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पत्थरों से खेली गई होली...52 घायल

होली पर जहां रंग और गुलाल से एक-दूसरे को रंग कर यह त्योहार मनाया जाता है. वहीं डूंगरपुर में एक जगह ऐसी भी है जहां इस दिन लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. गुरुवार को जिले के भीलूड़ा गांव में खेली गई ऐसी होली, जहां पत्थरों के हमले से 52 लोग घायल हो गए, जिसमें से गंभीर 6 घायलों को रैफर कर दिया गया है.

पत्थरों की राड

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Published : Mar 21, 2019, 10:54 PM IST

डूंगरपुर.होलिका दहन के दूसरे दिन पत्थरों की राड खेली जाती है, जो पिछले 2 साल से प्रशासनिक सख्ती के बाद सांकेतिक रूप से ही खेली जाती थी. लेकिन इस साल फिर से पत्थरों का यह शुरू हो गया. भीलूड़ा सहित आसपास के गांवो के लोग दोपहर बाद ढ़ोल ओर कुंडी की थाप के साथ होली खेलते हुए रघुनाथ मंदिर के पास एकत्रित हो गए.


इसके बाद 2 पक्ष बनाकर पत्थरों की राड खेली गई. एक दूसरे पक्ष ने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया तो पत्थरो की इस राड को देखने के लिए कई लोग जमा भी हो गए. राड में पत्थरों की बौछार बढ़ने लगी तो पत्थरो से चोटिल होने वाले लोग भी बढ़ते गए. राड खेल रहे लोगो के सिर, हाथ, पैर और शरीर पर कई जगह पत्थरों से चोटे आई, जिन्हें मौजूद स्वयं सेवकों ने अस्पताल पंहुचाया. भीलूड़ा अस्पताल में पत्थरों के राड के चलते डॉक्टरों की टीम तैनात थी जिन्होंने घायलों का इलाज किया. पत्थरों की राड में करीब 52 से ज्यादा लोग घायल हुए जिनका इलाज किया गया.

पत्थरों से खेली गई होली


गौरतलब है कि भीलूड़ा गांव में बरसों से पत्थरों की राड खेली जाती है, जिसके तहत दो गुट बनाकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाए जाते हैं जिसमे कई लोग घायल भी होते हैं. हालांकि पत्थरों की इस राड में कई लोगों के चोटिल होने की वजह से पिछले करीब 8 सालो से इसे बंद करने के प्रयास किए जा रहे हैं. जिसके तहत पिछले 2 सालों से प्रतिबंध के चलते इसे सांकेतिक रूप से ही खेला जा रहा था.


ग्रामीणों की मानें तो हजारों वर्ष पूर्व तत्कालीन शासक ने एक व्यक्ति का वध कर दिया था जिसके बाद उसकी पत्नी वहां सती हो गई थी जिसका यह श्राप था कि होली के पर्व पर यहां इस धरती पर इंसान का खून गिरना चाहिए, नहीं तो गांव पर संकट आ जाएगा. इसी मान्यता को लेकर यहां के लोग इसी खून को खेलते खूनी खेल को खेलते आ रहे है. इसी खूनी परंपरा को निभाने में कोई भी जनहानि होती है तो कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं करता है. और दूसरे दिन आपस में गले मिलकर एक दूसरे को बधाई देते हैं, हालांकि लोग इस परंपरा को बंद करने के पक्ष में भी हैं और इसे बंद करने के प्रयास में भी लगे हुए हैं.

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