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स्पेशल: दावे कुछ और हकीकत कुछ और...साढे़ 3 साल में 893 नवजातों की मौत - Tribal dominated Dungarpur district

नवजात बच्चों की मौत के आंकड़ों को कम करने के लिए सरकार लाखों प्रयास कर रही है और इस पर करोड़ों रुपए खर्च भी हो रहे हैं, लेकिन आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में नवजात बच्चों की मौत को लेकर एक भयावह स्थिति सामने आई है. यहां बीते करीब साढ़े 3 साल में अब तक 893 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिनकी उम्र महज 0 से 5 साल तक की है, यानी हर दूसरे दिन जिले में एक बच्चे की मौत हुई है. देखिये ये रिपोर्ट...

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हर दिन दो बच्चों की हुई मौत

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Published : Oct 9, 2020, 7:32 PM IST

Updated : Oct 9, 2020, 8:41 PM IST

डूंगरपुर.एक मासूम, जिसने अभी दुनिया भी नहीं देखी. मां का लाड और पिता का दुलार भी नहीं मिला, लेकिन सैकड़ों मासूम जिंदगी की जंग हार गए और काल का ग्रास बन गए. जिले में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर Etv Bharat ने पड़ताल की तो आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आए. बच्चों की मौत के कारणों को लेकर चिकित्सा अधिकारियों से बातचीत करने पर उन्होंने भी इसके कई कारण गिनाए, जिस कारण बच्चों की मौत जन्म के एक साल के भीतर ही हो जाती है. वहीं, इसके बाद भी कई कमजोर बच्चे पांच साल तक की उम्र में दम तोड़ देते हैं.

हर दिन दो बच्चों की हुई मौत...

ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल में पाया कि आदिवासी बहुल डूंगरपुर में साल 2017 से लेकर अब तक साढ़े 3 साल में 893 बच्चों की मौत हो चुकी है. इसे प्रतिदिन के लिहाज से गिनें तो 1,245 दिन होते हैं, यानी हर दूसरे दिन एक से दो बच्चों की मौत हुई है. नवजात बच्चों की मौत के ये आंकड़े ही डरावनी तस्वीर बयां कर रहे हैं. जिले में इस साल की ही बात करें तो पिछले पांच महीने में 107 बच्चों की मौत हुई है, जिसमें 0 से 11 महीने तक के 80 और एक से 5 साल तक के 27 बच्चों की मौत हुई है.

बच्चों की मौत का आंकड़ा...

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डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव यादव ने बताया कि आदिवासी बहुल डूंगरपुर में नवजात बच्चों की मौत के वैसे तो कई कारण हैं, लेकिन इसकी एक मुख्य वजह है कुपोषण. डॉ. गौरव यादव ने कहा कि एक नवजात अपनी मां से कुपोषण का शिकार होता है. मां का खानपान या हिमोग्लोबिन कम होने पर नवजात कमजोर पैदा होता है और कई बार तो प्री-मैच्योर डिलीवरी भी हो जाती है, जिस कारण से कमजोरी के कारण नवजात की जन्म के एक साल के भीतर मौत हो जाती है.

सरकारी योजनाएं भी फेल...

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वहीं, कुपोषण के कारण ही बच्चों को कई तरह की बीमारियां भी हो जाती हैं और इलाज नहीं करवाने पर मौत होती है. इसके लिए डॉ. गौरव यादव ने कहा कि एक महिला को गर्भधारण करने के बाद से अस्पताल में जाकर नियमित जांच और इलाज करवाना चाहिए, जिससे उसे समय पर सही इलाज मिल सके और हिमोग्लोबिन की मात्रा को भी संतुलित किया जा सके. इससे बच्चे के जन्म पर वह कमजोर पैदा नहीं होता और उसकी जान को भी कोई खतरा नहीं रहता है. इसके बाद भी बच्चे के कुपोषित होने पर एसएनसीयू या कुपोषण का इलाज किया जाता है.

सरकारी योजनाएं भी फेल...

नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े को कम करने के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिस पर सरकार करोड़ो रुपए खर्च कर रही है, लेकिन बावजूद जिस तरह से बच्चों की मौत हो रही है. इससे कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं. सरकार की ओर से गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए जननी सुरक्षा योजना चल रही है, जिसमें महिला के गर्भधारण करने से लेकर संस्थागत डिलीवरी और बच्चे के एक साल तक सभी तरह की सुविधाएं सरकार की ओर से दी जाती हैं. इसमें गर्भवती महिला को घर से अस्पताल तक लाने ले जाने सहित इलाज की तमाम सुविधाएं मुफ्त हैं.

नवजात बच्चों की मौत को लेकर भयावह स्थिति...

इसके अलावा डिलीवरी के बाद सरकार की ओर से प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. बावजूद इसके बच्चों की मौत चौंकाने वाली है. इतना ही नहीं जिले में चिकित्सा सुविधाओं को लेकर भी कोई कमी नहीं है. डूंगरपुर में मेडिकल कॉलेज अस्पताल से लेकर सागवाड़ा उप जिला अस्पताल, 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी है, जिसमें कई विशेषज्ञ डॉक्टर भी हैं. ऐसे में बच्चों के मौत के आंकड़े को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है.

Last Updated : Oct 9, 2020, 8:41 PM IST

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