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Special : इस बार न लंका जलेगी और न होगा रावण दहन, 150 परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट

25 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाना है, लेकिन इस बार न लंका जलेगी और न ही रावण परिवार के पुतलों का दहन होगा. कोरोना के चलते आयोजन पर रोक लगाई गई है. ऐसे में इसका सबसे बड़ा असर रावण परिवार के पुतले बनाने वाले डूंगरपुर के बांसड़ समाज के 150 से ज्यादा परिवारों पर पड़ा है. बांसड़ समाज के 150 से ज्यादा परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

Bansad Society of Dungarpur,   Ravana combustion will not happen on Dussehra
150 परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट

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Published : Oct 20, 2020, 9:29 PM IST

डूंगरपुर. असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा भी इस बार कोरोना की चपेट में आ गया है. इस बार न लंका धू-धू कर जलेगी और न ही रावण परिवार के पुतलों का आतिशी दहन होगा. ऐसे में इसका सबसे बड़ा असर बांसड़ समाज के 150 से ज्यादा परिवारों पर पड़ेगा, जो रावण परिवार के पुतले बनाकर अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते थे. इस बार कोरोना महामारी के चलते रावण दहन नहीं होगा. ऐसे में उन्हें रावण परिवार के पुतले बनाने का ऑर्डर भी नहीं मिला है और वे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.

150 परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट

शारदीय नवरात्रि के बाद 10वें दिन हर साल दशहरे का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन लंका दहन के साथ ही रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का आतिशी दहन किया जाता है. इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं, लेकिन इस बार दशहरे के पर्व पर भी कोरोना का संकट भारी है. जिस कारण इस बार ना तो रावण की लंका का आतिशबाजी के साथ दहन किया जाएगा और ना ही रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहन होगा.

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डूंगरपुर शहर में हर साल 50 फीट के ऊंचे रावण परिवार के पुतलों का आतिशीदहन लक्ष्मण मैदान में होता है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं होगा. डूंगरपुर नगर परिषद की ओर से ही इन पुतलों का निर्माण करवाया जाता है, लेकिन इस बार परिषद ने भी कोरोना माहामारी के चलते पुतलों का निर्माण नहीं करवाया है.

रावण दहन (फाइल)

बांसड़ समाज के 150 परिवार की रोजी-रोटी छीनी

रावण परिवार का दहन नहीं होने से इसका सबसे बड़ा असर बांसड़ समाज के 150 परिवारों पर पड़ा है, जो रावण परिवार के पुतलों का निर्माण कई वर्षों से करता आ रहा है. कोरोना की वजह से यह परिवार पिछले 7 महीने से बेरोजगार थे. दशहरे पर रावण परिवार के पुतले बनाकर परिवार के भरण-पोषण की उम्मीद थी, लेकिन अब वह भी टूट गई.

ईटीवी भारत ने बांसड़ समाज के परिवारों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि यहां उनके परिवार बांस से रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाने का काम करते हैं. हर साल 60 से 70 पुतले निर्माण का ऑर्डर उन्हें मिलता था, लेकिन इस बार कोरोना के कारण एक भी ऑर्डर नहीं मिला है.

बांसड़ समाज के लोग

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कारीगरों ने बताया कि एक जगह पुतला बनाने पर साइज के अनुसार 50 हजार से 1.50 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती थी, लेकिन इस बार उन्हें कोई ऑर्डर नहीं मिलने से कमाई तो दूर रोजी-रोटी का भी संकट हो गया है. बांसड़ समाज के कारीगरों ने बताया कि रावण पुतलों के निर्माण में परिवार की महिला से लेकर युवा भी मदद करते थे, लेकिन इस बार ऑर्डर नहीं होने से सभी बेरोजगार हो गए हैं.

बांस की कारीगरी

अन्य राज्यों में भी रहती थी पुतलों की डिमांड

डूंगरपुर के बांसड़ समाज की ओर से बनाई जाने वाली बांस की कारीगरी राजस्थान ही नहीं पड़ोसी राज्य गुजरात और मध्य प्रदेश में भी प्रसिद्ध है. बांसड़ समाज की ओर से बनाए जाने वाले पुतले डूंगरपुर के अलावा बांसवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, सिरोही, माउंड आबू, आबू रोड, कुशलगढ़ के अलावा गुजरात के मेघरज, गोधरा, मोडासा और एमपी राज्य में धार-झाबुआ तक रहती है.

बांस से बनी कारीगरी प्रसिद्ध

बांसड़ समाज की ओर से बांस से कई तरह की चीजें बनाई जाती हैं, जिसकी डिमांड कई बड़े शहरों तक रहती है. यहां के बांसड़ समाज की ओर से बांस से टोकरी, टोपली, बच्चों को रखने का झूला, ट्री गार्ड, कुर्सियां, झूमर औक अन्य कई तरह के कामकाज और सजावटी सामान का निर्माण किया जाता है. इसमें पुरुष से लेकर महिलाएं, युवा और बच्चे भी बांस की सामग्री बनाने में पारंगत हैं. उनके हाथ से बनी बांस की सामग्री अच्छी होने से बाजार में खासी डिमांड रहती है, लेकिन कोरोना माहामारी के कारण उनकी कारीगरी और व्यापार खासा प्रभावित हुआ है.

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