धौलपुर.सिलिकोसिस जैसी घातक और खतरनाक बीमारी से मरने वाले मजदूरों का सिलसिला थम नहीं रहा है. वैसे तो जिले के हर उपखंड में सिलिकोसिस बीमारी के मरीज मौजूद हैं. लेकिन सबसे अधिक मरीज बाड़ी और सरमथुरा के खदान वाले इलाकों में पाए जाते हैं.
सरमथुरा क्षेत्र के डौमपुरा, भेंडे का पूरा और कोनसा गांव के हर परिवार में सिलिकोसिस बीमारी घर कर गई है. डौमपुरा गांव के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले 15 साल में गांव के करीब 50 से अधिक युवा मजदूर इस बीमारी से काल का ग्रास बन चुके हैं. मजदूर भगवान ने बताया कि ग्रामीणों के पास खेती नहीं होने पर मजदूरी का सिर्फ खदान में काम करना ही एक जरिया है. खदानों और क्रेशरों पर पत्थरों की कटिंग से उड़ने वाली धूल से सिलिकोसिस बीमारी लग जाती है. फेफड़ों में संक्रमण से यह बीमारी अधिक जटिल बन जाती है, जिससे मरीज की उपचार के अभाव में मौत हो जाती है.
दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर विधवा महिलाएं...
डौमपुरा गांव में पिछले 15 साल के अंतराल में 50 से अधिक युवा मजदूरों की मौत हो चुकी है, जिससे विधवा हुई युवतियां और महिलाएं मुआवजे के लिए दर-दर की ठोखरे खा रही हैं. ग्रामीण महिला गुड्डी देवी ने बताया कि उसका पति खदान में मजदूरी करता था, पिछले 8 साल से सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित था. पैसे के अभाव में उपचार नहीं हो पाया, जिससे चार महीने पहले उनकी मौत हो गई. पति की मौत से परिवार के भरण-पोषण का संकट गहरा गया है. दो बेटियां हैं, शादी के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है.
80 गांवों में सिलिकोसिस बीमारी का कहर... यह भी पढ़ेंःस्पेशल स्टोरीः सिलिकोसिस के कहर से वीरान होते जा रहे पाली के नाना बेड़ा रायपुर और जैतारण क्षेत्र
चिकित्सा विभाग और सरकार ने पीड़िता को दो पैसे तक की रहमत नहीं दी है, जिससे पीड़ित परिवार खाने के लिए भी मुहताज है. ऐसा अकेला गुड्डी का ही दुखड़ा नहीं है. सैकड़ों परिवार आजीविका से जूझ रहा है.
इन गांवों में करीब 150 मजदूरों की मौत...
सरमथुरा क्षेत्र के गांव कोनसा, खरोली, भेंडे का पुरा और बड़ा गांव में करीब 150 मजदूरों की सिलिकोसिस बीमारी से मौत हो चुकी है. आलम यह हो गया है कि गांव डौमपुरा, भेंडे का पुरा और कोनसा को विधवाओं के गांव से पुकारा जाने लगा है. साथ ही इलाके के गांव डौमपुरा, बड़ापुरा, चन्द्रावली, कोरा, बसंत पुरा, गडाखो, नकटपुरा, पदमपुरा, ददरौनी, शीतलपुरा, गढ़ी, कंचनपुरा, मडासील, हरलालपुरा, पवैनी, ब्रह्माद, खैरारा, खुर्दिया, बिजोली, सुरारी, गुडे, वटीपुरा, भिण्डीपुरा, भवनपुरा और रैरई इसके साथ जिले के करीब 50 गांव के ग्रामीण सिलिकोसिस जैसी भयानक बीमारी से जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं.
तंगहाली का जीवन जीने को मजबूर... डौमपुरा गांव में 15 साल में करीब 50 मजदूरों की मौत...
चिकित्सा विभाग की तरफ से दिए जाने वाले उपचार के दावे सिर्फ कागजों और फाइलों तक ही सिमट चुके हैं, जिससे सिलिकोसिस बीमारी से मरने वाले लोगों का सिलसिला थम नहीं रहा है. पिछले 15 साल में हुई मौत सरमथुरा इलाके के गांव डौमपुरा में सिलिकोसिस से करीब 50 से अधिक युवा और अधेड़ मजदूरों की मौत हो चुकी है, जिनकी विधवाएं दाने-दाने के लिए मुहताज हैं. लेकिन नकारा सिस्टम के जिम्मेदार आंख-कान बंदकर तमाशबीन बने देख रहे हैं.
पिछले 15 साल में इन लोगों की हुई है मौत...
- 30 साल की उम्र में पतिराम पुत्र जुगति
- 35 साल की उम्र में श्रीपति पुत्र भवूती
- 50 साल की उम्र में बाबू पुत्र चिरमोली
- 35 साल की उम्र में विजय पुत्र फूंसिया
- 50 साल की उम्र में लच्छी पुत्र गणेशा
- 40 साल की उम्र में साल रावी पुत्र पांचिया
- 30 साल की उम्र में कैलाशी पुत्र पन्ना
- 35 साल की उम्र में बिजेंद्र पुत्र पांचिया
- 30 साल की उम्र में भरत पुत्र सरवन
- 40 साल की उम्र में दिवाई लाल पुत्र पन्ना
- 40 साल की उम्र में राजकुमार पुत्र रामहेत
- 45 साल की उम्र में वासुदेव पुत्र भगरी
- 50 साल की उम्र में लालइया पीटर करनी
- 35 साल की उम्र में श्रीलाल पुत्र भीका
- 35 साल की उम्र में शिवचरण पुत्र करनी
- 30 साल की उम्र में देवी सिंह पुत्र पाती
- 25 साल की उम्र में बिजेंद्र पुत्र पाती
- 19 साल की उम्र में दिलीप पुत्र देवी सिंह
- 30 साल की उम्र में प्रभु पुत्र चिरमोली
- 28 साल की उम्र में अमरलाल पुत्र निरोती
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चिकित्सा विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक धौलपुर के 80 गांव के 10 हजार 6 सौ 65 ग्रामीणों ने सिलिकोसिस बीमारी का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया है, जिनकी चिकित्सा विभाग की तरफ से जांच की जा रही है. राज्य सरकार की तरफ से इस बीमारी से पीड़ित मरीज को 2 लाख का अनुदान दिया जाता है. मृतक के आश्रितों को तीन लाख रुपए दिए जाते हैं. लेकिन बीमारी से पीड़ित परिवारों ने बताया कि चिकित्सा विभाग और सरकार ने मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कर सिलिकोसिस बीमारी के प्रमाण पत्र तो जारी कर दिए.
आस लगाए बैठे सिलिकोसिस के मरीज लेकिन चिकित्सा विभाग से उपचार के लिए और मृतक के आश्रितों को अनुदान राशि उठाने में कागजी खानपूर्ति के कठिन दौर से गुजरना पड़ता है. जिससे पीड़ित लोग दफ्तरों और चिकित्सा विभाग के चक्कर लगाते-लगाते थक हार कर घर बैठ जाते हैं. राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए 15 सौ रुपए प्रतिमाह पेंशन योजना और पालनहार योजना की भी शुरुआत की है. लेकिन अधिकांश लोगों को लाभ नहीं मिल रहा है, जिससे सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित परिवार घुट-घुटकर जीने को मजबूर हो रहे हैं.