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डूंगरपुर: बालिका स्कूलों में धूल फांक रही गरिमा पेटियां - Dust fluttering dignity boxes

सरकार ने स्कूलों में पढ़ने वाली बेटियों की शिकायतें सुनने के लिए दो साल पहले स्कूलों में गरिमा पेटी लगाने की योजना शुरू की थी. लेकिन हालात यह है कि अब पेटियां स्कूलों के कबाड़ में धूल फांक रही है.

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बालिका स्कूलों में धूल फांक रही गरिमा पेटियां

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Published : Dec 11, 2019, 9:29 AM IST

डूंगरपुर.देश मे बेटियों के साथ दुष्कर्म और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं. जिन्हें रोकने के लिए सरकारें नाकाम दिख रही हैं. बता दें कि सरकार ने स्कूलों में बेटियों की शिकायतें सुनने के लिए दो साल पहले गरिमा पेटी लगाने की योजना शुरू की. बता दें कि अब यह पेटियां स्कूलों के कबाड़ में धूल फांक रही है.

बता दें कि इसी बात की पुष्टि करने के लिए ईटीवी भारत सरकारी स्कूलों में पहुंचा तो स्कूल प्रिंसिपल और गरिमा पेटी के प्रभारी पेटियों को दफ्तर के अंदर से बाहर निकालते दिखे. कई स्कूलों में पेटियां तो थी, लेकिन इनमें शिकायतों व बेटियों की समस्या के नाम पर पिछले दो सालों में इक्का-दुक्का ही शिकायते आई. हालांकि इसे लेकर स्कूल प्रशासन भी गंभीर नजर नहीं आया, क्योंकि गरिमा पेटियां केवल खानापूर्ति बनाकर स्कूल के कबाड़ या ऑफिस में रख दी गई, जहां पेटियां धूल फांक रही हैं.

बालिका स्कूलों में धूल फांक रही गरिमा पेटियां

डूंगरपुर शहर के सबसे बड़े देवेंद्र कन्या सीनियर सेकेंड्री स्कूल के बाहर कहीं भी गरिमा पेटी नजर नहीं आई. जबा स्कूल स्टाफ से इस बारे में पूछा तब उन्होंने बताया कि मन की बात और गरिमा पेटी बनाई हुई है, जिसे प्रिंसिपल रूम के अंदर बने ऑफिस में से निकाल कर बाहर रखा गया, लेकिन इसमें एक भी शिकायत नहीं थी. जब इसमें आने वाली शिकायतों के बारे में पूछा तो बताया कि पिछले दो सालों में केवल 1 शिकायत ही आई है और वह भी स्कूल में स्टाफ की कमी को लेकर थी, जिसका बाद में समाधान कर दिया गया था.

वहीं गरिमा पेटी के प्रभारी से इस बारे में पूछा तो बताया कि स्कूल में बेटियों को कोई भी शिकायत नहीं रहती है और कुछ बात होती है तो वे सीधे ही उनसे बात कर लेती हैं. वहीं पुलिस भी लगातार स्कूल के आसपास पेट्रोलिंग करती है, जिस कारण कोई दिक्कत नहीं है.

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इसी तरह सागवाड़ा के राजकीय वाडेल उच्च माध्यमिक विधायक में गरिमा पेटी ही नहीं थी, तो वहीं राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय साबला में अक्षय पेटी को ही गरिमा पेटी बताकर दिखाया गया, लेकिन इनमें बेटियों की शिकायत व समस्या सुनने के लिए कोई इंतजाम नहीं था. ऐसे में बेटियां अपने मन की बात को किस तरह से बताएंगी. वहीं दूसरी ओर सरकार की मंशा भी पूरी होती नजर नहीं आ रही है.

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