन होते है.

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