डूंगरपुर. स्वच्छता और नवाचारों के लिए देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने वाला डूंगरपुर शहर आज 738 साल का हो गया. 738 साल पहले वर्ष 1282 में आज ही के दिन यानी कार्तिक शुक्ल एकादशी को रावल विरदेव सिंह ने डूंगरपुर नगर की नींव रखी थी. जिस दिन नींव रखी गई थी उस दिन बुधवार था और संयोग से आज भी बुधवार ही है. तत्कालीन रियासत की दूरदर्शी सोच ने पूरे शहर को सुरक्षा का कवच पहनाया है.
डूंगरपुर पहाड़ों के बीच बसा होने के कारण शहर हर तरह की आपदा से बचा रहता है. धनमाता पहाड़ी पर बना विजयगढ़ दुर्ग, जूना महल, उदय विलास पैलेस, शहर की चारों दिशाओं में बने सुरक्षा द्वार, गेपसागर झील सहित पुरातन बावडिया और मंदिर इस शहर की वे धरोहरें हैं, जिनकी बदौलत डूंगरपुर नगर अन्य शहरों के मुकाबले अपनी अलग पहचान रखता है.
डूंगरिया भील के नाम पर बसा डूंगरपुर...
डूंगरपुर की स्थापना के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है. इसके अनुसार इस क्षेत्र में डूंगरिया नामक एक शक्तिशाली भील सरदार रहता था. उसकी दो पत्नियां थीं, लेकिन वह एक संपन्न व्यापारी की पुत्री से भी विवाह करना चाहता था. व्यापारी को यह बात स्वीकार नहीं थी. उसने बांगड़ प्रदेश के तत्कालीन रावल वीरसिंह देव से मदद की गुहार की.
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इसके बाद एक युद्ध में डूंगरिया मारा गया. उसकी विधवाओं को वीर सिंह ने वचन दिया कि वह उनके पति के नाम का स्मारक बनाकर उसे अमर कर देंगे. उन्होंने एक पहाड़ी पर डूंगरिया भील की स्मृति में मंदिर बनवाया और उसी के नाम पर डूंगरपुर नगर की स्थापना सन 1282 में की गई थी. शिलालेखों में इसे डूंगरगिरि भी लिखा जाता था. सन 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया. बाद में यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी भी रहा.
देवसोमनाथ शिव मंदिर पर्यटन की दृष्टि से दर्शनीय...
12वीं सदी का देवसोमनाथ मंदिर डूंगरपुर शहर से 24 किलोमीटर दूर देव गांव में सोम नदी के तट पर स्थित 'देवसोमनाथ' नामक शिव मंदिर पर्यटन की दृष्टि से भी दर्शनीय है. श्वेत पत्थरों से बने इस भव्य शिवालय की शोभा देखते ही बनती है. स्थापत्य शैली के आधार पर इसे 12वीं शताब्दी का माना जाता है. मुख्य मंदिर में स्फटिक से निर्मित शिवलिंग स्थापित है. मंदिर के कलात्मक सभा-मंडप में बने तोरण अपने समय की स्थापत्य कला के सुंदर नमूने हैं. मंदिर में अनेक शिलालेख हैं, जिनसे इसके प्राचीन वैभव की जानकारी मिलती है.
ये बनाते हैं शहर की सुंदरता को और भी खूबसूरत...
शहर की सुंदरता को और भी खूबसूरत बनाता है, यहां का गैब सागर जलाशय. इसे स्थापत्य कला के मर्मज्ञ महारावल गोपीनाथ ने बनवाया था. इसके तट पर ही स्थित है महाराव उदयसिंह की ओर से बनवाया गया उदय विलास महल और विजय राज राजेश्वर मंदिर. ये दोनों ही इमारतें स्थापत्य कला की अद्भुत उदाहरण हैं.